साधना की शख्शियत-25

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: सपनों को सच करने की कोशिश में कहीं न कहीं अपनों का होते है और उन सपनों को सच करने के लिए व्‍यक्ति में सर्मपण होना आवश्‍यक है। अगर सपनों को पूरा करने का लक्ष्‍य और सर्मपण की भावना से किया गया प्रयास भी व्‍यक्ति के सपनों को सफलता के पथ पर लेकर जाते हैं। जीवन में बाधाएं चाहे जो भी हो परंतु सफलता उसके लगन और मेहनत पर निर्भर करती है। काव्‍य की रचना करने के लिए बचपन से ही लगन होती है, ये बात अलग है किसी बाधाओं के कारण पूरा नहीं हो नहीं हो पा

साधना की शख्शियत-24

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: खुबसूरत होतें है वो पल होते हैं जब पलकों में सपनों के पाने की चाहत होती है। सपनें ओ नहीं जो सोने में देंख, सपनें ओ पूरे होते हैं, जिसे पूरा करने की ललक और चाहत हो। यही प्रतिज्ञा व्‍यक्ति के सफलता की कारक बनती है, जो कभी भी किसी उम्र में हासिल की जा सकती है। काव्‍य की रचनाओं को पूरा करने का सपनां एक दिन में पूरा नहीं होता, उसे पूरा करने के लिए बचपन के सपनें आवश्‍यक हैं। ये बात अलग है कि हर सपनें अपने चाहत के समय में पूरा न हो लेकिन अगर मन के

साधना की शख्शियत-23

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: सपनों की उड़ान, मंजिल हासिल करने और कठिनाईयों के बीच काव्‍य की रचनाओं को मूर्त देना मन के लगन को दर्शाता है। किसी भी कार्य को उसकी मंजिल तक पहुंचाना व्‍यक्ति के उत्‍साह को दर्शाता है। बचपन से मन में काव्‍य की रचनाओं की उड़ान सपनों की दुनियां में गोते लगाना ही व्‍यक्ति के ‘’साधना की शख्शियत’’ होती है। शहर की चकाचौंध से दूर रहने के बावजूद भी अगर काव्‍य की रचना लिखने का शौक रखना ही सच्‍ची लगन होती है। जीवन के तमाम उलझनों के

साधना की शख्शियज-22

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: गांव की गलियां हो या शहरों की चकाचौंध हर जगह की अपनी-अपनी सोच होती है। उन्‍हीं सोच और सपनों के लिए अपनी मंजिल की ओर बढ़ना और रास्‍ते बनाना ही व्‍यक्ति की सही पहचान होती है। दर असल में प्राचिनकाल से ही गांवों में लड़कियों को सिर्फ शादी-विवाह का बंधन और घर की चूल्‍हा-चौकी तक सीमित होता था, परंतु देश बदला और सोच बदल तो गांव की गलियों में भी लड़कियों को पंख लगने लगे है। हलांकि शिक्षा के बाद गावों की सोच बदली और अपनी ‘’साधना की शख्‍शि

साधना की शख्शियत-21

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: भवनाएं और कल्‍पनाएं एक दूसरे की पूरक होती है, अगर भावनाएं कल्‍पनाओं के सागर में गोते लगा रही हो तो सफलताएं अवश्‍य मिलती है और जिम्‍मेदारियों का बोझ भी कल्‍पनाओं की कलम रोक नहीं सकती। विभिन्‍न जिम्‍मेदारियों को बखूबी के साथ निभाने के साथ-साथ काव्‍य की रचनाओं को बेहतर मुकाम हासिल होता है तो वहीं है ‘’ साधना की शख्शियत’’। इन्‍ही कल्‍पनाओं के माध्‍यम से विभिन्‍न पदों पर रहने के साथ-साथ काव्‍य की रचनाओं को कुछ बेहतर कर

साधना की शख्सियत -20

न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: अपनी मातृभाषा के साथ साथ किसी दूसरी भाषा पर अपना परचम लहराना व्यक्ति के लगन और चाहत पर निर्भर करता है। और कोई व्यक्ति  मातृभाषा नेपाली और क्षेत्रयि भाषा बंगला  दोनों भाषाओं के साथ,  हिंदी पर भी अपना एकधिकार  जमाता है तो वह उसकी साधना ही होगी । रचना के माध्यम से अपने भावों को पन्नों पर उतारना और उतार कर समाज के सामने प्रस्तुत करना भी लगन पर ही निर्भर करता है। एक गैर हिंदी होने के बावजूद अपना पैर हिंदी की काव्य रचनाओं में परोस रही ह

साधना की शख्सियत 19

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: शौक और सपने एक हो, तो जीवन के राह में आने वाली बाधाएं भी उसे पूरा करने से रोक नहीं सकती। इंसान जब सपनों की दुनियां में खोता है, तो कुछ पल के लिए सपनें तो अधूरे होते हैं, परंतु लगन सच्‍चे दिल हो तो पूरे होने में समय तो लगता है,परंतु वे सपनें अधूरे नहीं रहते है। एक बात जरूर है कि जिंदगी कभी कभी इम्‍तहान भी लेती, परंतु लक्ष्‍य की प्राप्ति का संकल्‍प और दिल की टीस जब सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है, तो व्‍यक्ति पूरा जरूर करता है। &

साधना की शख्शियत 17

न्यूाज भारत, सिलीगुड़ी : ‘’ कश्मकश, है ख्वाबों की, मुझे अब जगाते सोते। मैं सजदे रोज करता हूं, मगर पूरे नहीं होते।‘’ लेकिन जो सपनों को सोते जागते देखने की कोशिश करता है, उसे उसके ख्वाब  पूरे होने से कोई रोक नहीं सकता। समय के साथ अगर सपनें पूरे करने की कोशिश और सच्चीं ‘साधना हो तो मंजिल एक ना एक दिन मिल ही जाती है। रचनाओं को पूरा करने के लिए अगर प्रकृति का सौंर्दय साथ हो तो रचनाओं में चार चांद लग जाता है। पड़ोसी देश नेपाल की राजधानी काठमांडू में बसी ‘’ अ

साधना की शख्शियत -16

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: काव्य, लेखन, ऐसी साधना है मंजिल से मुकाम तक पहुंचना बहुत कठिन होता है। लेकिन अगर व्यक्ति अगर चाह हो तो राह मिल जाती है। कोई अपनी रचनाओं के लिए सही प्रयास करता है तो आगे चलकर ही उसकी " साधना की शक्शियत" से पहचान बनाने में सफल होता है। सिलीगुड़ी में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बस जरूरत है संवारने के दौर में एक अध्‍यापक काव्‍य की रचनाओं को दिेखने का मिला। " दीपंकर पाठक" बचपन से ही काव्‍य रचनाओं के लिए प्रयासरत थे, परंतु सफलता के लिए

साधना की शख्शियत -15

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: जीवन में संर्घष के साथ बढ़ने वाला ही लक्ष्‍य प्राप्‍ति की ओर अग्रसर होता है। संर्धष के साथ मिलने वाली मंजिल बहुत ही सुखद होती है। मंच या सही स्‍थान नहीं मिलने के बावजूद भी जब व्‍याक्ति संर्घष से आगे अपनी मंजिल की ओर बढ़ता है, तो वही व्‍यक्ति के ''साधना की शख्शियत'' होती है। बचपन से कल्‍पनाओं के सागर में श्रृंगार रस की रचानओं पर ध्‍यान एकाग्रचित करना और उस रचनाओं को पन्‍नों पर उतारना भी एक कला है। अध्‍यापिका बीणा चौधरी ने

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