साधना की शख्शियत-24

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: खुबसूरत होतें है वो पल होते हैं जब पलकों में सपनों के पाने की चाहत होती है। सपनें ओ नहीं जो सोने में देंख, सपनें ओ पूरे होते हैं, जिसे पूरा करने की ललक और चाहत हो। यही प्रतिज्ञा व्‍यक्ति के सफलता की कारक बनती है, जो कभी भी किसी उम्र में हासिल की जा सकती है। काव्‍य की रचनाओं को पूरा करने का सपनां एक दिन में पूरा नहीं होता, उसे पूरा करने के लिए बचपन के सपनें आवश्‍यक हैं। ये बात अलग है कि हर सपनें अपने चाहत के समय में पूरा न हो लेकिन अगर मन के पलाकों पर सपनों का पूरा करने की ‘साधना की शख्यित’ हो तो एक ना एक दिन पूरा जरूर होते हैं।  ‘’ पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जहां बंग्‍लाभाषा का प्रभाव हो, वहां हिंदी की शिक्षा ग्रहण करना सुखद अनूभुति रहा। कर्मक्षेत्र में एक शिक्षिका की भूमिका निभाना, समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन और वैवाहिक जीवन की गृहस्थी संभालने के साथ रचनाओं को मूर्त रूप देना आनन्ददायक लगता है। स्कूल के समय बचपन से लेखन में रुचि होने से कॉलेज, यूनिवर्सिटी में निरंतर रचनाओं का प्रयास जारी रहा। मेरी रचनाओं का प्रकाशन ही मेरी सृजनशीलता को गति दी, और शब्दों के मोती को एहसास के भावों के धागे में पिरोने से रचनाओं (काव्‍य) की माला का निर्माण होता गया और हम कविता का रूप देने लगे। मन के अंत:करण की उपज, सुख-दुख की अनुभूति, भावों की अभिव्यक्ति, यह सारे गुण ही किसी रचनाकार की रचना को पठनीय बनाता है। वर्तमान समय में स्त्री की जो दशा है, वह सतयुग की सीता की सहनशीलता और त्‍याग ने साबित करती है, कि स्त्री का आदर आज भी संसार नहीं करता, परंतु आज भी स्‍त्री की यही दशा है।‘’ नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी

जनक नंदिनी सीता की दशा

हे सीता, तुम जनक नंदिनी हुई अयोध्या की रानी,

रावण ने छला तुमको पर थी राम की दुलारी।

आदर्शों से भरा था जीवन सादगी था जिसका गहना,

दो कुल की लाज के खातिर पड़ा उसको घोर कष्ट सहना।

की गई निष्कासित सीता मिथ्या दोष लगा उस पर,

विरोध न किया किसी ने इसका विष चुपचाप यह पी गई वह।

छोड़ सकल सुख राजवैभव का स्वाभिमानी चली वन की ओर,

वन देवी बन किया व्यतीत जीवन पाकर आश्रय बाल्मीकि का।

जननी बनी वीर लव-कुश की पाला अकेले उन्हें, गुण सारे सिखाए,

न्याय मांगें जब मां के लिए इन्होंने पूरी अयोध्या नगरी की आंखे भर आई।

लव - कुश ने मन जीता सबका कर गए चकित भी श्रीराम को,

फिर भी सियावर को विश्वास न आया अग्नि- परीक्षा के लिए सीता को बुलाया।

प्रमाणित कैसे कर पाती वह इसलिए धरती मां की गोद में समाया।