साधना की शख्सियत -20

न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: अपनी मातृभाषा के साथ साथ किसी दूसरी भाषा पर अपना परचम लहराना व्यक्ति के लगन और चाहत पर निर्भर करता है। और कोई व्यक्ति  मातृभाषा नेपाली और क्षेत्रयि भाषा बंगला  दोनों भाषाओं के साथ,  हिंदी पर भी अपना एकधिकार  जमाता है तो वह उसकी साधना ही होगी । रचना के माध्यम से अपने भावों को पन्नों पर उतारना और उतार कर समाज के सामने प्रस्तुत करना भी लगन पर ही निर्भर करता है। एक गैर हिंदी होने के बावजूद अपना पैर हिंदी की काव्य रचनाओं में परोस रही है,"साधना की शख्सियत’ रूपा सुब्बा, सिलीगुड़ी।
‘’हिंदी भाषी न होते हुए भी बचपन से हिंदी की ओर रुझान रहा है। जिसके कारण मैंने हिंदी में प्रारंभिक शिक्षा शुरू की, हिंदी में ही स्नातक तथा स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त भी किया। हिंदी के लिए स्नातक में पढ़ाई के प्रति लगन के साथ गुरुजन अजय सर,पूनम मैम और चतुरानन सर के प्रभाव से हिंदी में मेरी एक गति आयी। शिक्षा ग्रहण करने के बाद स्कूंल में शिक्षण कार्य साथ ही कविताओं की ओर रुझान होने के कारण कविताएँ भी लिखना शुरू किया।जीवन के सफ़र में कुछ घटनायें ऐसी घटी जिस कारण मन में अनेक भाव उठते थे बस उन शब्दों को पिरोने का प्रयास किया, और शायद मेरी कविताएँ  कहीं ना कहीं मेरी जीवन और मन से जुड़ी है और अब लग रहा है की मैं मंज़िल की ओर बढ़ रही हूँ।‘’
 वे क़समें, वे वादे
लोग प्यार में जीने और मरने की क़समें खाते है,
क्या किसी के लिए जीना और मरना इतना है आसान,
मरना तो फिर भी आसान हो, जीना होता है मुश्किल;
पर किसी के लिए नहीं, ख़ुद के लिए;
क्यों कि समय के साथ जब भ्रम टूटता है,
तो हम वैसे ही अधमरे हो जाते है,
पर उस स्थिति को पार कर जीना होता है मुश्किल;
तब लगता है, कितना आसान है, क़समें-वादे करना
पर निभाना उससे कहीं मुश्किल;
तब हम ख़ुद से करते है, क़समें-वादे
कि फिर किसी भ्रम में ना परे हम;
क्या हम प्यार में इतने अंधे हो जाते है, कि कह देने भर से हम सब सच मान बैठते है;
तब हम ये नहीं सोचते, शायद यही क़समें, यहीं वादे,
उसने कई बार कहें होंगे, जाने कितनो से कहें होंगे;
उस समय अन्धविश्वास का जो घेरा होता है, हम पर,
जिससे हम ख़ुद को चाह कर भी नहीं निकल पाते है;
उसे हम तोड़ ही नहीं पाते है, पर वह घेरा भी टूटता हैं,
उन जीने-मरने की क़समें-वादों के साथ,
तब भ्रम भी टूटता है; तब हम अन्धविश्वास से विश्वास के घेरे में आते है,
ख़ुद पर विश्वास,  हम सही मायने में जीना सीखते है तब,
ख़ुद से ख़ुद के लिए सिर्फ़ जीने की क़समें-वादे करते है जब।