साधना की शख्शियत -16

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: काव्य, लेखन, ऐसी साधना है मंजिल से मुकाम तक पहुंचना बहुत कठिन होता है। लेकिन अगर व्यक्ति अगर चाह हो तो राह मिल जाती है। कोई अपनी रचनाओं के लिए सही प्रयास करता है तो आगे चलकर ही उसकी " साधना की शक्शियत" से पहचान बनाने में सफल होता है। सिलीगुड़ी में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बस जरूरत है संवारने के दौर में एक अध्‍यापक काव्‍य की रचनाओं को दिेखने का मिला। " दीपंकर पाठक" बचपन से ही काव्‍य रचनाओं के लिए प्रयासरत थे, परंतु सफलता के लिए अभी साधना की जरूरत थी जो अब अध्‍यापन कार्य शुरू करने के साथ ही मिल रही है। ‘’ लक्ष्‍य को हासिल करने का जूनून तो था ही परंतु समय और हालात साथ नहीं दे रहे थे। संकल्‍प ने मंजिल तक पुहंचने में काफी मदद मिली।‘’ दीपंकर पाठक, सिलीगुड़ी
                          चीन
पूंजीवाद के अंधियारे में, भटक रहे तुम साम्यवाद की गलियारे में।
मानवता को शर्मशार करते अपने ही वुहान को नोचते चीरते,सफल

तो नहीं हुए? जीत तो नहीं गए? शहर तुम्हारा, लोग तुम्हारे,
विश्व संकट बनाम भारत संकट के आड़ में, भूल गए तुम,
वुहान तुम्हारा, नगर तुम्हारा, नागरिकता तुम्हारी।
दरअसल मानवता जब शर्मशार होती है,
सबसे पहले वो अपना पता खो देती है।
ओ चीन, विश्व त्रासदी से निकल आएगा,
आंसू पोछ, फिर मुस्कुराएगा।
पुरुषत्व मोह में कुछ सफलता पा भी,
क्या इस कलंक को धो पाओगे।
चंगेज खा से मिली इस विरासत में,
दानव ही कहलाओगे।
पाकर भी तुमने क्या पाया?      
अपनो की बलि ने क्या
कभी तुम्हें सताया? जानते हो....
मुस्कान की वजह तुम कभी न समझ पाओगे।
युगों युगों तक लाल तरल हाथो में
लिए अपराधी खलाओगें