न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: सपनों की उड़ान, मंजिल हासिल करने और कठिनाईयों के बीच काव्य की रचनाओं को मूर्त देना मन के लगन को दर्शाता है। किसी भी कार्य को उसकी मंजिल तक पहुंचाना व्यक्ति के उत्साह को दर्शाता है। बचपन से मन में काव्य की रचनाओं की उड़ान सपनों की दुनियां में गोते लगाना ही व्यक्ति के ‘’साधना की शख्शियत’’ होती है। शहर की चकाचौंध से दूर रहने के बावजूद भी अगर काव्य की रचना लिखने का शौक रखना ही सच्ची लगन होती है। जीवन के तमाम उलझनों के बीच समय-समय पर मन के तार को काव्य की वीणा पर छेड़ने से सफलता के सुर अवश्य सुनाई देता है। ‘’बचपन कविता में मेरी रूचि रही है, अक्सर उन्हें पढ़कर मन की में रचनाओं तार बजने लगते थे। मन में लगन तो थी पर कभी लिख भी पाऊंगी ऐसा सोचा नहीं था। लेकिन मेरे हौसलों की उड़ान तब मेरे सपनों को मंजिल की ओर ले गई, जब शिक्षा का स्तर बढ़ने लगा और दिल की बात जब जुबान पर आती तो काव्य रचनाओं में मन के तार बज उठते, जिसकी वजह से मेरा लिखना संभव हुआ। कविताओं में प्रकृति प्रेम में गहरा लगाव है, स्कूल में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रूचि दिखाना, विशेष अवसरों पर एंकरिंग भी करना और मन में बच्चों से विशेष लगाव रहा है।‘’
कमला सिंह’’महिमा’’ खोरीबाड़ी, सिलीगुड़ी
माँ सम होत न कोऊ बलवान...
है सकल विश्व को पूर्ण विदित, मातृत्व ही है जीवनाधार,
जीवनरक्षिणी, प्राणदायिनी, कहलाती वह पालनहार।
श्रांत- क्लांत, निश्छल-निष्पाप, माँ सम होत न कोऊ बलवान,
पियूष प्रवाहिनी सम लगती, मातृत्व की घनेरी छाँव।
श्वेद कण अनवरत बहता , फिर भी करती रहती कर्म ,
हे माता तुम सदा धन्य हो, तुझसे ही है जीवन का मर्म
मातृ तेरे उपकार बहुत हैं , चुका न सकता कोई मोल यहाँ।
प्रात:, मध्यान्ह , संध्या अरु रात्रि, मातु करती विश्राम कहाँ?
माता का जो करे अनादर, करता विलाप निज जन्म यहाँ
मिलता ना उसे शांति , रहता वह दीन -हीन सदा।
होते हैं वे बड़भागी, जिन्हे प्राप्त हो माँ की छाँव,
कामधेनु सम होती माँ , मातृत्व की घनेरी छाँव।
माता का हृदय तब छिन्न -छिन्न होता है,
जब पुत्र उसे वृद्धाश्रम रखता है,
होते कितने निर्मोही वे बेटे,
निज जननी को तज हृदय ना जिनके फटते,
होता जब कुठाराघात मातृत्व हृदय पर,
सकल सृष्टी करुण-विलाप करती है।
जीवनरक्षिणी पर जब कष्ट ढाया जाता है
मानवता की वहीं मृत्यु होती है।