साधना की शख्शियत -15

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: जीवन में संर्घष के साथ बढ़ने वाला ही लक्ष्‍य प्राप्‍ति की ओर अग्रसर होता है। संर्धष के साथ मिलने वाली मंजिल बहुत ही सुखद होती है। मंच या सही स्‍थान नहीं मिलने के बावजूद भी जब व्‍याक्ति संर्घष से आगे अपनी मंजिल की ओर बढ़ता है, तो वही व्‍यक्ति के ''साधना की शख्शियत'' होती है। बचपन से कल्‍पनाओं के सागर में श्रृंगार रस की रचानओं पर ध्‍यान एकाग्रचित करना और उस रचनाओं को पन्‍नों पर उतारना भी एक कला है। अध्‍यापिका बीणा चौधरी ने भी अपने संर्घष को जारी रखा और मंजिल पाने के लिए शोशल मिडिया का सहारा लेकर अपने को एक लक्ष्‍य तक पहुंचाया है।
''काव्‍या की रचनाओं को लिखना कक्षा दसवीं से ही प्रारंभ किया। मेरी प्रेरणा रही शिक्षिका "पुनम सिंह" के प्रेरणादायक बातों और "दीपक सिंह" जी मार्गदर्शक ने हमेशा साथ दिया। मंच नहीं मिला तो फेसबुक से जुड़कर  अपने भावों को अपने फेसबुक वॉल पर शेयर करती रही, धीरे-धीरे "साहित्यिक-समूहों" से जुडकर मंजिल की ओर बढ़ती रही। मेरा प्रिय रस श्रृंगार होने के कारण सामना तो आज भी लोगों की बातों का करना पड़ता हैं पर जब वे मेरी रचनाओं को मेरे व्यक्तिगत जीवन से जोड़ देते है, और साथ ही श्रंगार वर्णन पर आपत्ति भी जताते है। कुछ परेशानियों के कारण मुझे बी. ए. के बाद पढ़ाई के बीच अन्तराल लेनी पड़ी फिर लगा कि मेरी मंजिल मुझे बुला रही है।'' वीणा चौधरी, सिलीगुड़ी
                         भावनाएँ
भावनाएँ! जब उत्पन्न होती हैं
बांधती नहीं उसे
छंदों के जाल में..
सहेजती हूँ,
अन्तर्मन के उद्वेग
स्वछंद शब्दों के सैलाब में
ताकि,
गतिमान रहे भावनाएँ!
कभी सरिता की धार सी,
कभी समीर के बहाव सी,
निरन्तर प्रवाहमय रहें
अवरूद्ध ना हो
दिशाएँ
इसलिए बांधती नहीं,
संकुचित छंदो के जाल में
भावनाएँ.....!