साधना की शख्शियत-45 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी "जीवन में हर पल खास है " मंजिलों को पाने की ख्वाहिश तो बचपन से ही होती हैं । लेकिन ख्वाहिश को हकीकत में बदलने के लिए हौसले की आवश्यकता होती है। इसके लिए परिश्रम जरूरी है, तब जिन्दगी खुद के मंजिलों को खास बनातीं है। जिन्दगी को मूल्यवान बनाने की अहम् कड़ी को शिक्षा माना जाता है और मेरा मन शिक्षा की ओर अग्रसर होकर काव्य रचना में बस सी गयी। कविता-पाठ करने में मेरी रूचि बचपन से ही रही कई बार मैंने विद्यालय प्रतियोगिता
मेरे अल्फाज
हौसलों की उड़ान, मुझे मंजिल की ओर ले गई...
साधना की शख्शियत-44 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी सपनों की उड़ान में मंजिल को हासिल करने का जज्बा सबसे अहम होता है। तमाम कठिनाईयों के बीच अपने को काव्य की रचनाओं को मूर्त देना मन के लगन को दर्शाता है। बचपन से मन में काव्य की रचनाओं की उड़ान सपनों की दुनियां में गोते लगाना ही व्यक्ति के ‘’साधना की शख्शियत’’ होती है। शहरों के चकाचौंध से दूर रहने के बावजूद भी अगर काव्य की रचना लिखने का शौक रखना ही सच्ची लगन होती है। जीवन के तमाम उलझनों के बीच समय-समय
ये सपनों का शहर है जनाब, यहां मंजिलों के सपनें है...
साधना की शख्शियत-43 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी ये सपनों का शहर है जनाब, मंजिल को पाने के सपनें तो सभी देखते है, परंतु सफलता मन की लगन और निरंतर प्रयास और सच्चे सर्मपण से मिलती है। काव्यों के प्रति सर्मपण अगर सहीं हो तो सपनों के सौदारों के शौक, लगन से पूरा करने का सशक्त माध्यम है। ये बात अलग है सपनें पूरा होने में समय लगता है, परंतु पूरा होता जरूर है। अक्शर देखा जाता है कि व्यक्ति कोशिश करता है, परंतु निराशा हाथ लगती है, वह फिर रास्ते बदल देता है। आज के य
मन के कुंठाओ की अभिब्यक्ति है काव्य की रचना...
साधना की शख्शियत-42 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी शब्दों और रचनाओं एक अलग तरह की कसक होती है, परंतु वह स्वयं को पहचान नहीं पाता है। लेकिन उनकी इस प्रतिभा को मित्र, गुरू, की कहीं बात मन की प्रेरणा को और मजबूत क़र देती है और व्यक्ति जीवन के एक नए पड़ाव, एक नयी मंजिल की ओर कदम बढ़ता है। इसी तरह अपनी " साधना शख्सियत" से आगे बढ़ता है। काव्यों के प्रति रूचि किसी बड़े घराने से नहीं मन के अंतर पटल से पैदा होती है। जिसने भी काव्य और साहित्य को अपने मन के अंतर पटल से स
आसमान में उड़ने की परिकल्पना...
साधना की शख्शियत-41 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी बचपन से आसमान में उड़ने की परिकल्पना ! लेकिन ग्रामीण परिवेश, सब कुछ सामान्य नहीं, ऐसे में काश: पंख होते, और परिंदों की तरह आकाश में उड़ने की तमन्ना मन लिए जब कोई जीवन की उंची उड़ान के सपने देखता है, तो पूरा करने की परिकल्पनाएं भी जन्म लेती है । हालात और बचपन की मज़बूरियां, सपनों को पंख नहीं देते, इसके लिए स्वयं सपनों को पूरा करने की चाहत रखनी होती है। वहीं अगर दिल ठान ले तो सफलताएं अवश्य ही मिलती है। बस जरूरत होती है उस
हे मां ! तुझे सलाम....
साधना की शख्शियत-40 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी कल्पनाओं में भावनाओं को सागर एक दूसरे की पूरक होती है, अगर भावनाएं कल्पनाओं के सागर में गोते लगा रही हो तो सफलताएं अवश्य मिलती है और जिम्मेदारियों का बोझ भी कल्पनाओं की कलम रोक नहीं सकती। विभिन्न जिम्मेदारियों को बखूबी के साथ निभाने के साथ-साथ काव्य की रचनाओं को बेहतर मुकाम हासिल करना ही ‘’ साधना की शख्शियत’’ होती। इन्हीं कल्पनाओं के माध्यम से विभिन्न पदों पर रहने के साथ-साथ काव्
जहां काव्य की कल्पना सूर्य को दिये दिखाने जैसे...
साधना की शख्शियत-39 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी जीवन में संर्घष के साथ बढ़ने वाला ही लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। संर्धष के साथ मिलने वाली मंजिल बहुत ही सुखद होती है। काव्य और साहित्य के साथ जुड़ाव अक्सर उनके पास होता है जो पारिवारिक विरासत की पहचान होते है, लेकिन अक्सर यही देखा जाता है। लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति जिसकी परिवार में दूर-दूर तक काव्य या साहित्य से कोई मतलब नहीं होता। सिर्फ दो जून की रोटी के लिए गिरमिटीय मजदूरों की तरह
कड़क चाय के बगानों से बह रही काव्य की रसधारा
साधना की शख्शियत-38 पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी साहित्य की कल्पना किसी जाती-धर्म या किसी भाषा या किसी एक समाज की नहीं होती। भारत का साहित्य एक ऐसी विधा है जो गांव की गलियाें व शहरों की चकाचौध में प्रतिभाएं सामने आती रहती है। लेकिन उत्तर बंगाल के चाय बागानों में जो प्रतिभाएं है उसे सामने लाने की जरूरत है। कड़क चाय सोधी सुगंध के बगानों से जो साहित्य और काव्य की रसधारा निकल रही है , जरूरत है तो उन प्रतिभाओं को सामने लाने की। एनईन्यूज भारत उन्ही सपनो
मिथिला के कण कण में बसता है साहित्य
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी पत्रकारिता और साहित्य में समन्वय स्थापित करने वालों की सूची में एक नाम बिहार के समस्तीपुर जिले के बल्लीपुर गांव में जन्म लेने वाले ब्रह्मेन्द्र झा का भी आता है। गांव के मध्यविद्यालय में प्राथमिक शिक्षा और गांव के ही उच्च विद्यालय से मैट्रिक तक की पढ़ाई के बाद दरभंगा के सीएम कालेज से उच्च शिक्षा की प्राप्ति की। आठ वर्षों तक दरभंगा के प्रतिष्ठित निजी विद्यालय में बतौर हिन्दी शिक्षक के रूप में सेवा दी। फिर अध्यापन को विराम देकर द
कोरोना काल में डिजिटल हुए पर्व व त्यौहार...
कोरोना संकट के इस दौर में जहां पर्वों की धूम फीकी है। पर इस संक्रमण काल में भी डिजिटल प्लेटफार्म का बोलबाला है। कृष्ण जन्माष्टमी को भारत में अभूतपूर्व तरीके से मनाया जाता है। परंतु कोरोना ने इस बार कृष्ण की लीला झांकियों में नहीं डिजिटल प्लेटफार्म पर दिख रही है। संकट के इस दौर में न्यूज भारत भी अपने कष्ण की लीला को एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा है। सुनो मोहना... सुना सुना पड़ा है तेरा सारा जहाँ सांवरे कोई सूरत बता दे जरा। झूमे जमी और ये झू