साधना की शख्शियत-43
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
ये सपनों का शहर है जनाब, मंजिल को पाने के सपनें तो सभी देखते है, परंतु सफलता मन की लगन और निरंतर प्रयास और सच्चे सर्मपण से मिलती है। काव्यों के प्रति सर्मपण अगर सहीं हो तो सपनों के सौदारों के शौक, लगन से पूरा करने का सशक्त माध्यम है। ये बात अलग है सपनें पूरा होने में समय लगता है, परंतु पूरा होता जरूर है। अक्शर देखा जाता है कि व्यक्ति कोशिश करता है, परंतु निराशा हाथ लगती है, वह फिर रास्ते बदल देता है। आज के युवा काव्य रचनाकारों को सलाह है, कि अपनी मंजिल को ओर बढ़ते रहे, ये जरूरी नहीं सफलता एक दिन में मिलेगी, परंतु अगर उनकी ‘’ साधना की शख्शियत’’ बरकरार है तो सफालता अवश्य उनके कदम चूमेगी। बंगाल में हिन्दी साहित्य के प्रति लोगों में प्रेम और जागरूकता देखने को मिल रही है। साहित्य में काव्य के प्रति रूझान दिखई दे रहा है, जो साहित्य के लिए एक सुखद बात है। हिन्दी यहां तीसरी भाषा के रूप में है, परंतु जो हिंदी के प्रति रूझान दिखाई दे रहा है उसे बस एक प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
‘’ पढ़ने का शौक मुझे बचपन से ही रहा, क्योंकि जीवन में शिक्षा ही एक ऐसा साधन है, जो हर एक को सही और गलत रास्ते के फर्क दिखा कर सही दिशा प्रदान करता है, और मंजिलो तक पहुँचाता है। बचपन से कहानी कविताओं को पढ़ने के बाद एक ललक थी, काव्य के सपनों की मंजिल को छूने की तमन्ना, सफलता और असफलता की परवाह किए बिना मैं मंजिल को बढ़ रही हूं, और अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास जारी है।पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के नागराकाट ब्लॉक के एक छोटे से गाँव चम्पागुड़ी की निवासी हूँ । मेरी प्राथमिक शिक्षा चम्पागुड़ी के' संत कपितनीयों गिर्ल्स हाई स्कूल' से हुआ हैं, आगे की शिक्षा' परिमल मित्र स्मृति महाविद्यालय' से कर रही हूँ । मैं साहित्य की छात्रा हूँ मुझे कविता लिखने के लिए सर्वाधिक प्रोत्साहित हिन्दी विभाग के शिक्षकों ने किया हैं। मेरा अनवरत प्रयास भी जारी मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही हूं उम्मीद है मेरा प्रयास है आपका विश्वास बन कर उभरे जो समाज व साहित्य को एक नई दिशा प्रदान करेगा।' -सुनीता कुमारी प्रसाद
"गर्व है जवानों पर"
गर्व है जवानों पर,
जो दूर सीमा पर है खड़े,
घर परिवार को छोड़ कर
रक्षक है बने देश के,
हर परिस्थिति में कर रहें;
अपने काम को बड़े शान से,
ये खुशियाँ अपनी त्याग कर,
देश के रखवाले है बने ,
लड़ जाते है उन सब से
जो दुशमन बन बैठे है देश के,
मृत्यु को करीब देखकर
पीछे न कभी भागते
आखिरी सांस तक लड़ते
है बड़े शान से ,
सीने पे गोली खाकर भी
जुबां से जय हिन्द बोलते ,
गर्व है उन जवानों पर
जो देश के सपूत है बने ।
गर्व है जवानों पर
जो जान की परवाह किए बगैर ;
कुर्बा हुए देश के लिए,
घर परिवार को छोड़ कर
मिल गए है जो मिट्टी में ,
जाते जाते बता गए
डरते नहीं भरतीय सैनिक
दुश्मनों से ,
जब आँच आएगी देश पे
तो मार देगे एक एक को ,
जान भी क्यों न चली जाए
बदला हम जरुर लेगे,
गर्व है अमर आत्माओं पर
जो देश के लिए मर मिटे ।
सुनीता कुमारी प्रसाद