साधना की शख्शियत-38
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
साहित्य की कल्पना किसी जाती-धर्म या किसी भाषा या किसी एक समाज की नहीं होती। भारत का साहित्य एक ऐसी विधा है जो गांव की गलियाें व शहरों की चकाचौध में प्रतिभाएं सामने आती रहती है। लेकिन उत्तर बंगाल के चाय बागानों में जो प्रतिभाएं है उसे सामने लाने की जरूरत है। कड़क चाय सोधी सुगंध के बगानों से जो साहित्य और काव्य की रसधारा निकल रही है , जरूरत है तो उन प्रतिभाओं को सामने लाने की। एनईन्यूज भारत उन्ही सपनों की उड़ान को पंख देने की कोशिश कर रहा है, और उम्मीद है कि चाय बगानों की प्रतिभा सामने आएगी और अपने समाज को एक मुकाम दिलाने में कामयाब होगी। अगर सपनों का लक्ष्य एक है, संकल्प के सपनों को पूरा करना है, तो जीवन की राह में आने वाली हर बाधा उसके सपनों को पूरा करने से रोक नहीं सकती। इंसान जब सपनों की दुनियां में डूब रहा है आदिवासी समाज? उनके हसीन सपनों को पूरा करने के लिए, इस समाज को एक नई दिशा देने की जरूरत है। अगर लक्ष्य एक हो तो, कुछ पल के लिए सपनें अधूरे दिखते जरूर हैं, लेकिन वास्तव में वह अधूरापन उसे सपनों की मंजिल की तरफ लेकर जाता है। जहां सपने के अंधकार को दूर कर मंजिल के उजाले निकलते हैं। लक्ष्यों की पूर्ती, जिंदगी इम्तिहान लेती, पर लक्ष्य की प्राप्ति का संकल्प अगर सच्चे मन से हो पूरा अवश्यक होता है। साहित्य के क्षेत्र में लक्ष्य के सपनों को पूरा करने के लिए मन की भावना को काव्य रचना का रूप देने के लिए साधना की जरूरत होती है। जब काव्य रचना को प्रकाशन के मूल से जुड़ जाता है तो वही उसकी साधना से पहचान बनती है। आज न्यूज भारत एक ऐसे युवा कवित्री को स्थान दे रहा है। जिसके परिवार में कभी भी साहित्य की प्ररेणा देना वाला शायद ही कोई हो। उत्तर बंगाल के जलापईगुड़ी के नया साईली चाय बगान जन्मी और प्राथमिक शिक्षा भी उन्ही क्षेत्रों से करने के बाद वह सिलीगुड़ी को ओर रूख किया। उत्तर बंगाल विवि से हिन्दी में स्नातकोत्तर करने जुट गई। जिसका नाम है शांता सासंकर। शांता ने अपनी लगन और रूची को ध्यान में रखते हुए हिन्दी की कविताओं की ओर रूख किया और हो गई ' साधना की शख्शियत'।
'हिंदी 'स्नातकोत्तर की छात्र हूँ, उत्तर बंग विश्वविध्यालय में अध्ययनरत हूँ। जलपाईगुड़ी ग्राम पंचायत के क्षेत्र के नया साईली चाय बगान में रहती हूँ। प्राथमिक माध्यमिक उच्चमाध्यमिक की शिक्षा चम्पागुड़ी के संत कपितानिओ गर्ल्स हाई स्कूल में हुई। स्नातक की पढ़ाई "परिमल मित्र स्मृति महाविध्यालय ''(मालबजार) से पूरी की ।हिंदी साहित्य के प्रति मेरी रूझान बचपन से था। मुझे कहानी,उपन्यास ,कविता पढ़ने का काफी शौक बचपन से है। हिंदी साहित्य के प्रति रूझान स्कूल के दिनों से हुई जब हमें प्रेमचंद जैसे महान रचनाकर की कहानियों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी जितनी भी रचनाएँ है सभी मुझे प्रभावित करती है। हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है जो भारत के हर क्षेत्रों के अलावा दुनियां के कई देशों मे बोली जाती है। हिंदी भारत की राजभाषा तो बन गई पर इसकों राष्ट्रभाषा बनाने की जरुरत है, क्योंकि इससे अधिक अन्य कोई भाषा इतनी समृद्ध नहीं है।'
दो घड़ी के लिए...
दो घड़ी के लिए देखो इन फूलो को,
कैसे मुस्कुरा रहे मानो दु:ख भुलाकर
आसमानों में उड़ने को हैं।
देखो इन पेड़ पत्तियों को
कितनी हरियाली छायी है
दो घड़ी महसूस करो इनके द्वारा
दी गयी हवाओ को कितनी शीतलदायक हैं।
खाली कोटर देख पंक्षी
मेहनत कर, गुदड़ा-सिथड़ा लेकर
बना रहे अपना घर हैं
दो घड़ी बस देखो इनको
कितना इनमें जोश हैं।
देखो परिश्रम कर रहे मजदूर
बस झांको इनके अंदर
कितनी दु:ख भरी दास्ता हैं
दो घड़ी के लिए देखो इन्हें
दिखा रहे इतने खुश
पर ,कल के खाने की चिंता इनके
जहन में हैं!
देखो इन आसमानों में
तारों की उजियाली छायी है
विश्व को कर उजाला
मानो मना रहा दिवाली हैं ।
दो घड़ी के लिए जियो बस
इन्हें देख झांको अपने मन मे
कितनी शांति अब तुम्हारे मन मे हैं।
शांता सासंकर...