साधना की शख्शियत-44
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
सपनों की उड़ान में मंजिल को हासिल करने का जज्बा सबसे अहम होता है। तमाम कठिनाईयों के बीच अपने को काव्य की रचनाओं को मूर्त देना मन के लगन को दर्शाता है। बचपन से मन में काव्य की रचनाओं की उड़ान सपनों की दुनियां में गोते लगाना ही व्यक्ति के ‘’साधना की शख्शियत’’ होती है। शहरों के चकाचौंध से दूर रहने के बावजूद भी अगर काव्य की रचना लिखने का शौक रखना ही सच्ची लगन होती है। जीवन के तमाम उलझनों के बीच समय-समय पर मन के तार को काव्य की वीणा पर छेड़ने से सफलता के सुर अवश्य सुनाई देता है। ‘’बचपन कविता में मेरी रूचि रही है, अक्सर उन्हें पढ़कर मन की में रचनाओं तार बजने लगते थे। मन में लगन तो थी पर कभी लिख भी पाऊंगा ऐसा सोचा नहीं था। लेकिन मेरे हौसलों की उड़ान तब मेरे सपनों को मंजिल की ओर ले गई, जब शिक्षा का स्तर बढ़ने लगा और दिल की बात जब जुबान पर आती तो काव्य रचनाओं में मन के तार बज उठते, जिसकी वजह से मेरा लिखना संभव हुआ। कविताओं में चाय बगान के मजदूरों की दशा, प्रकृति प्रेम में गहरा लगाव है। व्यक्ति अपनी लगन और मन की बात को शब्दों के माध्यम से पन्नों पर उतारना ' साधना की शख्शियत' से होता है।
'शिक्षा एक अटल हथियार: कहा जाता है विद्या वो हथियार है जिससे आप बिना युद्ध किये हुए जंग जीत सकते हैं।और इस हथियार की ताकत है ढृढ़ संकल्प और परिश्रम, किन्तु अक्सर देखा जाता है कि कुछ असुविधाएं जीवन में ऐसे प्रवेश करती है जो समस्त परिश्रम और संकल्प को क्षण भर में चुर कर देतीं हैं। किन्तु वह सपनों को तोड़ सकती है आपके विश्वास नहीं। और मैं उन्हीं में से एक हूं जिसके आगे कोई रास्ता तो दिखाई नहीं देता किन्तु विश्वास अवस्य हैं।
हमारे क्षेत्र में मुख्यतः आदिवासी नेपाली और बंगाली बहुभाषी लोग निवास करते हैं और इसके अलावा लोगों के बीच हिन्दी को लेकर निरन्तर जागरूकता और रूचि दिखाई दे रही है, जो कि हमारी मातृभाषा के उन्नति और विकास के लिए सुखद समाचार है। मुझे बचपन से हिन्दी में रुचि रही, यही कारण है कि मैं अंग्रेजी तथा बंगला पर अधिक ध्यान केंद्रित नहीं कर सका। फलस्वरूप हिन्दी में अच्छे क्रमांक प्राप्त कर कालेज में हिन्दी ओनर्स मिल सकी। लेकिन कहते हैं ना किसी भी सपनों के बीच एक रूकावट अवस्य आती है, और वह रुकावट है मेरा मध्यम वर्गीय परिवार। मैं पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के नागराकाटा स्थित चम्पागुड़ी का निवासी हूं। जो कि मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा नागराकाटा हिन्दी माध्यमिक विद्यालय से पुर्ण कर आगे की शिक्षा बानरहाट कार्तिक उरांव हिन्दी गर्वमेंट कालेज से पुरा कर रहा हूं। मुझे बचपन से दादी द्वारा सुनाई गई कविताओं और कहानियों के कारण मुझे इन सब चीजों में बहुत रूचि रही, शायद इसी कारण मुझे "लेख" लेखन में भी सहायता रही, और अपने शिक्षकों के प्रोत्साहन से अधिक प्रेरणा भी। मैं चाहता हूं मेरे लेख द्वारा अपने समाज को उन कुछ सच्चाइयों से अवगत कराऊं जो कि समाज में है किन्तु किसी को दिखाई नहीं देती, और यही आशा रखता हूं कि मेरी एक छोटी सी कोशिश से कोई कुछ सिख सकें।'' -सुभम प्रसाद
हां मैं बागानीयां हूं!
हां मैं बागानीयां हूं!
क्या सर्दियों की सुबह
क्या बरसात वाली शाम,
पांच बजे का उठना
और सात बजे की ड्युटी,
ये तो मेरा रोज का काम
क्योंकि मैं बागानीयां हूं।
हरी घनी बागान
मानो हर रास्ते मेरे इन्तजार में,
वो पत्तियों की मुस्कान
सखी सहेली के संग
मानो हर दिन एक मेला सा,
क्योंकि मैं बागानीयां हूं।
ना डर बाघ की
ना भय सांपों से,
बाबु साहब के डर से
मानो सब फिकें पड़े,
क्योंकि मैं बागानीयां हूं।
पत्तियों की बोझ के साथ
चलते कदम मिलाकर,
वो चाय भात की सुबह
और साग भात वाली दोपहर,
क्योंकि मैं बागानीयां हूं।
वो कड़क धुप
चाहे कड़कती आसमान,
परिवार की चिंता
दबी हुई आवाज
आखिर किस्से सुनाते
अपने दिल की बात,
क्योंकि मैं बागानीयां हूं?
अब और नहीं साहब
माना हम आपके मजदुर है
चुनौतियां भरपूर है,
पर फिर भी देखते
नुपुर है,
और गर्व से कहते
हां मैं बागानीयां हूं!
-सुभम प्रसाद
नागराकाटा, चंपागुड़ी