साधना की शख्शियत-40
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
कल्पनाओं में भावनाओं को सागर एक दूसरे की पूरक होती है, अगर भावनाएं कल्पनाओं के सागर में गोते लगा रही हो तो सफलताएं अवश्य मिलती है और जिम्मेदारियों का बोझ भी कल्पनाओं की कलम रोक नहीं सकती। विभिन्न जिम्मेदारियों को बखूबी के साथ निभाने के साथ-साथ काव्य की रचनाओं को बेहतर मुकाम हासिल करना ही ‘’ साधना की शख्शियत’’ होती। इन्हीं कल्पनाओं के माध्यम से विभिन्न पदों पर रहने के साथ-साथ काव्य की रचनाओं को कुछ बेहतर करने की कोशिश करना ही सफलता का मूलमंत्र है। ‘’बचपन से लिखने के साथ-साथ नृत्य, गेम्स व मंच संचालन की रुचि रही है। लिखने की प्रेरणा मुझे मिली, कभी-कभी मेरे इर्द-गिर्द कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं, जो मेरे अंतर्मन के मानस पटल पर छा जाती हैं। तब मेरी कलम सीधी सरल भाषा में लेखनी बन जाती हैं। पांचवी कक्षा में पढ़ती थी तब पहली बार सच्ची घटना के आधार पर एक कहानी लिखी थी । शीर्षक था ‘’ठग और महाठग’’ वहीं से लिखने का सिलसिला अनवरत जारी रहा। वैवाहिक जीवन भी कभी-कभी लिख लेती थी पर वो मेरी डायरी के पन्नों तक सीमित रही। अपने जीवन में सबसे सच्ची साथी अपनी कलम को मानती हूं। आज देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, आजादी के इस जश्ने माहौल में अपनी लेखनी से एक कविता देश के लोगों के नाम।
हे मां! तुझे सलाम
हमें अपने प्राणों से प्यारा है हिंदुस्तान ,
फैहराकर तिरंगा मातृभूमि को करें प्रणाम।
लहराते ध्वज के नीचे आओ मिलकर राष्ट्रगान ,
स्वतंत्रता दिवस को मनाना हम भारतीयों का है अभिमान।
हे मां !तुझे सलाम हे मां! तुझे सलाम।
एकता ,अखंडता की रक्षा के लिए वीरो ने त्यागे थे प्राण,
कैसे भूले सेनानियों का त्याग, कठोर समर्पण और बलिदान ।
सच्चे सपूतों की स्मृति में नतमस्तक हैं देश की आवाम।
हे मां !तुझे सलाम ,हे मां! तुझे सलाम।
नमन है उन शहीदों को जिन्होंने बनाए रखा भारत माता का स्वाभिमान।
छुड़ाकर छक्का दुश्मनों के इरादे को किया नाकाम।
अनगिनत सपूतों ने दी कुर्बानी और जान।
पुष्प सुमन अर्पित कर शहीदों की शहादत का करें सम्मान।
हे मां !तुझे सलाम, हे मां! तुझे सलाम।
भारती सुजीत बिहानी
खालपाङा, सिलिगुङी