मुझे बस अमन से भरा वतन चाहिए...

बौद्ध की धरती से ड्रैगन को आज भारत देगा सख्त  संदेश

नाथुला की धरती पर विजयदशमी को रक्षामंत्री करेंगे शस्त्रुपूजा

चालबाज चीन के पर कतरने की एक और तैयारी जुटा भारत

चाइना से इस क्षेत्र में कभी अहम व्या पारिक कारोबार

पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी

शांति-सौहार्द, भाईचार और आपसी प्रेम के लिए पूरी दुनिया में भारत एक मात्र देश है जहां सर्वधर्म संवाद है। लेकिन आजकल चालबाज ड्रैगन चालबाजी से तंग बैद्ध की धरती से भारतीय सेना के साथ देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, सेना प्रमुख मुकुंद नरवने और भारतीय जवान नाथुला की वादियों से विजयदशमी के अवसर पर शस्त्ररपूजा कर सख्त  संदेश देने जा रह हैं। हलांकि सामरिक दृष्टिकोण से पूर्वोत्तयर की भारत-चीन की करीब 3500 किलोमीटर की सीमा काफी अहम है। हमारे देश के सेना के जवानों को कहना है,’’आजादी की कभी शाम नहीं होने देंगे, शहीदों की कुर्बानी के बदनाम नहीं होने देंगे। बचा है जब एक कतरा लहु का, तब तक भारत मां आंचल निलाम नहीं होने देंगें। मुझे ना तन चाहिए ना धन चाहिए, मुझे बस अमन से भरा वतन चाहिए। जब तक जिंदा रहूं इस मातृ-भूमि के लिए, और जब मरूं तो तिरंगा कफन चाहिए।‘’ इसी जज्बेै के साथ रविवार को रक्षामंत्री सिक्किम की राजधानी से करीब 54 किलोमीटर दूर करीब 14140 फीट की उंचाई से शस्त्र्पूजा करेंगे।

ऐतिहासिक और सामरिक रुप महत्वूजपर्ण है नाथूला

नाथुला पूर्वी सिक्किम जिले में हिमालय का एक पर्वतीय दर्रा है। यह भारतीय राज्य सिक्किम को चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ता है। पास, समुद्र तल से 4,310 मीटर (14,140 फीट) की ऊँचाई पर स्थित यहां प्राचीन टी हॉर्स रोड के एक हिस्से का एक हिस्सा भी है। नाथू का अर्थ है "कानों को सुनना" और ला का मतलब तिब्बती में "पास" है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक से पूर्व की ओर भारतीय मार्ग 54 किमी (34 मील) दूर है। केवल भारत के नागरिक ही गंगटोक में परमिट प्राप्त करने के बाद पास की यात्रा कर सकते हैं। नाथूला चीन और भारत के बीच तीन खुली व्यापारिक सीमा चौकियों में से एक है। अन्यी खुली सीमा में  हिमाचल प्रदेश और लिपुलेख (या लिपुलेक) में शिपकिला हैं, जो उत्तराखंड-भारत, नेपाल और चीन के त्रिदिवसीय बिंदु पर स्थित हैं। 1962 के चीन-भारतीय युद्ध के बाद भारत द्वारा नाथुला की सीमा को सील कर दिया गया था। लेकिन नाथूला पर 2006 में कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के बाद फिर से खोला गया था। नाथुला के सड़क मार्ग खुलने के बाद से इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिंदू और बौद्ध तीर्थ स्थलों की यात्रा की दूरी कम हो जाती है। इसके साथ ही उम्मीद की जा रही थी कि बढ़ते चीन-भारतीय व्यापार में नाथुला सीमा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। हालांकि, व्यापार विशिष्ट प्रकार के सामानों और सप्ताह के विशिष्ट दिनों तक सीमित है। भूटान के दूर के पहाड़, तिब्बती पक्ष, और अंतरराष्ट्रीय सीमा बाड़ जैसा कि नाथूला में भारतीय पक्ष से देखा जाता है। संबंधों में सुधार के लिए दोनों सेनाओं के बीच नियमित परामर्श और बातचीत के लिए भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच आधिकारिक रूप से सहमत बॉर्डर पर्सनेल मीटिंग पॉइंट्स में से नाथुला भी एक महत्वूापर्ण स्था न है।

नाथुला का इतिहास

नाथूला 563 किमी (350 मील) पुराने सिल्क रूट पर स्थित है और ऐतिहासिक सिल्क रोड का केंद्र है। पुराने सिल्क रूट तिब्बत में ल्हासा को बंगाल के मैदानों से दक्षिण में जोड़ता है। जो 1815 में सिक्किम के नेपाली और भूटान से संबंधित ब्रिटिश एनेक्सिटेड प्रदेशों के बाद व्यापार की मात्रा बढ़ गई। नाथूला की क्षमता का एहसास 1873 में हुआ था। जब दार्जिलिंग के उपायुक्त ने सिक्किम और तिब्बत के बीच पहाड़ के पास के सामरिक महत्व पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। दिसंबर 1893 में, सिक्किम के राजशाही और तिब्बती शासकों ने दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया और ट्रेड पास खुलने पर 1894 में समझौते को लागू किया गया।  

पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है नाथूला का विहंगम दृश्य

नाथूला ने 1903-1904 में तिब्बत पर ब्रिटिश अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसने रूसी साम्राज्य को तिब्बती मामलों में दखल देने से रोका और इस तरह इस क्षेत्र में एक पैर जमाने में मदद की। 1904 में मेजर फ्रांसिस यूनुगसबैंड जो तिब्बत में ब्रिटिश कमिश्नर के रूप में कार्यरत थे।  उन्होंंने ल्हासा पर कब्जा करने के लिए नाथूला के माध्यम से एक सफल मिशन का नेतृत्व किया। इसने तिब्बत में गाइंट और गंगटोक में व्यापारिक पदों की स्थापना की और अंग्रेजों को आसपास की चंबी घाटी पर नियंत्रण कर लिया। वहीं अगले साल नवंबर में चीन और ग्रेट ब्रिटेन ने सिक्किम और तिब्बत के बीच व्यापार को मंजूरी देने वाले एक समझौते की पुष्टि की। वहीं नाथुला के प्राकृतिक नजारे में वर्फ से ढकी वादियां और छांगु झील पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्रर बना हुआ है।  

नाथूला में चीनी और भारतीय सैनिक एक साथ

1947 और 1948 में भारत की आजदी के बाद से सिक्किम का झुकाव भारत की ओर था। इसके लिए स्वतंत्र भारत में शामिल करने के लिए मतदान तो किया गया, लेकिन विफल हो गया। लेकिन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू सिक्किम के लिए एक विशेष रक्षक का दर्जा देने पर सहमत हुए और सिक्किम भी संरक्षित राष्ट्र बनने के लिए सहमत हो गया। इसके बाद से ही भारतीय सैनिकों को नाथूला सहित अपनी सीमाओं पर जाने की अनुमति दी गई। इस अवधि के दौरान नाथूला के माध्यम से 1000 से अधिक खच्चर और 700 लोग सीमा पार व्यापार में शामिल थे। 1949 में जब तिब्बती सरकार ने वहाँ रहने वाले चीनियों को निष्कासित कर दिया। तो अधिकांश विस्थापित चीनी नाथूला-सिक्किम-कोलकाता मार्ग से घर लौट आए।

दलाई लाम का केन्द्र भी है सिक्किम

उसी दौरानी दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने इस पास का उपयोग गौतम बुद्ध के 2500 वें जन्मदिन समारोह के लिए भारत की यात्रा के लिए किया था। जो नवंबर 1956 और फरवरी 1957 के बीच आयोजित किया गया था। वहीं 01 सितंबर 1958 को नेहरू उनकी बेटी इंदिरा गांधी और पाल्डेन थोंडुप नामग्याल (के बेटे और आंतरिक मामलों के सलाहकार-ताशी नामग्याल सिक्किम के चोग्याल) ने इस पास का उपयोग किया।  1950 में जब पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया और 1959 में तिब्बती विद्रोह को दबा दिया। सिक्किम में पास तिब्बत से आए शरणार्थियों के लिए शरणगाह बन गया। वहीं 1962 के चीन-भारतीय युद्ध के दौरान नाथूला ने दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें हुई। इसके तुरंत बाद नाथुला और तिब्बकत के मार्ग को सील कर दिया गया। चार दशकों से अधिक समय तक बंद रहा। इसके बाद ही 7 और 13 सितंबर 1967 के बीच भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और भारतीय सेना के पास कई बार सीमा झड़पें हुई थीं। इसके बाद ही 1975 में सिक्किम-भारत हिस्साम बन गया और नाथूला भी भारतीय क्षेत्र का हिस्सा बन गया। हालाँकि चीन ने उस समय भी सिक्किम की स्वाभयता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। लेकिन भारतीय सेना के दबाव के कारण सिक्किम भारत का अभिन्ना अंग बन गया।