सार्जेंट का द्रोह और गांधी नीति

भारतीय इतिहास में गांधी, शब्द वह है जो चिर परिचित शब्द है। गांधी को ना केवल आजादी में योगदान के रूप में याद रखा जाना चाहिएl बल्कि उनका व्यक्तित्व भी अद्भुत रहें है, वह विश्लेषण के लिए आधार प्रस्तुत करता है! मुख्य रूप से राजनीतिक विश्लेषण हेतु। गांधी की राजनीतिक पकड़ और दृष्टि विशिष्ट थी । उन्हें एक राजनीतिज्ञ के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।  गांधी की यात्रा की शुरुआत भारत की धरती से ना होकर साउथ अफ्रीका की जमीन से हुई। गांधी अपनी पढ़ाई खत्म करके भारत जरूर आए, किंतु वह शीघ्र ही साउथ अफ्रीका चले गए वहां उनका पहला सत्याग्रह हुआ जो सफल सत्याग्रह रहा। विदेशी भूमि पर, विदेशी लोगों के लिए और विदेशी लोगों के विरुद्ध अपने देसी तरीके से सत्याग्रह का सफल प्रयोग अपने आप में अद्भुत था। इस कार्य में व्यतीत गांधी का वह समय उनके जीवन का महत्वपूर्ण समय समझा जा सकता है।  समय पूर्ण आत्मविश्वास का था। इस दौरान गांधी ने राजनीति और राजनीतिक प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में महारत हासिल कर ली थी । उनका  साउथ अफ्रीका की जमीन पर किया गया शुरुआती दौर में अवश्य ही बहुत ही कठिनाईयों आई होंगी, किंतु वह दौर गांधी का अनुभव बनता चला गया। राजनीति को अगर प्रबंध के समझ के साथ, की जाए तो सफलता तो अवश्य ही मिलेगी, और गांधी ने इसी आधार पर सफलता हासिल की थी l गांधी को साउथ अफ्रीका की जमीन पर समझ आ गया था,  की राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए या नेतृत्व के लिए संवाद बहुत जरूरी है l एक संस्था का होना जरूरी है। उन्होंने साउथ अफ्रीका में इस हेतु नेटोल इंडियन कांग्रेस नाम की संस्था का गठन किया। साथ ही इंडियन ओपिनियन नाम से समाचार पत्र भी निकाला। उन्होंने वहां कुछ आश्रम भी बनाए जहां से कार्य को संचालित किया जा सके। यह सभी अनुभव उन्होंने साउथ अफ्रीका में रहते हुए प्राप्त किए जिनका सीधा प्रयोग भारत की जमीन पर उनके द्वारा किया गया। एक राजनीतिज्ञ के लिए यह सभी व्यवस्थाएं एक आधारभूत औजार की तरह कार्य करती है ।

 यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रजातंत्र में विचारधारा को स्थान दिया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए कुछ विचार “केसर ए हिंद” की उपाधि को लेकर गांधी की आलोचना का आधार भी बने। किंतु गांधी राजनीतिज्ञ विचारधारा वाले व्यक्ति थे। वह दूसरे उनके बारे में विपरीता रखें इससे अधिक महत्वपूर्ण सही कार्य की दिशा में बढ़ना समझते थे। भारत उस तात्कालिक परिस्थिति में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खड़ा था l जहां भारत को अंग्रेज हेय दृष्टि से देखते थे। यूं तो वह शासक भी थे, दूसरा वह अपने जीवन को श्रेष्ठ समझते थे। ऐसी स्थिति में एक टेबल पर समान स्तर से बात करना भारतीयों के लिए चुनौती थी।

प्रतिनिधि और मध्यस्थ दोनों शब्दों में पर्याप्त अंतर है। प्रतिनिधि वह व्यक्ति होता है जो दूसरे पक्ष के लिए अविश्वसनीय या शत्रु होता है। जबकि मध्यस्थ वह व्यक्ति है जो दोनों पक्षों के लिए मित्रवत होता है। उस काल में प्रतिनिधि हो जाना सरल हो सकता था। किंतु समांयोजक होना कठिन था। गांधी ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो उस समय अंग्रेजों और भारतीयों के अनेक मुद्दों में मध्यस्थता की भूमिका में दिखाई दिए। चाहे वह 1917 का चंपारण का आंदोलन हो, जो बिहार की कठीया पद्धति के संबंध में रहा था, या 1918 में अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन। गांधी ऐसे अनेक जगह मध्यस्था स्थापित करने की भूमिका में सामने आए यह किसी भारतीय के लिए उपलब्धि थी।

 भारत में 1914 के विश्व युद्ध के समय पूर्ण स्वराज की मांग नहीं की गई थी। बल्कि भारत अपनी छोटे-बड़े अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था । सरकार कुछ देने को तैयार नहीं थी । ऐसी विपरीत परिस्थिति में गांधी ने राजनीति में मध्यस्थता की भूमिका के लिए प्रयास किया और इसे हेतू गांधी को ‘केसर ए हिंद’ की उपाधि भी मिली । बाद में गांधी ने उसे लौटा दिया। गांधी अंग्रेजी की सहायता कुछ इस तरह कर रहे थे जैसे कोई एक देश दूसरे देश की मदद करता है, या ऐसा कहा जा सकता है कि गांधी भारत को एक देश की मान्यता प्रदान कर रहे थे, जो कि उनकी व्यक्तिगत सोच रही होगी। गांधी का यह कूटनीति सोच ब्रिटेन की कूटनीति सोच से टकरा गया । गांधी को “केसर ए हिंद” की उपाधि देकर अंग्रेजों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वह अंग्रेजों की कर्मचारी/ एजेंट एजेंट के रूप में कार्य कर रहा है। कूटनीति का खेल राजनीति में अक्सर देखने को मिलता है और इतिहास हमेशा सीखने के लिए बहुत कुछ  छोड़ जाता है। जन्म लेने वाला एक व्यक्ति ही समझदार नहीं है दूसरा भी है।  और उच्च स्तर  पर उनका विश्लेषण करना विकास को आधार प्रदान करता है ।   गांधी ने हमेशा से परिवर्तन को स्वीकार किया। बदली हुई परिस्थिति के अनुसार अपने विचार को भी बदला। एक समय था जब गांधी ने मध्यस्था को स्वीकार किया। दूसरा समय था, गांधी ने कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की  मांग की। और अंत में करो मरो की नीति  को भी गांधी ने स्वीकार किया। इसको लेकर अंग्रेजो ने गांधी को देशद्रोही की उपाधि से नवाजा गया ।

गांधी का यह एजेंट से लेकर देशद्रोही तक का सफर महत्वपूर्ण रहा। गांधी एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका में आए,  जिन्होंने देश के सभी वर्गों का देश के लिए प्रयोग किया । स्वतंत्रता की लड़ाई का हिस्सा बनाया। जागरूक बनाया।  प्रत्येक महान व्यक्ति अपनी कार्यक्षेत्र और उद्देश्य के लिए भली-भांति जागरूक होता है । वह किस प्रकार की योजनाओं और कार्यों का चयन करता है, यह वह स्वयं तय करता है । गीता में लिखा है प्रत्येक कर्म कुछ ना कुछ  दोष से अवश्य युक्त होता है । जैसी पवित्र अग्नि का दोष उसका धुआ है। प्रत्येक कर्म का चयन तत्कालिक परिस्थिति के अनुसार होता है । इसलिए इतिहास पर प्रश्नचिन्ह लगाने का अधिकार वर्तमान का नहीं होता । वर्तमान का अधिकार सिर्फ इतिहास को विश्लेषण करके सही दिशा प्राप्त करके अपना पथ प्रदर्शन करना है । भूतकाल कितना भी श्रेष्ठ या दोष युक्त हो वर्तमान को श्रेष्ठता का ही चयन करना है, क्योंकि भविष्य उसके विश्लेषण के लिए तैयार खड़ा है।

पूजा आर झेरीवाल

अलवर राजस्‍थान