पुलिस सुधारों का समय...?

' हमारी राज्य सरकारें देश के राज्‍यों के पुलिस सुधार के लिये कितनी संजीदा हैं, यह इस बात से समझा जा सकता है। जब गृह मंत्रालय ने वर्ष 2017 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 153 अति महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पर विचार करने के लिये देश भर से मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया, जिसमें पुलिस सुधार पर चिंतन-मनन होना था। तो इस सम्मेलन में देश के अधिकतर राज्‍यों के  मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहे। आज भी ज़्यादातर राज्य सरकारें पुलिस सुधार के मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने को तैयार नहीं हैं। यह आनाकानी पुलिस सुधार को लेकर उनकी बेरुखी को ही दर्शाती है। इसका प्रमुख कारण है क‍ि अपनी राजनैतिक महत्‍वाकांक्षा जो पुलिस बल को प्रयोग कर करना चाहती है.?।'

'मैं जिन सम्भावित पुलिस सुधारों की बात की गई है मौजूदा वक्त में तत्काल आवश्यक हैं। एक बड़े व्यापक स्तर पर पुलिस फ़ोर्स सुरक्षा और विश्वास से जनता की सहायता करती है जिसमे केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।'मगर राजनीतिक दबाव के चलते अभी भी पुलिस का काम पूरी तरह स्वतंत्र नही है।यहाँ तक कि संगीन मामलो में सी बी आई जैसी बड़ी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी भी इस तरह के निराशाजनक और तनावपूर्ण माहौल में सही परिणाम नही दे पाती है। ये अच्छा सन्देश है कि सरकार सुरक्षित वातावरण बनाने को लेकर गम्भीरता दिखा रही है और इससे जुड़े पहलुओं पर विचार कर रही है।"पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो" के स्थापना दिवस पर गृह मंत्री के कथन तो यही विश्वास दिलाते हैं कि अब आने वाला समय बेहतर सुरक्षित और विश्वस्त समाज लेकर आ सकता है।ये भी सही है देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुचाने के लिए आमूल चूल ज़रूरी है जो कि सभी को एकमत कर के ही सम्भव होगा।मंत्री ने ये सही कहा है क़ि आज़ादी के 70 साल बाद भी पुलिस अंग्रेज़ो के बनाये हुए उनके नहितार्थ आई पी सी और सी आर पी सी के पुराने नियमो पर ही काम कर रही है। इसमें अब बदलाव की अति आवश्यकता है।अभी भी जाँच एजेंसी और पुलिस तकनीकी आधार पर निर्भर रहकर मामलो का खुलासा करती है फिर भी बैलेस्टिक और फोरेंसिक जांच उतनी सटीकता से नही मिल पाती।इसके लिए उचित ट्रेनिंग की दरकार है। हर राज्य मेंबढ़ते  अपराध पुलिस की इसी कमजोरी का नतीजा हैं।इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर "फोरेंसिक साइंस विश्वविद्यालय"और अपराधियो की मानसिकता को जान्ने समझने के लिए "मोड्स आप्रेण्डि ब्यूरो"बनाया जाये।क्योकि पुलिस को अपराधियो से हमेशा आगे रहने की सलाह दी जाती है जिससे कानून का इकबाल बढ़े और लोगों को पुलिस की कार्यप्रणाली पर भरोसा हो।जांच एजेंसी सी बी आई 

लेखक: सौरभ शुक्‍ल, एल डी ए कॉलोनी कानपुर रोड लखनऊ, उत्तर प्रदेश