• उत्तर बंगाल के उपेक्षा पर सवाल, मुख्यमंत्री का दौरा बना राजनीतिक छलावे का प्रतीक
• उत्तर बंगाल की अनदेखी: वादों की घोषणाएं, ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर
• शिक्षक भर्ती घोटाला और मुर्शिदाबाद हिंसा पर ममता सरकार की चुप्पी सवालों के घेरे में
एनई न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हालिया उत्तर बंगाल दौरा एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। कोलकाता में शिक्षक भर्ती घोटाले के खिलाफ जारी तीव्र विरोध प्रदर्शन के बीच उनका यह तीन दिवसीय दौरा राजनीतिक जवाबदेही से बचने की एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। विरोध कर रहे हजारों प्रभावित शिक्षकों को नजरअंदाज करते हुए मुख्यमंत्री का राजधानी छोड़कर उत्तर बंगाल का दौरा करना सवालों के घेरे में है।
उत्तर बंगाल, जिसे अक्सर सरकार की उपेक्षा का सामना करना पड़ा है, को इस दौरे से भी कुछ विशेष हासिल नहीं हुआ। तीस्ता बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा न करना और पीड़ितों को राहत न देना इस उपेक्षा का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इसके बजाय मुख्यमंत्री ने आईटी पार्क, औद्योगिक पार्क और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र जैसी योजनाओं की घोषणाएं कर दीं—जिनका जमीन पर उतरना अब भी संदेह के घेरे में है।
राज्य में पिछले 12 वर्षों में कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हुआ है। कई पुराने उद्योग भी राज्य के बिगड़ते औद्योगिक माहौल के कारण बंद हो चुके हैं या पलायन कर चुके हैं। उत्तर बंगाल में एम्स अस्पताल, दार्जिलिंग में सैनिक स्कूल और कलिम्पोंग में मेडिकल कॉलेज की मांगें वर्षों से लंबित हैं, जबकि मुख्यमंत्री पांच सितारा कन्वेंशन सेंटर जैसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देती दिख रही हैं।
इसके अलावा, राज्य सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में बांग्लादेश सीमा पर बाड़बंदी, एकीकृत चेक पोस्ट और पर्वतमाला परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अब तक उपलब्ध नहीं कराई है। रेलवे परियोजनाओं, जैसे रंगापानी और बीरपारा में रेल-ओवर-ब्रिज, के लिए भी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) नहीं दिए गए हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है—अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और उपकरणों की भारी कमी है। विश्वविद्यालय अस्थायी ढांचों में संचालित हो रहे हैं, जहां स्थायी शिक्षकों का अभाव है। चाय उद्योग, जो इस क्षेत्र की रीढ़ रहा है, गंभीर संकट में है, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस सहायता नहीं मिल रही है।
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए घोषित ₹3.08 लाख करोड़ के राज्य बजट में उत्तर बंगाल विकास विभाग को मात्र 0.28% आवंटन दिया गया है, जो क्षेत्रीय असंतुलन की पुष्टि करता है।
मुख्यमंत्री द्वारा हर दौरे पर “चा सुंदरी” योजना की घोषणा की जाती है, लेकिन चाय श्रमिकों को ज़मीन के अधिकार या न्यूनतम मजदूरी की गारंटी अब तक नहीं मिली है। ये केवल राजनीतिक दिखावे तक सीमित घोषणाएं प्रतीत होती हैं।
इसी बीच, मुर्शिदाबाद में हालिया हिंसा में स्थानीय टीएमसी नेताओं की भूमिका पर कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट गंभीर सवाल खड़े करती है। रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस घटनास्थल पर "पूरी तरह निष्क्रिय और अनुपस्थित" रही, जिससे कानून-व्यवस्था पर सरकार की पकड़ पर संदेह गहराया है।
उत्तर बंगाल के लोग अब समान विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं। ममता बनर्जी के नेतृत्व को इन सवालों का जवाब देना होगा या फिर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा देना होगा।