कोयल, तोता, मोर , पपिहा सब मिलकर...

सावन के महीने में मौसम बहुत लुभावना होता है।  चारों और छाए हुए काले बादल, सूरज का लुका-छिपी खेलना, वर्षा की बूँदों की आवाज यह सब मिलकर बड़ा मनोहारी वातावरण बनाती हैं।  ऐसे वातावरण में मनुष्य का मन तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता है।  उसके मन में इच्छाएँ जागती हैं फिर समाप्त हो जाती हैं।

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

सचमुच मेघों को घिरते हुए देखने के लिए किसका मन नहीं मचलता ?  मगर उन्हें देखकर हर किसी के मन में सवाल भी उठता है कि साफ-सुथरे नीले आसमान में आखिर ये मेघ अचानक कहां से आ जाते हैं?   जल की वे लाखों-करोड़ों नन्हीं बुंदकियां मिलकर मेघों, यानी बादलों को जन्म देती हैं। तभी तो वे जलद या जलधर भी कहलाते हैं। बूंदें और अधिक ठंडी हो जाने पर आपस में मिलकर बड़ी बूंदें बन जाती हैं। वे भारी बूंदें ही बादलों से टपककर रिमझिम वर्षा के रूप में धरती पर बरस जाती हैं। या, कभी बर्फ बनकर ऊंचे बनकर ऊंचे ठंडे पहाड़ों में फूलों की पंखुड़ियों की तरह आसमान से झरने लगती हैं। इस मौसम में उफनती नदियों-नालों, हरे-भरे धुले हुए जंगलों और इनसे निकल आए अनगिनत जल-प्रपातों और निरंतर भीगे वातावरण के कारण ‘घाटिया टी गार्डेन’ का सौंदर्य अपने यौवन पर होता है। इसीलिए लोगों को मॉनसून का इंतजार रहता है, ताकि बौछारें उन्हें अंदर तक भिगो जाएं और मॉनसून की अठखेलियां और ठंडक अगले मॉनसून तक बनी रहे। इन्‍हीं खूबसूरत नील गगन के तले काली जुल्‍फों की तरह विखरे काले-काले मेघा पर विद्या दास की कविता आधारित है। प्रस्‍तुत है ‘’मेरे अल्‍फाज’’ में य कविता अगर अपको पसंद आए तो वेवसाइट पर पेज परप कमेंट करना ना भूलें।

    काले-काले बरसते मेघ

काले-काले मेघ, जो बूँदों से भर जाती है,

जिसके आने की इन्तजार हर रोज सताती हैं।

जिसकी बूंदे मन को सुकून पहुँचाती है,

जो चारो ओर सदाबहार रंग भर जाती है ।

ये बूंदे जब जल बनकर बरसती हैं,

तब सारा संसार आनंदमय हो उठती है ।

यह बूंदे , जो पूरे क्षेत्र में, सुख और हरियाली लाती है,

कोयल, तोता, मोर , पपिहा सब मिलकर गुनगुनाते हैं ।

ये काले-काले मेघ शांत मिजाज के साथ नहीं बरसती,

ये काले-काले मेघ बरस कर तेज आवाज में गड़गड़ाहट करती है।

ये काले-काले मेघ दर्द से भरी बारिश की तरह है।

जैसे ये काले-काले मेघ बरस कर  ,

हर पल कुछ कहना चाहती है।

ये काले-काले मेघ बरसकर ,

कहीं बाढ़ , कहीं सूखा, कहीं यह कहर ढाती है।

इन काले-काले मेघों से अंधेरा छा जाता है ,

इसकी गड़गड़ाहट जैसे प्राकृतिक वेदनाओ में लिन हो जाती है ।

ये बारिश मेघ बनकर आज आसमानो मे कुछ थम सी गई है,

ऐसा लगता है कि कुछ खामोश सी छाई है।

पूरा माहौल शांती से घबराई है,

अचानक एक बूँद टपकी, खुशीयो की बारिश आईं है ।

विद्या दास

घाटिया टी गार्डेन पश्चिम बंगाल