भय के बीच निभर्यता का अलख जगा रही निर्भय दीदी

3000 गांवों को लिया गोंद, आर्थिक, राजनैतिक व सामजिक सुरक्षा का लक्ष्‍य

भयमुक्‍त समाज की स्‍थापना, निर्भय ग्राम की कल्‍पना के लिए निर्भय प्रतिनिधि बनाया  

मार्दानी की रानी को किया था सम्‍मानित, कहा- अपराध की रोकथाम में पुलिस की भूमिका को आदर्श बनाता

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

उत्‍तर बंगाल की धरती, खासकर नेपाल और बंगलादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों मानव तस्‍करी का गोरखधंधा अक्‍सर परवान चढ़ता है। गरीबी और आर्थिक विपन्‍नता के कारण लोग दलालों के चंगुल में फंसकर खासकर महिलाओं की तस्‍कारी का गोरखधंधा परवान चढ़ता है। रोजगार का झांसा देकर उन्‍हें या तो देश के बड़े शहरों में बेंच दिया जाता है, या उन्‍हें बंधक बनाकर रखा जाता है। महिलाओं की इसी दर्द को बेदर्द करने के लिए उत्‍तर बंगाल के नेपाल के तराई क्षेत्रों में रंगु शौर्या अपने एक संगठन के साथ महिलाओं का उद्धार कर रही है। तो वहीं दूसरी ओर भारत-बंगलादेश की सीमा मालदा, मुर्शिदाबाद की सीमाओं पर समाज सेवी उत्‍तर बंगाल की बेटी श्रीरुपा मित्रा चौधरी जो निर्भय दीदी के नाम से भय और आतंक के बीच निभर्यता का अलख जगा रही। उन्‍होंने इस क्षेत्र में निर्भय ग्राम के साथ महिलाओं के निर्भय प्रतिनिधी बनाया, जिससे शोषित और पीडि़त समाज के लोगों के जीवन को सामाजिकता के रुप रंग में ढालने का निरंतर प्रयास कर रही है। हलाकिं दीदी अपने लक्ष्‍य को अंजाम तक पहुंचाने में सफल भी हो रही है।

एक बातचीत के दौरान निर्भय दीदी ने बताया कि भारत-पाक के बंटवारे के बाद बचपन मालदा-मुर्शिदाबाद की सीमा पर बीता जो अब बंगलादेश की सीमा हो गई। सीमा पर मानव तस्‍करी का बोलबाला था, लोग भय और आंतक के बीच जी रहे थे। उत्‍तर बंग विवि से मास्‍टर की डिग्री करने के बाद समाजिक जीवन में प्रवेश किया तो बचपन की यादें और उसमें दिखने वाले लोगों के दर्द को आत्‍मसात करने की प्रयास किया। सपना था कि लोगों के दिलों से सबसे पहले भय को निकालना है। उसके बाद उन्‍हें आर्थिक आधार पर समंपन्‍न करना और उसके बाद उन्‍हें राजनैतिक सुरक्षा देना है। सपनों को अंजाम देने के लिए जब रास्‍ते पर निकली तो कई बाधाएं आई, पर हौसला बुलंद था, और रास्‍ते के कांटे फूल बनते गए।

दीदी ने कहा कि हम लक्ष्‍य को लेकर जब निकले तो राहें मुश्किल लग रही थी पर धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और कांरवा बनता गया। जिस क्रम में भारत-बंगलादेश के 3000 गांवों को गोंद लिया और उन्‍हें निर्भय ग्राम बनाने का सपना देख रही हैं। इसके बाद गांव की महिलाओं को निर्भय दीदी को नाम दिया उन्‍हें जीने की कला को सिखाया तो मेरा ही नाम सभी ने निर्भय दीदी कर दिया। इसके बाद से मैं श्रीरुपा मित्रा चौधरी से निर्भय दीदी बनकर उन्‍हें निर्भय करने का प्रयास कर रही हूं। इसके बाद मेरे काम को देखते हुए एक स्‍वयंसेवी संगठन नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर जस्टिस का अध्‍यक्ष बना दिया। इसके बाद जिम्‍मेदारियों को बोझ तो बढ़ गया और इसके साथ हौसलों की उड़ान को पंख लग गए।

उन्‍होंने रानी मुखर्जी के अभिनय की बालीबुड़ फिल्‍म मार्दानी  की चर्चा करते हुए जब फिल्‍म रिलीज हुई तो समाज में एक नया संदेश गया था। जिससे प्रभावित होकर मेरी संस्‍था नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर जस्टिस ने रानी मुखर्जी को "मर्दानी" के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा को उजागर करने और बाल-तस्करी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था। पुरस्कार समारोह इंडियन हैबिटेट सेंटर में हुआ और यह घटना तस्करी की रोकथाम के राष्ट्रीय सम्मेलन पर आधारित थी। आयोजन का विषय था "यूनिफॉर्म इंस्पायरिंग चेंज ऑफ प्राइड"। दीदी ने सम्‍मान समारोह के दौरान मर्दानी फिल्म में रानी की भूमिका की सराहना करते हुए, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर जस्टिस की चेयरपर्सन, श्रीरूपा मित्र चौधरी (निर्भय दीदी) ने कहा, कि "मर्दानी में रानी मुखर्जी का शक्तिशाली और निडर प्रदर्शन महिलाओं के खिलाफ अपराध की रोकथाम में पुलिस की भूमिका को आदर्श बनाता है, खासकर लड़कियों की तस्करी। व्यावसायिक यौन शोषण के लिए बच्चा। मुझे लगता है कि वह वर्दी के गौरव का प्रतीक है और बदलाव को प्रेरित करता है। यही कारण है कि हमने कलात्मक प्रदर्शन में उत्कृष्टता के लिए उसे सम्मानित करने का फैसला किया गया था।

मालूम हो कि श्रीरूपा मित्र चौधरी (निर्भय दीदी) समाज सेवा के साथ भारतीय जनाता पार्टी (भाजपा) की नेत्री है उन्‍हें भाजपा ने किसान मोर्चा का उपाध्‍यक्ष बनाया गया है। जहां अपने समाज सेवा के माध्‍यम से किसानों को जागृत करने के साथ ही भयमुक्‍त समाज की स्‍थापना के लिए महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वहीं दक्षिण मालदा लोकसभा क्षेत्र के प्रतिनिधित्‍व की जिम्‍मेदारी दी गई है जिसे वह बखूबी निभा भी रही है।