स्वैछिक सेवा निवृति का बढ़ना, बीएसएफ के लिए चिंता का विषय, ध्यान देने की जरूरत
आज के दौर में देश की आंतरिक व सीमा की सुरक्षा में बीएसएफ फ्रंट लाइन पर
बीओपी पर जवानों व अधिकारियों की सुविधाओं पर सरकार के अहम नजरिये की जरूरत
पांच दशकों में देश की भौगोलिक स्थितियों में बहुत बदलाव, कार्यशैली भी बदला
'बीएसएफ-द आइज एंड इयर्स ऑफ इंडिया'में सुझाव के साथ बीएसएफ के पांच दशकों का होगा इतिहास
'1977 में बीएसएफ की सेवा में शामिल होने के बाद मैंने पंजाब और काश्मीर के आतंकवाद को बड़े ही नजदीक देखने के साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीएसएफ के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक जनरल (एडीजी) संजीव कृष्ण सूद का मानना है कि देश की शांति, प्रगति और स्थिरता के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा महत्वपूर्ण है, और इसलिए सरकार को इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना चाहिए। वहीं बीएसएफ व सेना के स्वैछिक सेवा निवृति (वीआरएस) को खतरनाक मानते हैं। हलांकि वह अपनी आने वाली किताब में 'बीएसएफ-द आइज एंड इयर्स ऑफ इंडिया' में तमाम पहलुओं पर बड़ी बारिकियों से बीएसएफ की समस्या और सुझाव पर प्रकाश डाला है।'
पवन शुक्ल , सिलीगुडी
संपूर्ण भारत, की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा प्रहरी का वास्तविक मतलब होता है, सीमा सुरक्षा बल (बीएएसएफ)। देश के अंदर होने वाली आतंकी गतिविधिया व दंगे जैसी धटनाओं पर अगर कारगर बल कोई है तो बीएसएफ है। इसके साथ पड़ोसी देश पाकिस्तान व बंगलादेश की सीमा नियंत्रण रेखा (एलसी) पर भी फ्रंट लाइन प्रहरी की भूमिका में आज महत्वपूर्ण भूमिका बीएसएफ निभाते हुए देश की सेवा में सतत् प्रयत्नशील है। हलांकि इन पांच दशकों में जहां बीएसएफ के विस्तार की कहानी बेहतर हुई है, तो उनकी समस्याओं में भी तेजी से इजाफा हुआ है। जिसके कारण वीआरएस (स्वैछिक सेवा निवृति) लेने वाले जवानों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है और यह सरकार के लिए सोचनिय है। ‘बीएसएफ की सेवा में मैं जब शामिल हुआ तो 75 बटालियन में लगभग 90000 बल की ताकत थी, और अब लगभग 2.5 लाख जवानों और अधिकारियों की मजबूत टीम हो गई है। उस दौरान आतंकवाद के साथ देश में अपराध कम थे, देश की सीमाओं पर आबादी कम थी, वहीं उनके साथ हितों का टकराव कम था। पहले सीमाओं पर बाड़ नहीं लगाई जाती थी, लेकिन सीमा की सुरक्षा में बाड़ लगाने से बहुत बदलाव आने के साथ उग्रवाद ने भी परिस्थितियों को बदल दिया है। वहीं बीएसएफ अब उग्रवाद को खात्मा करने में मजबूती से शामिल है। नतीजन अब सीमा के अलावा देश की आंतरिक सुरक्षा में सैनिकों की तैनाती से सीमा पर दबाव बढ़ गया है। वहीं उस दौरान संचार के साधन इतने विकसित नहीं थे, सीमाओं पर आवाजाही मुश्किल थी। अब तकनीकी विकास के साथ सीमाओं पर सड़कों के बेहतर नेटवर्क से आवागमन आसान हो गया है। जिसके माध्यम से जवान आसानी से अपने परिवारों तक पहुंच सकते है और बात कर सकते हैं यही कारण है कि घर पर एक छोटी सी समस्या भी उन्हें वास्तविक समय में सीमा पर बेचैन कर देती है। यह समस्या कमांडरों की प्रशासनिक समस्याओं को बढ़ा रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में बल और सरकार के नेताओं को बेहतर गतिशीलता के प्रेरणा के माध्यम से बल को आधुनिक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सैनिकों को बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) पर बेहतर रहने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। जवानों के कैरियर के विकास और मुआवजा के साथ बेहतर पैकेज देना चाहिए जिससे अधिकारियों और जवानों के ध्यान को आकर्षित करने में सहायक हो। वहीं वेतन और भत्तों को पारदर्शी के साथ तुलनात्मक नहीं होने के कारण स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए बड़ी संख्या में बल कर्मियों के आने के कारण बीएसएफ समेत सभी बलों के लिए खतरनाक साबित होगा। परिणाम स्वरूप नेताओं को इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।
पूर्व एडीजी ने एक बातचीत में अपने शुरूआती दौर की चर्चा करते हुए बताया कि जब मैं बीएसएफ में शामिल हुआ तो मैं बहुत छोटा और आदर्शवादी था। मैं वर्दी में राष्ट्र की सेवा करना चाहता था और यह पहली नौकरी थी जिसे मैंने चुना। मुझे वर्दी पहनने में बहुत गर्व महसूस हुआ। जब मैं एक वर्ष के कठिन प्रशिक्षण के बाद अपनी यूनिट में गया तो अधिकारियों ने मेरा स्वागत किया और एक परिवार की तरह लगले लगा। कुल मिलाकर बीएसएफ की सेवा का यह एक शानदार अहसास था।
देश में बढ़ रहे आतंकवाद के खात्में में बीएसएफ के साथ अपनी भूमिका की चर्चा पर श्री सूद ने बताया कि कश्मीर में मेरा दो कार्यकाल 1978 से 1980 तक और दूसरा 1994 से 1996 तक। दोनों कार्यकाल मैं नियंत्रण रेखा पर थे। हलांकि पहले कार्यकाल के दौरान स्थिति पूरी तरह से सामान्य थी। लेकिन दूसरे कार्यकाल काश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था। आतंकवादियों के साथ सुरक्षा बलों से मुठभेड़ों पर कई हमले हुए। वहीं नियंत्रण रेखा पर हथियारों और गोला-बारूद की बड़ी मात्रा की आता था, और नियंत्रण रेखा पार करने के लिए आतंकवादियों के प्रयास किए जा रहे थे। जो वर्तमान में, स्थिति गंभीर बनी हुई है। हलांकि जवानों की चौकसी से उग्रवाद का स्तर थोड़ा कम हुआ है। लेकिन जमीनी स्तर पर नागरिकों के बीच बहुत नाराजगी है, जो लोग 370 के संशोधन/निरस्तीकरण के सही रूप से नहीं जानते हैं। वहीं जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था, तो आपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के दौरान हमारी बीएसएफ कमांडो टीम को गेट ऑफ़ गोल्डन टेम्पल के पास स्थित होटल टेम्पल व्यू को आतंकवादियों से खाली कराने की जिम्मेदारी दी गई। दुख यह है कि हमने इस ऑपरेशन में आरेशन के दौरान दो जवानों को खो दिया, वहीं पांच आतंकवादियों को मार गिराया। सेना द्वारा आगे के ऑपरेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए यह ऑपरेशन महत्वपूर्ण था। हमने एक रॉकेट लॉन्चर टुकड़ी की सहायता जो सेना द्वारा प्रदान की गई थी। होटल पर राकेट लांचर दाग दिया गया। इसके बाद तूफान जैसी स्थिति हुई और होटल की तीन मंजिल जमींदोज हो गई। पंजाब में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन के लिए गहन प्रशिक्षण लिया था। अपनी सेना को त्वरित कार्यवाही के लिए छोटी सी टीम के संचालन के लिए तैयार किया था। साथ ही यह सुनिश्चित करना था कि जूनियर कमांडर विशम परिस्थितियों से निपटने के लिए त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हैं।
श्री सूद की तैनाती जब उत्तर बंगाल के फंटियार में बतौर महानिरीक्ष में रुप में हुई और उन्हें यही से एडीजी पर पदोन्नति दी गई। अपने उत्तर बंगाल के कार्यकाल के दौरान वह सीधे अधिकारियों के साथ सीमा पर तैनात जवानों से सीधे जुड़ने के कारण काफी लोकप्रिय रहे। भारत की अंर्तराष्ट्रीय सीमा भारत-बंगलादेश के सीमा विवाद के कई मुद्दों को सुलझाने के प्रयास काफी सार्थक रहे। उन्होंन सीमा विवाद के सुलझाने पर चर्चा के दौरान कहा कि सीमा के मुद्दों को सुलझाने लिए अधिक खुले दिमाग के होने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर 2015 के अंत में हस्ताक्षरित भूमि सीमा समझौते के परिणाम स्वरूप बंगलादेश के प्रति एक आक्रामक रवैया अपनाने वाली सरकार थीं। परिणाम स्वरूप बांग्लादेश के साथ सभी सीमा संबंधी मुद्दों को छोड़कर सिर्फ जल विवाद को हल कर दिया गया है। इसी तरह, हम सीमावर्ती क्षेत्र के विकास के लिए, विशेष रूप से भारत की सीमाओं के साथ बांग्लादेश नेपाल भूटान और म्यांमार के साथ सीमा पर सहयोग के बारे में सोच सकते हैं। यह न केवल सीमा क्षेत्र का विकास करेगा, बल्कि सीमावर्ती जनसंख्या को कम के लिए प्रेरित करने से सीमा की आबादी को भी कम करेगा। उन्हें कानूनी माध्यम से रोजगार और आय के अवसर को उपलब्ध कराने की जरुरत है। सीमावर्ती निवासियों की मदद के लिए संभव है। उन्हें "बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम" और "सीविक एक्शन प्रोग्राम" जैसी योजनाओं के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए क्योंकि ऊपर चर्चा की गई। इसका बेहतर उपयोग करके हम अपराध को बेहतर ढंग से पता लगाने में मदद कर सकेंगे और इससे जवानों को अधिक आराम और राहत भी मिलेगा।
श्री सूद ने कहा कि हम सुरक्षा प्रणाली को और अधिक अनुकूल कैसे बना सकते हैं इस पर विचार करना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा देश की शांति, प्रगति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए सरकार को इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि,सरकार को यह भी महसूस करना चाहिए कि सुरक्षा बल आंतरिक सुरक्षा में तैनात होने और सीमा पार अपराधों को रोकने के द्वारा हमारी सीमाओं को सुरक्षित करने के माध्यम से क्षेत्र के वर्चस्व के माध्यम से एक अनुकूल माहौल बनाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि,यह आंतरिक या पड़ोसी देश के साथ एक मुद्दे को हल करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है जो लंबे समय तक चलने वाली शांति सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करेगा। सरकार को मुद्दों को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और प्रचार के लिए ब्राउनी पॉइंट स्कोर करने की कोशिश करने के बजाय दीर्घकालिक विचार करना चाहिए। क्योंककि बीएसएफ आज के दौर में जहां भी सीमा पर तैनात है फ्रंट लाइन बल हो गया है। इसलिए सरकारों को उनकी सुविधाओं और सेवा पर गहनता से विचार करना चाहिए।