बंगाल के नदीया से आए ब्राह्रणों ने करीब 765 ईश्वी में बसाया था नगर को
पुरोहित नागेंद्र गौड राजा रूपसेन के साथ नादिया से आए थे हिमाचल
महिलाओं के प्रयास से प्राकृतिक खेती से मिशाल बन रहा पज्याणु का क्षेत्र
सिलीगुडी से पवन शुक्ल / मंडी से डा. जगदीश शर्मा
देवभूमि की धरती हिमाचाल प्रदेश की ऐतिहासिक धरती का रिस्ता बंगाल की भूमि से नदीया से भी है। अगर अतित के पन्नों की बात करें तो हिमाचल में सुकेत राज्य के संस्थापक सेन वंशीय राजा के साथ नादिया (बंगाल) से आए ब्राह्मणों ने पज्याणु को बसाया था। मंडी जिले की ऐतिहासिक नगरी पांगणा के दक्षिण में करीब 5 किलोमीटर दूर पहाड़ों की वादियों में पज्याणु प्राचीन ऐतिहासिक गांव है। सुकेत रियासत की स्थापना से संबंधित पज्याणु गांव कई वजह से अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। गांव के विषय में सेवानिवृत्त उप-मंडलाधिकारी डाक्टर किशोरीलाल शर्मा का कहना है कि यह गांव कौशल्य गोत्रीय वंशावली के अनुसार आदि गौड, कौशल्य गोत्र, यजुर्वेद, माध्वंदिनीय शाखा, लक्ष्मी सूत्र, त्रिपवर (कात्यायन सूत्र अनुष्टुप छंद) से संबंधित ब्राह्मणों का गांव है। डॉक्टर किशोरी लाल शर्मा का कहना है कि पुरोहित नागेंद्र गौड राजा रूपसेन के साथ नादिया बंगाल से आए थे। नादिया बंगाल पर मुस्लिम शक्ति के आक्रमण तक सेन राजवंश नादिया बंगाल पर शासन करता रहा। मुसलमानों द्वारा यहां से निर्वासित कर दिये जाने के पश्चात सेन राजवंश के अंतिम शासक सूर्यसेन का प्रयाग इलाहाबाद में निर्वासन हो गया। उनके पुत्र रूपसेन ने रोपड़ (वर्तमान में रूपनगर पंजाब) नामक राज्य की स्थापना की। वहां भी मुसलमानों द्वारा उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया गया तथा उनका देहांत हो गया। उनके धर्मात्मा वीर-धीर और न्यायप्रिय पुत्र युवराज वीरसेन अपने दो छोटे भाइयों गिरीसेन और हमीर सेन के साथ पिंजौर नामक स्थान पर कुछ समय विश्राम करने के पश्चात सतलुज नदी के तट पर स्थित जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुंचे। वहां उन्होंने ज्योरी (वर्तमान में तत्तापानी) से शुकक्षेत्र में प्रवेश कर सुकेत नामक राज्य की स्थापना की। पुरोहित गौतमीय नागेंद्र योगेश्वर वैकुंठ इत्यादि कर्मचारी ब्राह्मण उनके साथ थे। वीरसेन ने लगभग 765 ईश्वी में सीरखड्ड पर किला बनाकर दक्षिण में सतलुज और उत्तर में व्यास के साथ सुकेत रियासत की सीमाएं स्थापित कर पांगणा में स्थायी राजधानी की स्थापना की। पज्याणु गांव के विषय में नागेंद्र गौड से लेकर विद्याराम तक कोई लिखित वंशावली नहीं है। विद्या राम राजा उग्रसेन (1838-1876) के काल में हुए हैं। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉ हिमेंद्र बाली का कहना है कि अलग स्पष्ट सास्कृतिक पहचान है।हालांकि मण्डी का उद्भव भी पूर्व सुकेत रियासत से ही हुआ है। 765 ईश्वी में जब सुकेत रियासत के पहले राजा वीरसेन ने पांगणा को सुकेत रियासत की पहली राजधानी के रूप में स्थापित किया तो राजा ने बंगाल से आए ब्राह्मण को जीवन यापन के लिए 5 गांव दान में दिए। इन 5 गांव में से पज्याणु को ब्राह्मण परिवार द्वारा निवास स्थल के रूप में चुना गया तथा यहां आकर बस गए। कहा जाता है कि राजा द्वारा ब्राह्मण को दान में दिए 5 गांव के निवासी "पंजग्रावणु" का बिगड़ा रूप ही पज्याणु है। इस गांव के निवासियों को आज भी "पंजनैट" कहते हैं। इस ब्राह्मण परिवार की पीढ़ी आज भी पज्याणु, पांगणा, करसोग, शिमला में निवास कर रही है।कहते हैं की पहले बहुत समृद्धशाली और बड़ा गांव था।समय के साथ-साथ बहुत से परिवारों के गांव छोड़ते से गांव छोटा हो गया।गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सुकेत रियासत से बाहर के किसी राजा का राज्य दूसरे राजा ने छीन लिया। राजपुरोहित राज्य छीने जाने और राजा के मरने के बाद गर्भवती विधवा रानी को सुकेत रियासत में ले आए। रास्ते में रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।सुकेत की सीमा में प्रवेश कर विधवा रानी और राज पुरोहित ने निर्धन बनकर पज्याणु के ब्राह्मण परिवार में शरण लेकर नौकरी कर ली। एक दिन भूमि पर छने आटे पर बालक के पांव की छाप पर गृह स्वामी ब्राह्मण की नजर पड़ी तो उसने इस बालक के जीवन में राजयोग के लक्षण पाए। नौकरानी (रानी) से पूछने पर उसे सुकेत राजा के पांगणा स्थित महल में ले जाकर राजा को सौंप शिक्षा प्रदान की। बालक के बड़े होने पर नौकरानी(रानी) ने ब्राह्मण को पज्याणु में शरण लेने से पूर्व की घटना सुनाई। राजा ने इस लड़के से अपनी राजकुमारी का विवाह किया और पांगणा से सेना भेजकर वर्षों पहले जीता हुआ राज्य राजकुमार को वापिस दिलवाया। किंवदंतियों के अनुसार प्राचीन काल में यह गांव सुकेत रियासत में संस्कृति, साहित्य और गुरु शिष्य परंपरा के लिए प्रसिद्ध था। यहां के ब्राह्मणों में मंत्र साधना से आध्यात्मिक शक्ति,सिद्धि, शांति और रोग मुक्ति के लिए अनेक गुण विद्यमान थे। गांव के लोग तो आज भी उस समय के विख्यात तांत्रिकों के प्रसंग सुनाते देखे गए हैं। गांव के पास ही ब्राह्मण द्वारा पूजित देवी का मंदिर है यह देवी छंडियारा देवी के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि देवी एक बार इस गांव पर कुपित हो गई और नरबलि लेने लगी जब भी देवी के रथ का श्रृंगार होता तो गांव में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती। देवी कोप से बचने के लिए लोग गांव तक छोड़ कर जाने लगे।देवीकोप की शांति के लिए तान्त्रिको की राय लेकर यज्ञ होम किए गए। देवी के रथ को गांव के मध्य दबा दिया गया। जिस स्थान पर देवी के रथ को दबाया गया उस स्थान पर पानी का स्रोत प्रकट हुआ। लोगों ने वहां बावड़ी बना दी। जो आज भी विद्यमान है।
प्राकृतिक खेती से मिशाल बन रहा पज्याणु का क्षेत्र
गांव में अमर शर्मा बहुत जागरूक युवा और विज्ञान अध्यापक,लीना शर्मा सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार, बालमुकुंद रेशम उद्योग के सेवानिवृत्त निरीक्षक,लालाराम शर्मा फौरेस्ट कार्पोरेशन के सेवानिवृत्त उप-राजिक, हरिपाल शर्मा सेवानिवृत्त गृह रक्षक, लालाराम शास्त्री सेवानिवृत्त स्नातक, चुन्नीलाल शर्मा सेवानिवृत्त चालक, बंसीलाल लोक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त वर्कचार्ज,पूर्ण चंद उद्यान विभाग से सेवानिवृत्त कर्मचारी, संतराम कौंडल तथा पदमदेव कौंडल सेना से सेवानिवृत्त फौजी, रमेश शास्त्री,टेकराज शर्मा शास्त्री साहित्याचार्य, प्रदीप शर्मा उद्यान विभाग में कर्मचारी, हेमंत कुमार हिमाचल पथ परिवहन निगम में परिचालक, हेमराज शर्मा हिमाचल पथ परिवहन निगम में तकनीशियन,गोपाल कौंडल भारत तिब्बत सीमा पुलिस में सब इंस्पेक्टर, नरेन्द्र कौंडल भाषा अध्यापक नरेश कुमार लोक निर्माण विभाग में आउटसोर्स कर्मी, नितेश कुमार विद्युत विभाग,नानक चंद विद्युत विभाग में, शीला शर्मा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता,सीता देवी आंगनवाड़ी सहायिका,मीनादेवी एडीएम कार्यकर्ता, मनीषा शर्मा एम एस सी बायोलॉजी की अंतिम वर्ष की छात्रा, साक्षी महाराजा लक्ष्मण सेन मेमोरियल महाविद्यालय में छात्रा,उषा स्नातक छात्र, चंद्रकांत शास्त्री के पश्चात स्नातक छात्र व पंडिताई, पंचायत का कार्य कर रहा है कुलदीप शास्त्री और पंडिताई,भीम कौशल एम ए बी एड, प्रोमिला कौडल आईटीआई के बाद बीएससी की छात्रा, पितांबर बीएससी बीएड, रेखा देवी राज्य स्तरीय कबड्डी खिलाड़ी, भूपेंद्र मोटर मैकेनिक, हेमलता बी ए एन टी टी है।पज्याणु गांव से संबंधित अनेक प्रसंग जुड़े हैं। कहा जाता है कि गांव के बुजुर्ग डाबर, कालिदास, नरसिंह दास केशव राम सुकेत राज्य के ज्योतिष और अन्य विद्याओं के पारंगत ऐसे विद्वान थे जिन्हें राजा द्वारा मासिक पारितोषिक मानदेय मिलता था। पज्याणु के उपाध्याय को राजा द्वारा जो जमीन दी गई थी उसका भूमिकर नहीं दिया जाता था। स्वतन्त्रता सेनानी भवानीदत्त उर्फ थान्थी 4 वर्ष तक मुल्तान जेल में बंदी रहे।थान्थी को शौर्य प्रदर्शन करने के लिए मगरु-पज्याणु-डुघानाल में 10 बीघा जमीन ईनाम स्वरूप मिली थी। युवा रमेश शास्त्री के नाम 1000 जन्म पत्र बनाने का रिकॉर्ड है। आज के द्रुतगामी समय के प्रवाह के साथ पज्याणु निवासी स्नाकोत्तर शिक्षा प्राप्त लीना शर्मा व गांवों-उप गांव की कृषक महिलाओं के अनथक प्रयासों से पज्याणु गांव सुभाषपालेकर प्राकृतिक खेती का दूर दूर तक मशहूर अनूठा केन्द्र बना है।