महाराष्‍ट्र की महाभारत में, उद्धव धृतराष्‍ट्र, सकुनी हुए संजय

''कंगना रनौत की ललकार के साथ लगातार ट्वीट से तीन दलों की सरकार बैकफुट पर आ गई। वहीं संजय राउत के बयान ने बची-खुची कसर निकाल दी। जिससे देश में कंगना रनौत के प्रति हमदर्दी और शिवसेना के प्रति तल्‍खी तेज हो गई। जबकि देश में बीएमसी की कार्रवाही को लेकर पूरे देश में उबाल है और देश के करीब सभी शहरों से विरोध प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। उसके बाद कार्टून में ममाले में नौ सेना के पूर्व अधिकारी पि‍टाई के ममाले ने महाराष्‍ट्र की उद्धव सरकार की सत्‍ता लोलुप्‍तता, बाला साहब ठाकरे के सपनों के महाराष्‍ट्र को किया चकनाचूर कर दिया।''

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

'मातोश्री' जो कभी महाराष्‍ट्र समेत देश की सत्‍ता का केन्‍द्र रहा, सत्‍ता की लोलुप्‍तता से दूर, सत्‍ता का रिमोट हुआ करता था। सत्‍ता का केन्‍द्र रहने वाले 'मातोश्री' के उत्‍तराधिकारियों ने पुत्र मोह और सत्‍ता की लोलुप्‍तता ने महराष्‍ट्र के शेर कहे जाने वाले मराठा पुत्र 'बाला साहब ठाकरे' के सपनों को चकनाचूर कर दिया। कारण, युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर महाराष्‍ट्र पुलिस की जांच, जहां सवालों के घेरे में है। वहीं बीएमसी की कंगना रनौत पर की गई कार्रवाहीं को लेकर आज पूरे देश में महाराष्‍ट्र के शेर 'बाला साहब ठाकरे' की पार्टी शिवसेना पर सवाल खड़ा कर रहा है। मामला तब और उलझा गया जब, शिवसेना के कद्दावर नेता संजय राउत के बयान और पार्टी के लिए दिए जाने वाले सलाह के कारण वह लोगों में, महाभारत के सकुनी जैसे प्रतित होने लगे। सोशल मिडिया से लेकर राजनैतिक दलों की प्रतिक्रिया उद्धव सरकार से अधिक संजय पर निशाना साधा जा रहा है। उधर शिवसेना का मुखपत्र सामना में कंगना रनौत कार्यालय को ढ़ेर करने के बाद संपादकीय में 'उखाड़ दिया', जैसे लेख ने भी शिवसेना की इज्‍जत को तार-तार कर दिया। वहीं शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के इस लेख से शिवसेना के सैद्धांतिक और वैचारिक पतन का रास्‍ता साफ दिख रहा है। देश की आर्थिक राजधानी में कोई राजनैतिक दल इस सीमा तक गिर सकता है इसका विश्वास नहीं होता। वहीं कंगना रनौत लगातार उद्धव पर ट्वीट से निशाना साधते हुए, मुम्‍बई में ड्रग और पालघर में दो सधुओं की पीटकर नृशंस हत्याकांड को लेकर महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है। जाँच और कार्यवाई के नाम पर उस कांड में कैसी लीपापोती हुई इससे देश वाक़िफ़ है। उधर नेवी रिटार्यड अफिसर मदन शर्मा की एक कार्टून को लेकर शिवसैनिकों द्वारा बुरी तरह पीटाई ने शिवसेना को सकते में डाल दिया। जबकि अभिनेत्री कंगना रनौट से 'पंगा' लेना उद्धव सरकार पर भारी पड़ रहा। बीएमसी की कार्रवाई से आज पूरा देश मुम्‍बई में दाउद समेत सभी अवैध निर्माण को ध्‍वस्‍त करने की मांग तेज हो गई जो उद्धव सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। हलांक‍ि शिवसेना के प्रभावी सलाहकार संजय राउत ने इसे बीएमसी की कार्रवाई कह मिडिया से पल्‍ला झाड़ तो लिया। लेकिन 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर कब्‍जे के चार दशक के बाद आज पहली बार बीएमसी लाचार नजर आ रही है। मालूम हो कि भाजपा के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। वे खुद कहते थे कि वे ‘रिमोट कंट्रोल’ से सरकार चलाते हैं। हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री का पद कभी नहीं संभाला। लेकिन उत्‍तराधिकारी उद्धव ठाकरे में पुत्र मोह में शिवसेना के संस्‍थापक बाला साहब ठाकरे के संपनों की राजनीति पर कुठाराधात कर दिया। जबकि प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र की राजनीतिक मंच पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया। शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह वाकिफ थे।

किंगमेकर बनना पसंद किया : अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले बाला साहब ठाकरे अपने मित्रों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते थे। वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम करके आंकें ताकि वह अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। श्री ठाकरे खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में एक सांस्कृतिक आदर्श बताया।

कभी एक इशारे पर मुंबई में सन्नाटा : ठाकरे की अंगुली अगर एक  इशारे कर दे तो देश की आर्थिक राजधानी की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल साहब ठाकरे ने आर के लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी दैनिक फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक ‘मार्मिक’ की शुरुआत करके एक नए रास्ते की तरफ कदम बढ़ा दिया। इस साप्ताहिक में ऐसी सामग्री हुआ करती थी, जो ‘मराठी मानुस’ में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर आवाज बुलंद की गई।

1966 में शिवसेना का गठन : ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी खुद उठा ली। उस दौरान मराठियों के लिए नौकरी की सुरक्षा मांगी। जिन्हें गुजरात और दक्षिण भारत के लोगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था। 23 जनवरी 1926 को जन्मे बाल केशव सीताराम ठाकरे की चार संतानों में दूसरे थे। उनके पिता लेखक थे और मराठी भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करने वाले आंदोलन ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। हालांकि ठाकरे ने खुद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा। बावजूद इसके शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलीवुड सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया। वहीं अपने बेहद सुरक्षा वाले आवास ‘मातोश्री’ की बालकनी से अपने समर्थकों को ‘दर्शन’ दिया करते थे। प्रसिद्ध दशहरा रैलियों में उनके जोशीले भाषण सुनने लाखों की भीड़ उमड़ती थी।

 

मैं अब थक गया हूं... : ठाकरे की सेहत ठीक नहीं होने के कारण  24 अक्टूबर को दशहरा रैली में ‘शेर की दहाड़’ सुनाई नहीं दी। उन्होंने वीडियो रिकार्डेड भाषण के जरिए अपने समर्थकों को संबोधित किया और सार्वजनिक जीवन से संन्यास का एलान किया। उन्होंने कहा वीडियो संबोधन में कहा, 'शारीरिक तौर पर मैं काफी कमजोर हो गया हूं... मैं चल नहीं सकता... मैं अब थक गया हूं।' उन्होंने अपने समर्थकों से उनके पुत्र उद्धव और पोते आदित्य का साथ देने का आग्रह किया और इसके साथ ही शिवसेना के उत्तराधिकार पौध को सींच दिया। जीवन भर मीडिया के लिए कौतुक का विषय रहे बाल ठाकरे नहीं रहे यह खबर अब एक सच है जिसका सभी को सामना करना पड़ेगा।