एक जमीन के होते हैं कई मालिकाना दावेदार, पैसे लेकर होता है समझौता
इसी कारण से फूलबाड़ी क्षेत्र में उद्योग लगाने से कतराते हैं व्यापारी
साल से कब्जे में, बैंक लोन समेत अन्य दावेदारी, बेचने पर होते हैं कई दावेदार
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
पूर्वोत्तर प्रवेशद्वार, सिलीगुड़ी में ट्रेडिंग व्यापार तो खूब फलफूल रहा है। परंतु एक जमीन में कई के मालिकाना हक की दावेदारी कोई नहीं बात नहीं है। यहां हर प्लाट के पेपर मौजूद होते हैं। वहीं एक जब दूसरे को बेचता है तो वहीं कई दावेदार सामने आते हैं, अंत में होता है, पैसे देकर मामले को रफा-दफा होता है। इसका प्रमुख कारण है व्यापारी अपने व्यापार को देखेगा या कानूनी पेंच में उलझेगा। जिसको लेकर अब उद्यमी यहां औद्योगिक इकाई लगाने से कतराने लगे हैं। इसका एक उदाहरण न्यू जलपाईगुड़ी थाना क्षेत्र के वेस्ट धानतोला का है। जहां एक व्यापारी ने पिछले दस वर्षों से अपना एक पैकेजिंग यूनिट चला रहा था। हाल के वर्षो में उसने अपनी पैकेजिंग यूनिट बेच दिया, साथ में एक दूसरा प्लाट प्ला ट था। जिस पर बैंक ने 1.5 करोड का सीसी भी दिया था। अभी जब वे अपना प्लाट बेचने के लिए गए तो पड़ोस के उपप्रधान ने कहा कि इसमें 14 कठ्ठा में 7 कठ्ठा जमीन मेरी है। बाद में किसी अन्य विक्रेता जमीन दिया तो कई दावेदार हो गए। मालले को लेकर किसी तरह से निपटा, यह तो एक बानगी है इस तरह के मामले वेस्ट धानतोला में होता रहता है। उधर सूत्रों के अनुसार चतुरगाछ सिपाहीपाड़ा में ही चिटफंड कंपनी सन प्लांटेशान ने कुछ जमीन लिया था। जिस पर सेवी का वैन लगा रखा है। सन प्लांट ने यह जमीन 2010 से 2012 के बीच खरीदा था, जिसे 2014 में किसी अन्य कंपनी को ट्रांसफर करने की सूचना भी है। जबकि सेवी ने उत्तर बंगाल में सन प्लांटेशान की सभी संप्पतियों के बिक्री पर सेवी ने 2014 से पहले ही रोक लगा रखा है। वहीं इस क्षेत्र में कई कंपनियों भी जमीन के कारोबार से जुड़ी है। दूसरी तरफ डीपीएस फूलबाड़ी के सामने चतुरगाछ सिपाहीपाड़ा में संजय पाटोदिया की जमीन पर अवैध कब्जे के मानसिक प्रताड़ना का मामला पिछले चार वर्षों से चल रहा है। आज वह तंग आकर उक्त मामले को लेकर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव समेत विभिन्न अधिकारियों को समय-समय पर सूचना पत्र दिया है। इनके मामले को लेकर विभिन्न प्रकार के मामले भी कोर्ट चल रहा है। श्री पाटोदिया ने समय-समय पर विभिन्न पत्रों के माध्याम से स्थारनीय पुलिस प्रशासन समेत बीएलआरओ, डीएलआरओ समेत संबंधित अधिकारियों को पत्र भी सौंपा है परंतु मामले हमेशा इन्हेि निराशा हाथ लगी। हद तो तब हो गई जब एक जब एलआर प्लाट संख्या 337 में कुल जमीन 1.32 एकड़ (132 डिसमील) को रिकार्ड करते हुए लास्ट 165 डिसमील कर दिया। अब सवाल यह है कि 33 डिसमील जमीन कहा से किसको को मिलेगा या किसका कटेगे। इस संबंध में 16-03-20 बीएलआरओ को कैंसलि करने के साथ पुलिस प्रशासन को भी 20-03-2020 को पत्र दिया। परंतु इस संबंध में अभी तक कोई कार्यवाई नहीं हुई।
एक ज्वलंत उदाहरण, राज्य के पर्यटन मंत्री और डाबग्राम फूलबाड़ी के विधायक गौतम देब विधानसभा क्षेत्र में एक आम आदमी हैं। जिन्हें भू-माफिया द्वारा परेशान किया गया है। भक्तिनगर थाना अंतर्गत सालुगढ़ की रहने वाली सुशीला रॉय की उम्र 70 वर्ष से अधिक है। सेवक रोड पर इस विशाल भूमि उनके परिवार की है। सुरेश कुमार गर्ग नाम के एक भू-माफिया ने फर्जी कागजात बनाकर जमीन हड़पने की कोशिश की। मामला लंबे समय से कोर्ट में चल रहा है। सुशीला देवी ने कहा कि उन्होंने हाल ही में जमीन पर धारा 144 जारी की थी और भक्तिनगर पुलिस स्टेशन को इसकी जानकारी थी। बावजूद इसके उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने तुरंत सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नर को मामले की जानकारी दी। काम रोकने के लिए आयुक्त कार्यालय से एक पुलिस प्रतिनिधिमंडल भेजा गया था और नियमों के अनुसार भूमि पर प्रवेश वर्जित किया गया था। उसके बाद, जब भू-माफिया सुरेश कुमार गर्ग ने बीते बुधवार की रात को बलपूवर्क लोगों के साथ लेकर जमीन पर पुनः कब्जा का प्रयास किया। तो स्थानीय लोगों ने धारा 144 लागू होने के कारण उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया। श्री गर्ग यहीं नहीं रुके, उन्होंने पुलिस से संपर्क किया और सुशीला रॉय और उनके भतीजों को रात करीब 9 बजे थाने ले गए। मामले की छानबीन के बाद पुलिस कमिश्नर ने भक्ति नगर पुलिस थाना प्रभारी सुजय टुंग व सकेंड आफिसर संदीप सुब्बा को कार्यवाई करते हुए दोनों को लार्इन हजिर का आगे की कार्यवाही शुरु कर दी।
बताते चलें कि यह तो एक बानगी है अगर असल में प्रशासन इन भू-माफियायों पर नकेल कसे तो उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में औद्योगिक विकास की प्रबल संभावना है। लेकिन भूमि विभाग की मिली भगत के कारण हर आदमी परेशान है। एक बात यह भी सत्य है अगर आप कितनी भी जमीन की जांच करके भी ले लेकिन कोर्इ ना कोर्इ जमीन का वारिश निकल ही आत है। 10 के स्टंप दिखाकर अपना मलिकाना हक जताने लगता है। अगर मामला लेन-देन से सुधरा तो ठीक है नहीं कोर्ट के चक्कर शुरू हो जाता है।