करम पर्व एवं उसकी प्रासंगिकता
आदिवासी समुदाय के लिए करम परब का विशेष महत्व है। यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ झारखण्ड,छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिसा समेत पश्चिम बंगाल में भादो महीने के एकादशी को मनाया जाता है। कोरोना महामारी को देखते हुए इस वर्ष (2020 में) करम पर्व पूरे देश में सादगी से मनाये जा रहे हैं। करम पर्व जहाँ भाई-बहनों के परस्पर प्रेम, सम्मान,एक दूसरे के प्रति सुरक्षा, प्रगति की कामना को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर मनुष्य का प्रकृति के साथ सहजीविता एवं सहभागिता को भी दर्शाता है। यह पर्व पूरी तरह से प्रकृति की सुंदरता,प्रेम,उसके साथ मानव जीवन का सहजीविता और सहचार्य का पर्व है। परन्तु आज के विकास की आँधी एवं औद्योगिकीकरण के इस दौर में पेड़-पौधों ,जंगल-झाड़,खेत -खलिहान, नदी-नाले,अखड़ा का स्थान बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लेती जा रही है। ऐसी परिस्थिति में करम पर्व के अस्तित्व के खतरे तो आने वाले दिनों में दिख रहे हैं उससे बड़ी समस्या आज दुनिया के मानव झेल रहे है एवं आने वाले दिनों में यें समस्या मानव और समस्त जीवों के लिए घातक सिद्ध होगा। मनुष्य की इन अतिआधुनिक गतिविधियो के कारण वह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है जिसके कारण सूखा,बाढ़,अत्यधिक धूप,फसलों के उत्पादन में कमीं,ओजोन स्तर के छिद्र का विस्तार ,महामारी जैसी समस्यायों से हम जूझ रहें हैं। कहा यह भी जा रहा कि कोरोना वायरस भी प्रकृति के अंगो के साथ छेड़छाड़ का ही परिणाम है। इस विकट परिस्थिति में करम पर्व की महत्ता और बढ़ जाती है। क्योंकि पेड़-पौधों ,जंगल-झाड़ को काटकर यदि पूरी दुनिया बड़ी-बड़ी इमारतों से भर दी जाय फिर भी करम पर्व कम से कम लोक कथाओं में तो अपने को जीवित रखेगा परन्तु प्रकृति के क्षरण से मनुष्य एवं जीव-जंतुओं का समूल नाश तय है।यदि जीवित रहे भी तो अस्वस्थ एवं विभिन्न रोगों से ग्रस्त। अतः आज के इस अंधे विकास के दौर में मानव मात्र के जीवन रक्षा हेतु प्रकृति ,पेड़-पौधो के संरक्षण की सीख देने हेतु करम पर्व की प्रयोजनीयता अनिवार्य है।
बिमला भोक्ता
सहायक शिक्षिका
( चाँदमनी चाय बगान,सिलीगुड़ी)