विरासत की जंग में विरासत से आगे निकले प्रसून बनर्जी

विरासत में नाट्य कला के मंच को एक मुकाम तक पहुंचाया

पढ़ाई में भी कुशलता का परचम, बन गए आईपीएस भारतीय पुलिस सेवा

रंगमंच की कुशलता में परचम, प्रशासनिक दक्षता भी काबिले तारिफ

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी/लक्ष्‍मी शर्मा, दक्षिण दिनाजपुर

बंगाल की माटी में रंगमंच की खुश्‍बु है, वह तो जग जाहीर है, भारत समेत दुनियां के देशों में बंगाल के रंगमंच की अलग पहचान है। बावजूद रंगमंच की दुनियां से इतर शिक्षा के क्षेत्र में, प्रशासनिक दक्षता, कुशल प्रशासक के साथ अगर विरासत में मिली रंगमंच की परंपरा को कायम रखना तो एक कला है, लेकिन रंगमंच के जंग को जीतकर शिक्षा में अव्‍वल रहा तो वह अपने आप में एक अनूठी पहचान होती है। भारतीय पुलिस सेवा में परचम लहराने के बाद अगर पारिवारिक विरासत रंगमंच की परंपरा को आगे बढ़ते हुए रंगमंच पर एक बेहतर मुकाम पर पहुंचने वाले हैं, दक्षिण दिनाजपुर के मालदा रेंज के डीआईजी प्रसून बनर्जी। हलांकि श्री बनर्जी का रिस्‍ता दक्षिण दिनाजपुर से भले ही जन्म का कोई रिश्ता ना रहा हो, लेकिन अब उनकी लेखनी में उनकी फिल्मों में प्रासंगिक विषय बन चुका है। दक्षिण दिनाजपुर जिले में रंगमंच की परंपरा को आगे बढ़ते हुए यहां की संस्कृति, नाट्य कला गौरव का इतिहास सब कुछ अपने में समाहित कर लिया है।

श्री बनर्जी, एक लेखक, एक साहित्यकार, एक कवि, एक फिल्मकार की प्रतिभा के साथ कुशल प्रशासक होने के साथ उनकी बहुमुखी प्रतिभा को आज दक्षिण दिनाजपुर सलाम करता है। क्‍योंकि मनुष्य जहां जन्म ना लिया हो परंतु वहां की मिट्टी वहां की संस्कृति वहां की परंपरा को पहचान कर विश्‍वपटल पर ला रहा हो तो यह उसकी एक बहुमुखी प्रतिभा की देन है। प्रसून बनर्जी दक्षिण दिनाजपुर में पदास्‍थापित होने के बाद ही यहां के मिट्टी में रंगमंच की परंपरा, फोटाग्राफी के शिक्षा के क्षेत्र में अपनी रूचि दिखाया तो यहां के लोग उन्‍हें सर आंखों पर ले लिया।  प्रसून बनर्जी का दक्षिण दिनाजपुर से नाता कोई नया नहीं है, करीब 8 साल पुराना है। उससे भी पुराना नाता उनकी अपनी प्रतिभाओं से है जो विरसत में परिवार से मिली ओ है, रंगमंच का। इसके साथ लेखन, संस्कृति, कवि, फिल्म निर्देशन समेत बहुमुखी प्रतिभा का धनी है।  उन्होंने बातचीत में कहा कि लेखन का शौक, कविताओं में अपनी बातों वयां करने में  महारथ हासिल हैं। उनकी फिल्मों में अनजाने अनछुए इंसानी जिंदगी के पहलुओं को दर्शाना उनकी कला है। इसी के माध्‍यम से स्थानीय तकनीकी स्थानीय संगीत स्थानीय कलाकारों बेहतरीन कहानी को संजोने की कला में माहिर है। अभी तक उनकी 5 फिल्में पर्दे पर आ चुकी। जिसमें से एक फिल्म को वर्ष 2018 में दादा साहेब पुरस्कार मनोनीत कि जा चुकी है। इसी साल उनकी नई फिल्म मेन विल बी मेन प्रर्दशन के लिए है। जो रूस के फिल्म फेस्टिवल में सिलेक्ट की गई है। इस फिल्म में समाज में रह रहे इंसान के कई कई रूपों के बारे में एक अलग तरीके से दिखाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि दक्षिण दिनाजपुर जिले में इतिहास के कुछ खास रहस्य हैं, इसमें बहुत कुछ है जिस पर मैंने लिखा है। इसके साथ खुद को महसूस करते हुए उसे अपनी कविताओं में अपने नाटकों में जिया है, जो एक रोमांच सा है। यहां की इसी रोमंच को मैं सबको दिखाना चाहता हूं सबके सामने लाना चाहता हूं।

कई किताबें लिख चुके आईपीएस प्रसून बनर्जी ने आगे बताया कि आपका सवाल बिल्कुल सही है जहां मैं हूं वहां समय मिल पाना बहुत कठिन है इन सब चीजों के लिए अपने मन को दिमाग को काफी तैयार और ऊर्जा रखनी पड़ती है अपने अंदर लिखने के लिए सोचने के लिए लेकिन। जहां चाह वहां राह यह वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी बस इसी कहावत के अनुसार ही मैं अपना काम और अपने शौक को पूरा करता हूं। जब काम ज्यादा होता है तब थोड़ा कम समय मिलता है, और जब काम कम होता है तब इन सब चीजों के लिए मुझे ज्यादा समय मिल जाता है। सबसे अहम बात है कि संकट के इस दौर, कोरोना में भी उनकी एक कविता 'आमादर कोथा' की पूरी जिले में एक अलख जगा रही है। वहीं कविता में उनकी लेखनी प्रसून की है, और आवाज गौतम जी ने दी है, जिसे पूरे बंगाल को एक नई पहचान दी है।