साधना की शख्सियत -13

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: व्‍यक्ति के जीवन में कुछ कुछ अलग होता है, कारण मन में आकांक्षाओं और कुछ नया करने की चाहत होता है, उन्‍हें पूरा करने की चाहत और लगन ही उसकी सफलताओं को मंजिल तक ले जाती है। मंजिल पाने की ललक और उसके लिए किए गये प्रयास को ही 'साधना की शख्सियत' कहतें है। बचपन के शौक को पूरा का प्रयास और जीवन के तमात उलझनों के बीच जब काव्‍य की रचनाएं जब पन्‍नों पर उतरता है, मन को अजीब सा सकून और शातिं मिलती है।
'' रचनाएं लिखने का शौक था बचपन से ही मन में था, मैंने अपनी पहली कविता पांचवी कक्षा जब थी तो लिखी, उस समय देश कारगिल युद्ध की जद में था, हालांकि अपने  शौर्य से भारत की जीत हुई। वहीं से डायरी के पन्नों पर कविता लिखना , दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। जिस प्रकार से बच्चों को पढ़ाना मुझे सुखद एहसास देता है उसी प्रकार से कविता के माध्यम से अपनी बातों को सबके समक्ष रखना मेरी फितरत में बस गया। मेरा मानना है कि इंसान जितना भी अच्छा लिखते हो उसकी समीक्षा होनी जरूरी है। विवाह के बाद लिखने का दोबारा अवसर मिला । मेरे ससुर जी श्री ओम प्रकाश पांडे जो लाल बहादुर हाई स्कूल के प्रधान प्रधान अध्यापक रह चुके हैं उनको मैं हमेशा कुछ ना कुछ लिखते हुए देखती थी फिर मेरे मन का कवि जगा और मैंने विगत दो वर्षों से लिखना प्रारंभ किया ।
कमला पांडेय, सिलीगुड़ी
              क्या, वक्त है आया"
क्या, वक्त है आया चारों तरफ फैला है डर का साया  
कुछ बेचैन है घर से बाहर निकलने को                                                    
तो कुछ परेशान है घर जल्दी पहुंचने को
कुछ ऊब गए हैं घर में रहकर

तो कुछ खुश है सही सलामत घर पहुंच कर
देश एक, लोग एक पर लाचारी,मजबूरी,हालात अनेक
कुछ को घर का खाना नहीं भा रहा
क्योंकि उन्हें बाहर के खाने की आदत है

और कुछ घर पहुंच कर रूखा सूखा खाकर भी हंसते मुस्कुराते हैं

कुछ घर में रहकर ग्रसित हो चुके हैं अवसाद से
तो कुछ मस्त है परिवार के साथ इस गृहवास में
सच में,क्या,वक्त है आया।।।