न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः लेखन काव्य हो या अन्य रचनाएं इसमें कुछ भी करने की क्षमता दुनियां की अपेक्षा मिथिला की माटी में कुछ अधिक ही होता है। काव्य की रचनाओं को बेहतर सभी करना चाहते है, लेकिन सफलता मिलना और असफल होना उनकी साधना पर निर्भर करता है। आमूमन होता क्या है कि कुछ रचनाओं के बाद जब नाम और मुकाम नहीं मिलता तो लोग रास्ते बदल देते हैं। ऐसे में उनके मन की आस दफन हो जाता है। सफलता और असफलता के बीच से जो रास्ते पर निकले वाले ही आगे " साधना की शख्सियत".होते हैं। ऐसे में "कनक लता झा" का प्रयास स्कूल, घर और काव्य रचनाओं को समय देना उन्हें उनकी की ओर ले जाएगी। ".बचपन के शौक को पूरा करने कोशिश तो थी पर स्कूल में शिक्षिका होने के साथ करीब चार वर्षों से काव्य रचनाओं को पन्ने पर उतारने की कोशिश कर रही हूं। कनकलता झा, सिलीगुड़ी
"कमी कहां रह जाती है?"
कमी कहां रह जाती है? इतना कुछ तो किया है मैंने तुम्हारे लिए ,
अपनी सुबह के चाय से ,रात के खाने तक सोने से लेकर सुबह जागने तक
सब कुछ तो दिया है ना तुम्हे फिर कमी कहा रह जाती है?
अपने हिस्से की खुशी तुम्हे दी तुम्हारे हिस्से का दुख मैंने साझा किया
ऐसे अपनी ज़िंदगी को , मैंने कुछ आधा - आधा किया,
मेरी इतनी कोशिशें भी तुम्हे खुश नहीं कर पाती है
सच - सच कहो ना , कमी कहां रह जाती है?
तुम्हारे साथ रह कर भूल ही गई, पीला नहीं नीला पसंद है मुझे
तुम तो नहीं भूल पाए ना अपनी पसंद को
अपनी फरमाइशों , अपनी ख्वाहिशों को
फिर क्यों मेरी ही ज़िंदगी सब में कहीं खो सी जाती है,
कहो ना ,कमी कहां रह जाती है?
उन तोहफे, गहने ,कपड़ों का कोई मोल नहीं
जिसमें भावनाओं का ही कोई रोल नहीं
मुझे समय , इज्जत ,प्रेम में समर्पण चाहिए
हमारे बीच की कुत्सित भावनाओं को बहा ले जाए,
कुछ ऐसा तर्पण चाहिए
तभी में दिल से तुम्हारी हो सी जाऊंगी
अगर कमी हो भी तो दिल से मिटाउंगी
दिल से मिटाउंगी।