• कुलपति प्रो. टंडन ने बाबा साहब के जीवन संघर्षों के बारे में बताया
• बाबा साहब के आदर्शों को केवल जयंती और परिनिर्वाण दिवस तक सीमित करना अनुचित है
एनई न्यूज भारत,गोरखपुर : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में एससी-एसटी इंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वाधान में बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती धूमधाम और विचारशील वातावरण में मनाई गई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं।
अपने प्रेरणादायी संबोधन में कुलपति प्रो. टंडन ने बाबा साहब के जीवन संघर्षों को याद करते हुए कहा कि "बाबा साहब ने समानता और न्याय आधारित भारत की परिकल्पना की थी। आज हमें उनके सपनों का भारत बनाने के लिए संवेदनशील और नैतिक मूल्यों से युक्त होना होगा।"
हिंदी विभाग के प्रो. विमलेश मिश्र ने इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि “बाबा साहब के आदर्शों को केवल जयंती और परिनिर्वाण दिवस तक सीमित करना अनुचित है। उनके विचारों को निरंतर जीवन में उतारना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”
राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ के पूर्व कुलपति एवं विधि विशेषज्ञ प्रो. चंद्रशेखर ने बाबा साहब के अथक संघर्षों को प्रेरणा स्रोत बताते हुए सभी को उनसे सीख लेने की अपील की। वहीं सिद्धार्थ यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. रजनीकांत पांडे ने कहा कि "देश का विकास भय या थोपी गई नैतिकता से नहीं, बल्कि आत्मसात किए गए आदर्शों से संभव है।"
कार्यक्रम में अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आलोक गोयल ने बाबा साहब के विचारों को आज के सामाजिक ढांचे में अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। कार्यक्रम का संचालन अंग्रेजी विभाग के डॉ. बृजेश कुमार ने किया, जबकि स्वागत उद्बोधन एसोसिएशन के सचिव प्रवीण राना ने दिया।
इस अवसर पर प्रो. शांतनु रस्तोगी (प्रो-वाइस चांसलर), प्रो. अनुभूति दुबे, प्रो. सुनीता मुर्मू, डॉ. अमित कुमार, डॉ. प्रभुनाथ प्रसाद, डॉ. राजेश कुमार, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. वंदना अहिरवार, राजबहादुर गौतम, राजेंद्र प्रसाद समेत अनेक विश्वविद्यालय शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो. गोपाल प्रसाद ने कुलपति से विश्वविद्यालय परिसर में बाबा साहब की भव्य प्रतिमा स्थापना की मांग की और सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
यह आयोजन न केवल श्रद्धांजलि का प्रतीक रहा, बल्कि सामाजिक चेतना और विचारों की दृष्टि से भी अत्यंत प्रेरणादायी सिद्ध हुआ।