डीडीयू में विज्ञान छात्रों को अब मिलेगा मनोविज्ञान और भूगोल पढ़ने का अवसर

• कुलपति ने विद्यार्थियों को अधिक विकल्प और बहुविषयक शिक्षा की दिशा में एक सार्थक पहल बताया

एनई न्यूज भारत,गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षा के क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित बदलाव की शुरुआत हो गई है। विश्वविद्यालय की प्रवेश समिति की बैठक में, कुलपति प्रो. पूनम टंडन की अध्यक्षता में,आगामी शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इनमें सबसे उल्लेखनीय निर्णय यह है कि अब विज्ञान संकाय के छात्र भी मनोविज्ञान और भूगोल जैसे सामाजिक विज्ञान विषयों का अध्ययन कर सकेंगे।

अब बी.एससी. के छात्र पारंपरिक विज्ञान विषयों जैसे भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान के साथ मनोविज्ञान या भूगोल को तीसरे विषय के रूप में चुन सकते हैं। इन विषयों को 80-80 सीटों वाले एक-एक सेक्शन के रूप में सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित किया जाएगा।

कुलपति प्रो. टंडन ने इसे विद्यार्थियों को अधिक विकल्प और बहुविषयक शिक्षा की दिशा में एक सार्थक पहल बताया। उन्होंने कहा, “देश के कई विश्वविद्यालयों में यह संयोजन पहले से ही लागू है, और यह बदलाव छात्रों को प्रतिस्पर्धी और बहुआयामी ज्ञान अर्जित करने में मदद करेगा।”

एलएलएम और बी.फार्मा में भी विस्तार

बैठक में एलएलएम पाठ्यक्रम में 25 अतिरिक्त सीटों की स्वीकृति दी गई, जो सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित होंगी। वर्तमान में एलएलएम में 36 सीटें उपलब्ध हैं। इसके साथ ही, बी. फार्मा की सीटें 60 से बढ़ाकर 100 करने का निर्णय लिया गया है, जो फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुमति के बाद लागू होगा।

परीक्षा प्रणाली में भी  बड़ा बदलाव

उसी दिन आयोजित परीक्षा समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि बीबीए और बीएससी (कृषि) के सभी सेमेस्टर की परीक्षाएं अब विवरणात्मक (डिस्क्रिप्टिव) पद्धति में आयोजित की जाएंगी। 

बीटेक कार्यक्रम की परीक्षाएं भी इसी प्रणाली के अंतर्गत लाई जाएंगी। समिति ने परीक्षाओं को पारदर्शी, सुव्यवस्थित और छात्रहित में संपन्न कराने के लिए तकनीकी उपायों और रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा की। 

कुलपति ने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2025-26 की प्रवेश प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ की जाएगी और इसके लिए एक समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित की जाएगी।

इस निर्णय से न केवल विश्वविद्यालय के छात्र लाभान्वित होंगे, बल्कि यह उच्च शिक्षा में बहुविषयक अध्ययन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

माना जा रहा है।