न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः संपने ओ है जो सोने नहीं देते उन्ही सपनों के आधार पर व्यक्ति अपने लक्ष्य को छूने की कोशिश करता है। अगर कोशिशें सकारात्मक हो तो लक्ष्य को पाने में समय नहीं लगता, " पिंकी प्रसाद गुप्ता" ने भी अपने लक्ष्य को किताबों की दुनियां में देखा। पढ़ने की चाहत और उसे पन्नों पर काव्य को मूर्त रूप देना ही उनकी " साधना की शख्सियत" है।
"लिखने की कोशिश हमेशा से ही जारी रही है, मैं अपनी कविताओं में समसामयिक मसले को उठाती रहती हूं।मेरी रचनाएं कई प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं। किताबें पढ़ना मुझे काफ़ी पसंद है।जीवन में मेरे सबसे ज्यादा जो क़रीब रहा है,वह है मेरी किताबें।जिसे मैं हर वक़्त एक सच्चे दोस्त की तरह महसूस की हूं।" पिंकी प्रसाद गुप्ता, सिलीगुड़ी
.सभी रूपों में , "मां" ही पाया है..
.मैंने उस औरत को ,एक मकान में देखा है,
जो हर दिन कुकर की सीटियां गिनती नज़र आती हैं,
अपनी पूरी ज़िंदगी को, रसोईघर में, समर्पित करने पर भी,
वह...किसी से एतराज़ नहीं जताती हैं।
मैंने उस औरत को, एक झोपड़ी में देखा है,
जो खेतों से लौटने के बाद, चूल्हे की कालिख बर्तन को, चमकाने की कोशिश में,
वह अपने ही हथेलियों की रेखाओं में, राख़ भरती हैं।
मैंने उस औरत को , रास्तें पर चलते देखा है,
जो अपने घर पहुंचने के जद्दोजहद में,
एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में अपने बच्चे को, गोद में लिए ,
हवाओं को चीरते हुए, आगे बढ़ती हैं।
मैंने उस औरत को, एक फ्लैट में देखा हैं,
जो आर्थिक रूप से, स्वावलंबी हैं,वह हर रोज़,
अपने बच्चे को स्कूल भेजने के बाद,
अपनी जूतियों को,पैरों में आधा पहने हुए, बस की तरफ़ भागती हैं
और.... इस समाज की मानसिकता को, उन जूतियों से कई बार कुचल देती हैं।
मैंने उस औरत को, एक बनते मकान के सामने, ईंट ढोते देखा है,
जो अपने बच्चों के पेट के लिए, तपती धूप को, अपने बहते पसीनें से चुनौती देती हैं।
अंततः मैंने उस औरत को, जितने रूपों में देखा है...सभी रूपों में ,
."मां" ही पाया है।