दर्द को दिल से लगा लो तो दवा बन जाएगी...!

पशु-पक्षियों व पार्यावरण का दर्द देखकर खुद को किया तैयार

ग्रीनमैन के नाम से बंगाल में बनी पहचान, कई पुरस्‍कारों से नवाजे गए

कोशिश यही है कि पर्यावरण संरक्षण में मेरा जीवन काम आए : तुहिन मंडल

लक्ष्‍मी शर्मा, गंगारामपुर, (दक्षिण दिनाजपुर) : दर्द तो दर्द होता है, चाहे इंसान में, या जानवरों में। वहीं जीव का वास पेड़, पैधों के साथ जीवन दायिनी नदियों में भी। बचपन से जब कभी पशु-पक्षियों को घायल होने के साथ किसी प्रकार की दर्द या पीड़ा होता देख मेरा दिल खुद को पीडि़त महसूस करने लगाता था। वहीं जीवन दायिनी नदियों के जल की दशा, जो कभी प्‍यास बुझाने का करती थी, आज इतनी प्रदूषित है, की उसका पानी पीने से मौत का सबब बन सकता है। इसी पीड़ा के बोझ से मन हमेशा विचलित रहता था। अचानक इस सभी बातों को लेकर हमेशा सोचना, इनके निराकण के उपायों पर बचपन से अध्‍ययन करना मेरा एक उद्देश्‍य बना। धीरे-धीरे हम बचपना से दूर हुए और जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही पर्यावरण संतुल को ठीक करने का फैसला लेते हुए जीवन के पथ को आगे की ओर ले चला। हलांकि परेशानियों ने मुझे घेर रखा था, परंतु दिल में दूसरे के दर्द का एहसास, पर्यावरण व नदियों की दयानिय दशा को देख मैं अपने पथ पर लगातार बढ़ता गया। और हुआ ये कि लोग जुड़ते गए और कारंवा बढ़ता गया और यहीं होती है 'साधना की शख्शियत'।  बताते चलें क‍ि उत्‍तर बंगाल में आज पर्यावरण का दूसरा नाम बन गया है, 'तुहिन सुभ्र मंडल' हलांकि लोग उन्हें ग्रीनमैन के नाम से भी जानते हैं।  तुहिन अपितु दक्षिण दिनाजपुर जिले के साथ-साथ पूरे उत्‍तर बंगाल में अपनी साधना के कारण पर्यावरण संरक्षण का अलख जगा रहे हैं। पर्यावरण है, तो जीवन है, पर्यावरण नहीं तो जीवन नहीं यह हम सब जानते हैं लेकिन पर्यावरण के लिए प्रकृति के लिए पशु पक्षियों के लिए आज किसी के पास समय नहीं है ऐसे में लोगों की प्रेरणा छोटे बच्चों के आइडल और पर्यावरण का रक्षक कहे जाने वाले तुहिन सुब्रह मंडल का अपने जीवन में एक ही मकसद है कि पर्यावरण को बचाना है उसे सुरक्षित रखना है और दिन प्रतिदिन उसे बढ़ाना है। दक्षिण दिनाजपुर जिले में स्थानीय रूप से रहने वाले तुहिन को पड़ोसी देश बांग्लादेश, भूटान में भी पर्यावरण अलख जगा रहे हैं। जिसके कारण पड़ोसी देश में भी बड़ी उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। उन्होंने बातचीत में बताया कि बचपन से ही मुझे एक अजीब सा आर्कषण था, इसलिए पशु-पक्षी उन्हें भाते थे, उनकी पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती थी। जैसे जैसे वह जीवन में बड़े होते गए उनका पर्यावरण के प्रति झुकाव बढ़ता चला गया। उम्र के 18 साल से ही पेड़ पौधे नदी पशु-पक्षी को ग्रीनमैन के नाम से बुलाता है। तुहिन ने बताया कि पहले अकेले चला था, पर अब कई संस्थाएं मेरे साथ काम करती हैं पशु पक्षियों को लेकर पेड़ पौधों को लेकर हम पेड़ों को सिर्फ लगाकर नहीं छोड़ते बल्कि उन्हें सुरक्षित बड़ा होने तक उनकी देखभाल करते हैं। क्‍योंकि सिर्फ लगाकर छोड़ देने से यह काम समाप्त नहीं होता है उनकी देखभाल करना जब तक वह मजबूत और बड़े ना हो जाए। मेरा एक सपना है कि आने वाली युवापीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। ताकि वो पर्यावरण की अनदेखा न कर सके, और नहीं तो हमे मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए जहां मुझे स्‍थानिय लोग जुड़ रहे हैं, वहीं पर्यावरण से जुड़ी दिल्ली मुंबई बेंगलुरु बांग्लादेश की ढाका में पर्यावरण के सेमिनार में शामिल होने का अवसर मिला। जहां पर्यावरण संरक्षण पर दिये गए मेरे संदेश को लोगों ने सराहा। उन्‍होंने कहा कि वर्तमान समय में पर्यावरण असंतुलित हो रहा है, आने चक्रवती तूफानों जैसे अम्‍फान की वजह से पेड़-पौधों को कफी नुकसान भी हुआ। ऐसे में हम सबकी जिम्‍मेदारी है, पर्यावरण के लिए आगे आएं और पौध लगाकर पार्यवरण संरक्षण में योगदान दें, तभी हमारी प्रकृति हमें जीवन दे पाएगी। मालूम हो कि लाकडाउन के दौरान घायल पशुओं को इलाज के लिए तुहिन जी की संस्थाओं ने बीड़ा उठा रखा है उनके खाने के लिए भी इंतजाम किए जाते है। वहीं जिले से गुजरने वाली सबसे बड़ी नदी आत्रेई और पुर्नभ्वा है को प्रतिवर्ष हम कई बार हम साफ सफाई करते है। लोगों को जागरूक करते है कि को गंदा सामानों को नदियों में न फेके।