स्‍कूलों की फीस माफी का मामला पहुंचा उच्‍च न्‍यायालय

आठ राज्यों के अभिभावकों ने फीस माफी को लेकर दायर की याचिका
 सिलीगुड़ी में फीस की बढ़ोत्‍तरी पर प्रबंधन व गार्जीयन हुए थे आमने-सामने

न्‍यूज भारत, नई दिल्ली: कोरोना (कोविड-19) की वजह से पूरे देश में लागू लॉकडाउन के कारण बंद कारोबार से हो रही परेशानियों से जूझते हुए अभिभावकों ने मजबूर होकर देश की सबसे बड़ी अदालत में देश के आठ राज्‍यों के अभिभावकों ने एक याचिका दायर कर इस आपदा के दौर में  स्कूलों की फीस माफ कराने या इसका भुगतान टालने के लिये कोर्ट से गुहार लगाई है।  इन अभिभावकों ने याचिका में केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वे सभी निजी सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए वास्तविक खर्च के आधार पर आनुपातिक फीस लेने का निर्देश दें। साथ ही एक अप्रैल से वास्तविक रूप से कक्षाएं शुरू होने तक छात्रों से किसी और मद में (बस, बिजली ) समेत अन्‍य शुल्क नहीं मांगा जाए। विभिन्न राज्यों से अभिभावकों ने एक साथ याचिका दायर कर संविधान में प्रदत्त जीने के और शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा का अनुरोध न्यायालय से किया है।  याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 के कारण लागू लॉगडाउन की वजह से छात्रों के माता पिता पर जबर्दस्त आर्थिक दबाव पड़ा है। बावजूद इसके उन्हें बच्चों की स्कूल फीस का बोझ भी उठाना पड़ रहा है। शीर्ष अदालत में याचिका राजस्थान, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली और महाराष्ट्र के छात्रों के माता पिता ने मिलकर दायर की है। याचिका में यह भी कहा गया है कि ऑनलाइन शिक्षा के प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए कर्नाटक और मध्य प्रदेश ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि बाकी राज्यों ने अभी तक इसके प्रभावों पर विचार नहीं किया है। याचिका में कहा गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। इसके बाद 25 मार्च, 2020 को इसे लेकर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित कर दिया गया था जिसकी वजह से शिक्षा के क्षेत्र सहित देश के सभी क्षेत्रों में सारी गतिविधियां ठहर गई थीं। इस लॉकडाउन का देश की अर्थव्यवस्था और देशवासियों की जीवन शैली पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है। याचिका के अनुसार लॉकडाउन की वजह से तमाम लोगों की नौकरियां चली गई हैं और अनेक लोगों के वेतन में कटौती की गई है या फिर उनकी आमदनी ही खत्म हो गई है।  मालूम हो कि सिलीगुड़ी के कुछ स्‍कूलों फीस कम करने की मांग और अन्‍य मांगों को लेकर गार्जीयन फोरम ने अपनी मांगों के सर्मथन में एक ज्ञापन एसडीओ को सौंपा था। उसके बाद सीबीएसबी बोर्ड की की संस्‍था सहोदय ने भी अपनी मांगों के संबंध में एक ज्ञापन स्‍कूलों के प्रबंधकों ने एसडीओ को सौंपा था।  बतातें चलें कि बंगाल सरकार के शिक्षा मंत्री ने भी निजी स्‍कूलों से अनुरोध किया था, छात्रों से लिए जाने वाले फीस पर निजी स्‍कूल प्रबंधन विचार करे, लेकिन मामला ठंडे बस्‍ते में ही लग रहा है। यहां के अभिभावाकों की मांग पर भी कोई मामला साफ नहीं हुआ। जबकि खासकर बड़े स्‍कूल के प्रबंधन की बात करें तो अभिभावक आवाज उठाने से परहेज कर रहें हैं, क्‍योंकि बच्‍चों की भविष्‍य को लेकर सभी दुख दर्द सहने को तैयार है। हलांकि अभिभावक अपनी बात तो अपनी समस्‍या की बात करते है पर उठाने से डरते है। सबसे अधिक समस्‍या तो मिशनरी स्‍कूलों का है, जो किसी भी हाल में अभिभावकों की मांग मानने को तैयार नहीं है। बच्‍चों की शिक्षा को लेकर अभिभावकों में भय के साथ रोष भी है।