न्यूज भारत,सिलीगुड़ीः जीवन के किसी भी पड़ाव पर व्यक्ति की प्रतिभा कब, कहां कैसे उभरती है, ये उसके मन की प्रतिभा पर निर्भर करता है, जो हमारे अंदर बचपन से किसी न किसी क्षेत्र में होती है। बस जरूरत होती है, वक्त और समय की। रचनाएं लिखना और उसे पन्नों पर उतारने के मन में छुपी भावनात्मक विचार होती है। " निशा गुप्ता" की कहानी भी कुछ इसी तरह है, जो बचपन से किताबें पढ़ने के बाद एक ललक होती थी, मैं भी काव्य की रचनाओं को लिखूं, परंतु मन की भावनाएं काफी दिन बाद उभरी, इसका सबसे बड़ा कारण मन में "साधना की शख्सियत" थी जो आज कविता के रूप में उभरी।
" बचपन मे जब सरिता पढ़ती थी,उसमे छपी कविता को देखखर खुद कि कविता को पन्नों पर लिखने का शौक होता था, और कभी कभी लिखती भी थी, और खुद ही खुश हो जाया करती थी। बचपन में सरिता से जो उत्साह मिला। आज उसी का परिणाम है, जीवन का पड़ाव बीतता गया पर मन की चाह बुझी नहीं अभी तीन साल पहले समाज सेवी संस्था जुडी इसमें कवित्री थी जिनकी रचनाओं की दो रचनाएं प्रकाशित हुई, उनका साथ होने के बाद समय ने करवट लिया और कलम उठा लिया" निशा गुप्ता, सिलीगुड़ी
...जाने कैसे समझती मेरी मूक खामोश बाते
और क्या लिखू माँ के बारे मे, और क्या लिखू माँ के बारे मे,
वो तो तब भी समझ जाती,जब हम बोल नहीं पाते थे !
माँ बाते करती है किसी और से,पर निगाहेँ रहती है मेरी और,
जब रहती हूँ घर से बाहर,माँ दरवाजे को ही तकती है !
क्यूंकि वो तो तब भी समझ जाती,जब हम बोल नहीं पाते थे !
जाने कैसे समझ जाती है, मेरी मूक खामोश बाते भी !
मेरी पसंद नापसंद को,एक नजर मे समझ जाती है !
क्युकि वो तो तब भी समझ जाती,जब हम बोल नहीं पाते थे !
जाने कैसी जादूगरी आती है, उन्हें कुछ बताना भी नहीं पड़ता !
जो हर झन मेरा ख्याल रखती है,मेरी हर चाहत पूरी करती है !
क्यूंकि वो तो तब भी समझ जाती, जब हम बोल नहीं पाते थे !