नोंगपोक काकचिंग से टोक्‍यो तक चानू के चर्चे

बीएसएफ ने किया था सम्‍मान गांव में बनाए जिम: अश्‍वनी सिंह

2014 में बीएसएफ ने चानू के सपनों की उड़ान में लगाए पंख

सिल्‍वर जीतने के बाद पूरे मणिपुर इंफाल में जश्‍न का माहौल

गांव के सपने को मेडल में बदलने की ताकत रखती थी चानू

इंफाल तक 25 किमी साइकिल से वेटलिफ्टींग सीखने आती थी

 ‘’सफलता की राह में मिलने वाली असफलताओं से मीरा बाई चानू कभी निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। टोक्यो ओलिंपिक में वही किया जिससे विश्‍व के मंच पर उन्होंने ने भारत का गौरव बढ़ाया। मेडल जीतने के बाद वह रो पड़ीं और खुशी से अपने कोच विजय शर्मा को गले लगा लिया। पहले रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाईं तो खेल को अलविदा कह देंगी। लेकिन चानू ने  कहा, वही होता है जो श्रेष्ठ चाहता है।” उनमें खेल छोड़ने की क्षमता नहीं थी। मीरा वर्ल्ड चैंपियनशिप के अलावा उन्होंने ग्लास्को कॉमनवेल्थ गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीताकर, टोक्‍यो ओलंपिक के सफर को और असान बना दिया।‘’ 

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी/इंफाल

कहतें हैं, प्रतिभाएं किसी परिचय की मोहताज नहीं होती है। अपनी प्रतिभा और लगन का लोह पूर्वोत्‍तर के राज्‍य मणिपुर के इंफाल से 25 किमी दूर गांव की रहने वाली मीराबाई चानू ने टोक्‍यो ओलंपिक में सिल्‍वर जीत कर दिखा दिया। बचपन से भारत्तोलन में रूचि रखने वाली चानू प्रैक्‍टिस के लिए इंफाल से करीब 25 किमी दूर वादियों के गांव से मणिपुर के इंफाल में प्रतिदिन आती थी। चानू ने जब टोक्‍यो ओलंपिक मे सिल्‍वर मेडल की खिताब अपने नाम किया तो पूरी दुनियां में चानू के चर्चे होने लगे। हलांकि वर्ष 2014 में जब चानू ने जब ग्‍लास्‍को कामनबेल्‍थ गेम जब सिल्‍वर जीता, तो सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने चानू की प्रतिभा को सलाम किया। पैतृक गांव आने के स्‍वागत तो किया गांव में ही सिवीक एक्‍शन कार्यक्रम के तहत मिनी जीम सेंटर भी बनाया। ताकि वादियों के इस आदिवासी गांव में आने के बाद जीम की सुविधा उपलब्‍ध हो और चानू को प्रैक्‍टिस के लिए इंफाल ना जाना पड़े।  

पूर्वोत्‍तर के राज्‍य मणिपुर के इंफाल से करीब 25 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को हुआ था। इनकी माता साइकोहं ऊँगबी तोम्बी लीमा है जो पेशे से एक दुकानदार हैं। वहीँ इनके पिता साइकोहं कृति मैतेई है जो पीडब्‍ल्‍यूडी में नौकरी करते हैं। मीराबाई चानू बचपन से ही संपानों की उड़ान लंबी थी, और भारत्तोलन में रूचि रखती थी।  बचपन में केवल 12 वर्ष की उम्र में ही लकड़ियों के भार को उठाकर अभ्यास किया करती थी। वही चानू जब उम्र थोड़ी और बढ़ी तो भारतोलन के लिए 25 किमी दूर इंफाल दिन प्रतिदिन प्रैक्‍टिस के लिए आया करती थीं। उनके इसी कठिन प्ररिश्रम ने आज साइखोम से टोक्‍यो के सपनों की उडान में पंख लगे। वहीं भारत के 21 साल के सफर के इंतजार के सूखे को सपनों को साकर कर भारत समेत पूरी दुनियां में अपना परचम लहराया। मालूम हो कि वर्ष 2000 सिडनी ओलंपिक में 26 वर्षीय कर्णम मल्लेश्वरी के कांस्य पदक के साथ भारत के सपनों की उड़ान को हवा दी थी।

चानू के सपनों की उड़ान की चर्चा करते हुए वर्ष 2014 में 49 बीएन बीएसएफ के कमांडेंट अश्‍वनी कुमार सिंह (वर्तमान में फोर्स्‍ मुख्‍यलय में तैनात) ने बताया कि उस दौरान सीआई कैंप जो लाइकोचिम वर्तमान में दामोदर पोस्‍ट के पास ही मीरा वाई चानू का घर है। वर्ष 2014 में जब चानू ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जब वेटलिफ्टींग में सिल्‍वर मेडल लेकर गांव पहुंची तो पूरा गांव खुशी से झूम उठा। हलांकि उस दौरान दामोदर पोस्‍ट पर चानू और उनके माता-पिता को बुलाकर सम्‍मान दिया। लेकिन बीएसएफ ने चानू की प्रतिभा को पहचाने हुए उनके गांव में ही सीवीक एक्‍शन कार्यक्रम के तहत एक जिम सेंटर की स्‍थापना की गई। ताकि चानू के गांव आने के बाद उन्‍हें छोटे से अभ्‍याय के लिए इंफाल ना जाना पड़े। श्री सिंह ने बताया कि उस दौरान काफी दिनों से मथाउडैम निर्माणाधीन था, लेकिन बीएसएफ के आने बाद उसके निर्माण में भी तेजी और इंफाल तक पेयजल की सुविधाओं का विस्‍तार हुआ। इसके साथ ही पिछड़े आदिवसी क्षेत्र में जन जागरण कर लोगों को कानून और अन्‍य सुविधाओं से अवगत कराया गया था। जिसके कारण आज उस पिछड़े क्षेत्र में काफी जगारूकता आई है।  

उसी दौरान स्‍थानिय निवासी 49 बीएन बीएसफ में डिप्‍टी कमांडेट एडूजेंट रहे विनोद सिंह (वर्तमान में सेकंड इन कमान एफटीआर गुजारात) ने बताया कि लोग चानू की प्रतिभा को बचपन से सलाम करते थे। वेटलिफ्टींग का जूनून इस कदर था कि गांव में सुविधाओं को धत्‍ता बताते हुए चानू गांव से इंफाल तक प्रतिदिन  25 किमी का सफर तयकर सीखने आती थी। आज उनकी इसी लगन का परिणाम है कि आज चानू पूरी दुनियां में अपनी अलग पहचान बना ली।  

मालूम हो कि शुरूआती दौर में वेट लिफ्टिंग में मीरा की कोच मणिपुर की रहने वाली कुंजरानी देवी थी, जो खुद भी वेट लिफ्टिंग में एक भारतीय खिलाड़ी है। मीराबाई चानू एक भारतीय खिलाड़ी है, जिन्होंने हाल ही में कॉमन वेल्थ गेम्स में इंडिया को वेटलिफ्टिंग में पहला गोल्ड मैडल दिलवाकर गौरवान्वित किया है। इस दौरान मीराबाई ने 6 लिफ्टिंग में 6 रिकॉर्ड तोड़े और महिलाओं की वेटलिफ्टिंग में 48 किलोग्राम में पहला स्थान हासिल किया। उनकी इसी प्रतिभा को देखते हुए इसी साल भारत सरकार ने भी इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है। यह सम्‍मान भारत का एक बहुत बड़ा सम्मान है।