“किसी भी काम में अगर आप अपना 100% देंगे तो आप सफल हो जाएंगे। उसे अपनी मेहनत पर इतना भरोसा था की उसकी क़िस्मत को भी खुद से ज्यादा उस पर भरोसा था। ज़िन्दगी अगर खेल है तो इसे जीतने का बस एक तरीक़ा है मेहनत।‘’
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
कठोर परिश्रम और कड़ी मेहनत मनुष्य का असली धन होता है। बिना कठिन परिश्रम के सफलता पाना असंभव है। इस दुनिया में जो व्यक्ति कठिन परिश्रम करता है सफलता उसी का कदम चूमती है। कड़ी मेहनत करने वाले लोग मिट्टी को भी सोना बना देते हैं। यह तो एक साधारण तथ्य है की आज दुनिया भर में हर एक सफल व्यक्ति कुछ ना कुछ कष्ट सहने के बाद ही ऊँचाइयों पर पहुंच पाया है। हमको अपनी शिक्षा के समय से उदाहरण लेना चाहिए, जैसे हम अगर पढ़ाई मेहनत से करते हैं तो हमारा परीक्षा फल भी अच्छा होता है, और अगर हम पढ़ाई मैं आलस करते हैं तो परीक्षा फल बहुत बुरा होता है। दुनियां के सभी महान व्यक्तियों ने कठोर परिश्रम पर अपने अनमोल कथन प्रस्तुत किए हैं। आज हमने इस ‘’साधाना की शख्शियत’’ में टी गार्डन की रहने वाली विद्या दास की कविता ‘’मेहनतो से है मंजिल’’ मेरे अल्फाज में शामिल किया जा रहा है।
मेहनतो से है मंजिल
मंजिले कुछ धुँधला सा है,
मेहनतो पर ही नाज है ।
आसमानो की ऊँचाई कुछ पास है,
हर लम्हे कुछ खास है ।
यह जिन्दगी एक दरिया है,
मेहनत कामयाबी के प्रतीक ।
मुफ्त के पानी न मिलता,
ये दरिया कब डुबा ले चले ।
मेहनतो के दो रोटियां अच्छी,
मुफ्त के घास न मिले ।
हम मेहनती ही अच्छे हैं,
मुफ्त के कुछ हाँथ न लगे ।
मेहनतो पर निर्भर मजदूरे,
हर आँखों की आश टिके ।
मेहनतो से पसीने की पहचान,
हर ईमानदारों का ईमान ।
बढें चलें सफलता की ओर,
कर मेहनतो का गुणगान ।
सपने ऊँचे जरूर हो,
हकीकत है, मेहनतो के नाम ।
विद्या दास
घाठियाँ टी गार्डन नागराकाटा
जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल)