बगावत के सुर : दीदी इन, दादा आउट

नांटू पाल ने की बगावत, निर्दल लड़ेगें चुनाव  

अशोक को वाकओवर, सि‍लीगुड़ी से बंगाल टाईगर पर नजर

अभिनव प्रयोग से सफलता व असफलता दोनों के आसार बढे  

टूट की संभावना बढ़ी, और भी तृंका नेता बगावत करने के मूड में  

पवन शुक्‍ल, सि‍लीगुड़ी

बंगाल मिशन-2021 के रण में घमाशास शुरू हो चुका है। एक तरफ जहां 5 मार्च की दोपहर तक टिकट के प्रबल दावेदारों में जोर शोर से तैयारियों परवान चढ़ रही थी। वहीं अपने प्रत्‍याशियों की सूची जारी करते हुए तृणमूल सुप्रिमो ममता बनर्जी ने चिकननेक की सीट डुवार्स के लाल को सौंपा तो यहां मतमी सन्‍नाटा छा गया। हलांकि दीदी ने यह टिकट शिक्षाविद प्रो ओमप्रकाश मिश्रा को टिकट देकर एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश की है। राजनीतिक के पुरोधा बताते हैं कि बंगाल ही एक मात्र ऐसा नगर निगम है जहां का प्रशासक बाम मोर्चा के अशोक भट्टाचार्य (दादा) को दिया था। वहीं दूसरी और लोगों का ममना है कि डुवार्स के लाल डा. मिश्रा प्रख्यात शिक्षाविद डुवार्स के जरूर है पर सि‍लीगुड़ी की राजनैतिक गलियारे से वाकिब नहीं है। वहीं दूसरी और अशोक भट्टाचार्य को वाकओबर देने की चर्चा जोर पकड़ रही है। हलांकि राजनीतिक गलियारे में यह भी चर्चा है कि बंगाल टाइगर टीम इंडिया के पूर्व कप्‍तान सौरभ गांगुली (दादा) पर अशोक भट्टाचार्य से काफी नजदीकियां है। लोगों का मनना है कि सि‍लीगुड़ी के ‘दादा’ को वाकओबर देकर और बंगाल टाईगर दादा को भाजपा में जाने से रोकने की पहल मना जा रहा है।

निर्दल भाग्‍य आजमाएंगे नांटू पाल    

मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने जैसे ही अपने प्रत्‍याशियों की सूची जारी की और खबर आते हुए सि‍लीगुड़ी तृणमूल में खलबली मचना स्‍वाभाविक था। चुनाव के सुपर संडे को अपने पहले कंपेन करने सि‍लीगुड़ी जैसे दीदी इन की तो नांटू पाल (दाद) के बगावत के सुर साफ दिखने लगे। उनके कार्यक्रम खत्‍म होने के बाद जैसे ही कोलकाता की रूख किया ममता बनर्जी ने तो नांटूपाल ने पत्रकारों से अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए निर्दल ताल ठोंकने का फैसला सुनाया। उन्‍होंने एक साक्षात्‍कार में कहा कि मेरा टिकट पक्‍का था, और दो माह से तैयारी भी चल रही थी, ममता बनर्जी अचानक फैसले से आहत हूं। वहीं सूत्र बताते हैं आने वाले समय में पूर्वोत्‍तर के चिकननेक में और भी नेता बगावत कर पाला बदलने की फिराक में है। श्री पाल ने बताया कि अपने 40 वर्ष के राजनैतिक जीवन में मैं बंगाली होने के बावजूद भी हमेशा हिंदीभाषी क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जनता का आर्शिवाद मिला है। इस बार अपने इस फैसले को लेकर जनता के बीच जा रहा हूं और फैसला जनमानस करेगा।

दीदी का अभिवन प्रयोग या डिक्‍टेटरशिप

करीब एक दशक के इतिहास में दीदी ने कई अहम फैसले अचानक लिए है। जैसे 2011 के चुनाव में डा. रूद्र नरायण भट्टाचार्य को टिकट देकर बाजी मारना। हलांकि डा. भट्टाचार्य की ईमानदरी को लेकर दल में घमासान होने के कारण दीदी 2016 के चुनाव में बाईचुंग भूटिया को चुनाव में उतारने को अभिनव प्रयोग माना जाता है। हालंक‍ि टीम इंडिया फुटबाल के पूर्व कप्‍तान भूटिया चुनाव हार गए। लेकिन दीदी के मिशन 2021 में प्रयोग जहां टीएमसी कमजोर हुई वहीं बगावत की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। वहीं इस तरह के फैसले को लेकर अक्‍सर सूर्खीयों रहने वाली ममता बनर्जी के इस फैसले को कार्यकर्त दीदी की डिक्‍टेटरशिप मान रहे हैं।