साथी मुझको याद करेंगे, भीगी-भीगी शामों में...

स्मृति शेष

अंकुश के जन्मदिन पर बड़े भाई अमन ने दिया अपनी मौत का तोहफा

मासूम सी जान अधर्व के सिर उठा पिता साया, तो सूनी हुई आयशा की मांग

मां सुमन का आंचल हुआ सूना, बिछड़ गयी अनिल के राम-लक्ष्मण की जोड़ी   

पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी

सूर्य अस्ताचल की ओर था, मोक्ष दायिनी महानंदा शांत हो रही थी, आंखों में आंसुओं का सैलाब था। स्थान था, रामघाट कारण था, समाजसेवी अनिल बंसल के बड़े पुत्र अमन बंसल की एक हादसे में मौत। सुबह अमन के मौत की खबर ने जहां सिलीगुड़ी के व्‍यापार जगत को मर्माहत किया। वहीं दोपहर बाद जैसे ही अमन का पार्थिव शरीर घर कृष्ण वाटिका पहुंचा, तो उपस्थित जनसमूह के आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मां सुमन बंसल की हालत रह-रह कर खराब हो रही थी। वहीं पत्नी आयशा बंसल बेसुध हो गयी। दादा हुकमी चन्द अग्रवाल व दादी देवकी देवी अग्रवाल की दहाड़़ ने सभी को विचलित कर दिया। जबकि करीब तीन माह का नन्हीं सी जान अधर्व बंसल को दुनिंया के इस दर्द से बेखौफ था। चाचा संजय बंसल व मनोज बंसल का तो बुरा हाल था। पिता अनिल बंसल की सूनी आंखें तो हर जगह अमन की तलाश में थी, पर अफसोस दिलों में जो गमों के समुंदर में सौलाब था वह शब्दों में बयां नहीं जा सकता। अमन के बिछड़े साथियों के लिए हर शाम सिर्फ एक दर्द भरी याद रह गयी।  

साथी मुझको याद करेंगे, भीगी-भीगी शामों में

लेकिन इक मासूम सा दिल भी, इन सारे हँगामों में

छुप-छुप के रोने का बहाना ढूँढेगा दिल का सूना साज़...!

आस का सूरज साथ रहेगा, जब साँसों की राहों में

ग़म के अंधेरे छट जायेंगे, मंज़िल होगी बाँहों में

प्यार धड़कते दिल का ठिकाना ढूँढेगा दिल का सूना साज़...!

व्यापार जगत में सबका दुलारा था अमन

‘होनहार बीरवान के होत चिकने पात’ की कहावत को अमन सिर्फ 26 साल की उम्र में व्यापार के उन सभी कायदे कानून को इतनी बारिकयों से समझने लगा कि उसके दोस्त उसे गुरू मानते थे। श्री आटोमाबाईल पीबीआर टावर से स्कूटी के व्यापार जुटे अमन ने कुछ ही दिनों में अपने पिता की तरह एक अलग पहचन बना ली थी। जिसके कारण उसके सभी दोस्त व परिवार लोग उसे होनहार कहते थे। हलांकि इससे अलावा अमन ने कई कंपनियों के कारोबार को बेहतर ढ़़ंग से संचालित कर रहा था।

टूट गयी ममता की डोर, तो बिछड गया लक्ष्मण से राम

अमन की मौत जहां परिवार पर दुखों का पहाड़ लेकर आई। वहीं मां सुमन बंसल के आंचल की छांव से एक होनहार पुत्र के खोने के दर्द को बयां नहीं किया जा सकता है। बचपन से लेकर जवानी तक ममता की छांव रखने वाली सुमन बंसल के ममता की डोर तो टूट ही गयी। लेकि‍न पिता अनिल बंसल रोज सुबह उठने के साथ विस्तर पर अपने सामने राम-लखन को देखते थे। लेकिन किस्मत का खेल निगोड़ी आग ने दुनियां के सबसे बड़ा बोझ ‘बाप के कंधे पर बेटे की अर्थी’ ने अनिल के लखन से राम को जुदा कर दिया।

खत्म हो गई चूडियों की खनक, मातम में बदला जन्मदिन

सिलीगुड़ी के होनहार युवा व्यवसायी अमन बंसल की मौत ने जहां व्यापार जगत को मर्माहत किया। वहीं वैविहक जीवन के पांचवे बंसत को पूरा नहीं कर सकी आयशा का जख्म तो  इतना गहरा जो आजीवन भर नहीं सकता। एक तरफ सूनीं मांग तो दूसरी तरफ चूडिंयों की खनक उसके जीवन मुख मोड लिया। अपने वैवाहिक जीवन की निशानी मासूम सी जान ही अब उसके जीने का सहारा बनेगा। सबसे दुखःद बात यह रही जिस दिन अमन की मौत हुई उसी दिन छोटे भाई अंकुश बंसल की जन्मदिन था, और तोहफे में मिली बडे भाई की अर्थी।   

परंतु शायर ‘फ़ैज़ अहमद फ़ैज़’ की ये लाइनें इस परिवार के दर्द पर सटिक लगती है।  

जमेगी कैसे बिसाते-याराँ कि शीशा-ओ-जाम बुझ गये हैं,सजेगी कैसे

शबे-निगाराँ कि दिल सरे-शाम बुझ गये हैं,।।

वो तीरगी है रहे-बुतां में चिरागे-रुख़ है न शम्मे-वादा,किरण कोई आरज़ू की लाओ कि सब दरो-बाम बुझ गये हैं।

बहुत संभाला वफ़ा का पैमां मगर वो बरसी है अबके बरखा,हर एक इकरार मिट गया है, तमाम पैग़ाम बुझ गये हैं।

करीब आ ऐ महे-शबे-ग़म नज़र पे खुलता नहीं कुछ इस दम,कि दिल पे किस-किसका नक़्श बाकी है कौन से नाम बुझ गये हैं।

बहार अब आके क्या करेगी कि जिनसे था जश्ने-रंगों-नग़मा,वो गुल सरे-शाख़ जल गये हैं, वो दिल तहे-दाम बुझ गये हैं।।

शव्द का अर्थ ( तीरग़ी=अंधेरा)