सरकार में भागीदारी की व्‍यापारियों को भी दरकार

चुनाव की घोषणा से सि‍लीगुड़ी के व्‍यापारियों में सुगबुगाहट  तेज

दल से मतलब नहीं व्‍यापारियों की समस्‍या के लिए भागीदारी चाहिए

टीएमसी से डा. रूद्र नरायण भट्टाचार्य 2016 में जीत चुके हैं विस चुनाव

पवन शुक्‍ल, सि‍लीगुड़ी

बंगाल के दूसरे सबसे बड़े ट्रेडिंग बाजार में शुमार पूर्वोत्‍तर के प्रवेश द्वार सि‍लीगुड़ी। व्‍यापारी भी अब सरकार में भागीदारी की बात कर रहे हैं। हलांकि जातिगत आधार पर देखा जाय तो सि‍लीगुड़ी विधानसभा क्षेत्र बंगाली जनाधार का क्षेत्र है। बावजूद इसके व्‍यापार में पूर्वोत्‍तर में अपनी धाक जमाने वाले चिकननेक के व्‍यापारियों को सरकार में भागीदारी नहीं मिलने का मलाल है। व्‍यापारी संगठनों का कहना है कि हम लगातार इस विधानसभा क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं। बावजूद इसके हमारी समस्‍याओं को सदन के पटल पर रखने वाले प्रतिनिधि की कमी महसूस होती है। यहां के दलों को चाहिए की व्‍यापारियों की समस्‍याओं का निस्‍तारण सदन के पटल पर रखने के लिए विधान सभा के चुनाव में भागीदारी सुनिश्चित करानी चाहिए। पूर्वोत्‍तर की सबसे बड़ी गल्‍ला मंडी खालपाड़ा के व्‍यापारियों का कहना है, कि सि‍लीगुड़ी विधान सभा क्षेत्र में करीब सभी दलों में व्‍यापारी नेता मौजूद हैं, परंतु उनसे सिर्फ नोट और वोट की जरूरत होती है।     

वहीं चिकित्‍सा के क्षेत्र में भी कोलकता के बाद उत्‍तर बंगाल का शहर सि‍लीगुड़ी एक अहम स्‍थान रखता है। इसलिए सरकार में भागीदारी के लिए डाक्‍टरों की साझेदारी होनी चाहिए। हलांकि 2011 में हुए विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने डा. रूद्र नारायण भट्टाचार्य पर भाग्‍य आजमाया और लगातार चार बार सि‍लीगुड़ी सीट पर काबिज रहे बमफ्रंट के उम्‍मीदवार अशोक भट्टाचार्य का पटखनी देकर नवन्‍ना पहुंच गए। हलांकि अंदरूनी कलह के कारण 2016 में तृणमूल ने उन्‍हें टिकट नहीं देकर भारत के फुटबालर व टीम इंडिया के पूर्व कप्‍तान बाईचुंग भूटिया को मैदान में उतरा लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

इस बावत सि‍लीगुड़ी मर्चेंट एसोशिएन के सचिव गौरी शंकर गोयल का कहना है। हम दल की बात नहीं करते है करीब-करीब सभी दलों में व्‍यापारियों की भागीदारी है। बावजूद इसके किसी भी दल ने यहां के व्‍यापारियों को सरकार में भागीदारी के लिए जगह नहीं दिया। कुछ को मिला तो जरूर पर नगर निगम चुनाव तक ही सि‍मट के रह गया। उन्‍होंने कहा कि कोई भी दल अगर व्‍यापारियों को विधान सभा चुनाव में यहां से टिकट देता है तो हम व्‍यापारी अपनी जान लगाकर नवन्‍ना पहुंचाने का प्रयास करेंगे। दल के नेताओं की चर्चा करें तो बामफ्रंट में कमल अग्रवाल, भाजपा में बिमल डालमिया, प्रवीण अग्रवाल, सविता अग्रवाल सरीखे कई नेता मौजूद हैं जो चुनाव जीतने की ताकत रखते है। वहीं बिना दल के कई तेज तर्रार व्‍यवसायी है जो कोई पार्टी चाहे चुनाव में अपना भाग्‍य आजमा सकती है।

तृणमूल की तरह चिकित्‍सकों पर भाग्‍य आजमा सकते हैं दल

तृणमूल ने वर्ष 2011 में डा. रूद्र नरायण भट्टाचार्य को मैदान में उतार कर सफलता हासि‍ल की। इसलिए संघ में कई ऐसे चिकित्‍सक भी है जिस पर दल अपनी किस्‍तम आजमा सकते हैं। वहीं संघ से जुड़े प्रमुख चिकित्‍सक डा. अमिताभ मिश्रा का भी नाम सामने है और कई चिकित्‍सक भी राजनीति में आ सकते हैं। हलांकि श्री मिश्रा संघ से जुड़े होने के कारण उनको जो दायित्‍व मिलेगा वह कर सकते है। परंतु दलों को चिकित्‍सकों पर भी भाग्‍य आजमाने की जरूरत महसूस हो रही है।