चुनावी वैतरणी पार करने की कवायद

विधान सभा चुनाव अधिसूचना के बाद गहमा गहमी शुरू

लाल सलाम को मात देने में जुटी टीएमसी व भाजपा

हिंदी भाषियों में बेहतर प्रत्‍याशी हो सकते हैं बिमल डालमिया

पवन शुक्‍ल, सि‍लीगुड़ी   

अंर्तराष्‍ट्रीय सीमाओं से घिरी और पूर्वोत्‍तर के चिकननेक की धरती सि‍लीगुड़ी विधानसभा सीट पर अपने प्रत्‍याशियों को लेकर फिर इतराने की वजह बन रही है। हलांकि चुनाव की खुमारी तो दो माह पहले ही शुरू हो चुकी। विभिन्‍न दलों में बामफ्रंट, भाजपा व टीएमसी अपने-अपने प्रत्‍याशियों को लेकर कोलकता से लेकर नई दिल्‍ली के बीच जोर आजमाइस का दौर करीब दो माह पहले से शुरू हो चुका है। सत्‍तासीन तृणमूल कांग्रेस की मुखि‍या को भी इस चिकननेक की सीट नहीं मिलने का मलाल है। वर्ष 2011 के चुनाव में यह सीट डा. रूद्र नारयण भट्टाचार्य ने वामफ्रंट से छीनी थी। लेकिन 2016 के चुनाव में टीएमसी के खाते से यह सीट फिर सीपीएम के खाते में जाने के बाद जोर आजमाइस 2021 में शुरू हो गई है। वहीं भाजपा की बात करें तो वर्तमान में इस विधान सभा की सीट के सांसद भाजपा से है, लेकिन विधानसभा को लेकर आज भी उहापोह की स्‍थि‍ति‍िबरकरार है। हलांकि बंगाली वोटरों के वचर्स्‍व के कारण अभी तक यह सीट का इतिहास बताता है कि यहां बंगाली उम्‍मीदवार बेहतर हो सकता है। लेकिन तृणमूल के हिंदी सेल के गठन के बाद से ही हिंदी भाषियों में टिकट को लेकर उम्‍मीद जगी है। तृणमूल में जहां चुनावी टिकट पर हिंदीभाषी उम्‍मीदवार अपना परचम लहराना चाहते है। वहीं भाजपा में भी जिलाध्‍यक्ष प्रवीन अग्रवाल, सविता अग्रवाल व बिमल डालमिया के नाम की चर्चा जोर पकड़ रही है। वैसे इन तीनों हिंदी भाषियों में बिमल डालमिया का राजनैतिक के साथ-साथ सामाजिक जुड़ाव बेहतर है। इसलिए हार-जीत की बात दरकिनार कर बिमल हिंदी भाषियों के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं। वहीं चुनाव की इस वैतरणी नदी में सभी लोग जीत के मोक्‍क्ष को पाने फिराक में लगे है।

अगर सि‍लीगुड़ी विधानसभा सीट की चर्चा करें तो 1977 के पहले अधिकतर इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा। साल 1977 व 1982 में कम्‍युनिष्‍ट पार्टी के बीरेन बोस ने दो बार प्रतिनिधित्‍व किया जबकि वर्ष 1987 में इसी पार्टी के गौर चक्रवर्ती भी प्रतिनिधत्वि कर चुके हैं। लेकिन 1991 के बाद के चुनावों में लगातार चार बार इसी सीट पर लाल सलाम को यहां की जनता ने सलाम किया। हलांकि ममता लहर में वर्ष 2011 में पाक-साफ छवि के डाक्‍टर रूद्र नारयण भट्टाचार्य को मैदान में उतार कर ममता ने बाजी मार ली। लेकिन एक टर्म के बाद ही वर्ष 2016 के चुनाव में फिर जनता ने अपने पुराने प्रत्‍याशी अशोक भट्टाचार्य को सलाम करते हुए पुन: यह सीट सौंप दी। ‘मिशन 2021’ में भी इस सीट पर अशोक भट्टाचार्य ही लाल सलाम की ओर ताल ठोंकेगें। लेकिन जोर आजमाइस के इस दौर में कौन हो सरताज इसका फैसला 2 मई 2021 को होगा। सि‍लीगुड़ी सीट के लिए भारतीय जनता पार्टी भी वर्ष 1996 से चुनाव में भाग लेते हुए अपने प्रत्‍याशी एम बी मुखर्जी को मैदान में उतारा था। श्री मुखर्जी को कुल वोट का 7.6 प्रतिशत वोट के साथ 14479 वोट लेकर चुनाव हार गए। वहीं 2001 के चुनाव में भाजपा ने गोविंद चटर्जी को मैदान में उतारा था, लेकिन इस चुनाव में उन्‍हें 1996 के चुनाव से कम करीब 4.59 प्रतिशत के साथ 8417 वोट मिले। हलांकि 2006 में भाजपा का कोई प्रत्‍याशी मैदान में नहीं था। 2011 के चुनाव में भाजपा ने फिर ताल ठोंकते हुए अरून प्रसाद सरकार को मैदान में उतारा। लेकिन वह पुराने वोट प्रतिशत के रिकार्ड को तोड़ते हुए करीब 4.05 प्रतिशत वोटों के साथ 6069 वोट पर ही सीमट गए।

लेकिन दार्जिलिंग के संसदीय क्षेत्र भाजपा के कब्‍जे में आने के बाद भाजपा के वोटों में तेजी इजाफा हुआ। वर्ष 2016 के चुनाव में अपने वोट प्रतिशत का ग्राफ तेजी से बढ़ाया जो वोट प्रतिशत 4 के आसपास रहता था। लेकिन 2016 में भाजपा प्रत्‍याशी गीता चटर्जी ने करीब 7.41 प्रतिशत वोटों का इजाफा हुआ। इस चुनाव में 11.46 प्रतिशत वोट हासि‍ल करते हुए 19300 वोट मिले। हलांकि गीता चुनाव तो हार गई, लेकिन भारतीय फुटबाल टीम के पूर्व कप्‍तान वाईचुंग भूटिया के बाद तीसरे नंबर पर रह कर वह भाजपा के विजय अभियान को आगे बढ़ाने की शुरूआत कर दी। वहीं मिशन 2021 में चुनाव में टिकट की तैयारियों में मुख्‍य रूप से जो नाम सामने आ रहे है। उसमें जिलाध्‍यक्ष हिंदीभाषी प्रवीण अग्रवाल, सविता अग्रवाल और बिमल डालमिया व गैर हिंदी भाषी में नृपेन्‍द्र नाथ दास, डा. कष्‍णनेंदु पाल, मालती राय, परमिता चौधरी समेत करीब 6 दर्जन से अधिक लोगों ने कोलकाता से लेकर नई दिल्‍ली भाजपा मुख्‍यालय में अपने बायोडाटा के साथ दस्‍तक देकर चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है। सबसे अहम बात यह है कि इस 6 दर्जन लोगों में कुछ ऐसे लोग भी शामिल जो वार्ड कांउसलर का चुनाव भी नहीं जीत सकते है। लेकिन भाजपा के लहर और मोदी की गंगा में डुबकी लगाकर चुनावी नदी को पार करना चाहते हैं।

क्‍या है बिमल डालमिया की खासि‍यत

सि‍लीगुड़ी में पाक-साफ छबि को लेकर समाज सेवा के क्षेत्र में एक अलग पहचान है डालमिया परिवार का। वहीं उद्योग के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाने वाले डालमिया परिवार के बिमल की छवि साफ सुथरी है। जबकि राजनैतिक क्षेत्र में अपनी बेहतर पकड़ रखने वाले बिमल डालमिया को हिंदी भाषी वोटों के साथ गोरखा समुदाय के वोटों को भी मिलने की संभावना प्रबल है। क्‍योंकि कभी पहाड़ के बिमल गुरुंग जब भाजपा में थे तो उनके काफी करीबी दोस्‍तों की श्रेणी में बिमल शुमार थे, इसलिए गोरखावोट की संभावना है। वहीं बंगाली समुदाय में भी बिमल की पहचान बेहतर है, सामजिक सरोकारों के साथ बिमल अपने समुदाय के साथ बंगाली में अलग पहचान है। इस बावत बिमल ने बताया कि हमने अपना बायोडाटा दिया है, लेकिन सीधे भाजपा के मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में। संघ से जुड़े होने के कारण बिमल डालमिया की पहचान भाजपा में बेहतर है। हलांकि पार्टी किसे टिकट देगी यह कहना मुश्किल है पर अगर हिंदी भाषी को टिकट मिलता है तो बिमल डालमिया की दावेदारी से इंकार नहीं किया जा सकता।