साधना की शख्सियत-9

मैं शराब लिखूं, तुम अर्थव्यवस्था समझना

न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः शब्दों को मन की भावना से पन्नों पर उकेरना ही लेखक के कल्पनाओं की पहचान होती है। शब्दों के माध्यम से अपनी भावनाओं को काव्य में परोसना ही कवि की पहचान होती है। बेहतर लेखन से व्यक्ति की साधना को दर्शाता है, वह लेखन के प्रति कितना संवेदनशील है। अगर उसकी रचनाओं को सराहना मिली और समाज में पहचान मिली तो अवश्य ही प्रयास बेहतर किया है। सामाजिक बुराई व अच्छाई को काव्य में पिरोना ही " साधना की शख्सियत"है। उम्र का पड़ाव जो भी रचनाओं को लिखने ललक दिखी " मनीषा सिंह" के शब्दों में झलकती है।
" रचनाओं को लिखने का शौक तो बचपन से और कोशिशों का दौर जारी है, मुकाम और मंजिल को हासिल करने का प्रयास शुरू की है"
मनीषा सिंह, रानीडंगा सिलीगुड़ी
मैं शराब लिखूं तुम अर्थव्यवस्था समझना, मुझे मयखाने की परवाह नहीं,
तुम तो देश की व्यवस्था समझना,हां माना की मधुशाला ज़रा बदनाम हैं,
एक वक्त की रोटी नहीं पर , दो वक्त का जाम हैं,घंटों तक लोग कतार में रह सकते हैं,
शराब के लिए तो कई जिन्दगी तबाह कर सकते हैं,
रोजमर्रा की मेहनत को किनारा किया जा रहा है,
बेचकर शराब मयखाने में अब कोरोना को हराया जा रहा है,
मौत का खौफ कहां है इनको?वह तो शराब पीकर मस्त है,
यमराज से कहो ज़रा ठहरने को,अभी तो वह मयखाने में व्यस्त हैं,
एक बोतल शराब के लिए, कतारों में ज़िन्दगी लेकर वह खड़ा हैं, अरे!!
मौत तो वहम मात्र हैं, आज तो नशा जिंदगी से बड़ा है।