तय और निश्चय में रूठों का पेंच

फिलगुड व शाईनिंग इंडिया का राह पर कही बंगाल चुनाव तो नहीं ?

दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी तरजीह, भारी पड़ सकता है भाजपा पर

केन्द्र के जोरदार प्रयास पर पानी फेर सकतें हैं पुराने रूठे कार्यकर्ता

दल के पदों पर भगवा रंग व हिंदुत्व रंग के और गाढ़ा करने जरूरत

पवन शुक्लं, सि‍लीगुड़ी

‘राज्यं की ममता सरकार का जाना तय ही नहीं निश्चयय समझ लिजीए’ शनिवार को बंगाल दौरे पर आए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीरय अध्यकक्ष जेपी नडडा ने कही है। लेकिन पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी का खामियाजा भाजपा को मुश्किल डाल सकता है। हलांकि पार्टी में बदलाव का जोश तो नजर आ रहा है। लेकिन केन्द्रीतय नेताओं के दम पर ? स्थाजनीय स्त र को अगर ठीक से खंगले तो जमीनी हकीकत का अंदाजा हो जाएगा। भाजपा अपने पुराने इतिहास को शायद भूल रही है, वहीं अटल बिहारी बाजपेयी के समय में ‘फिलगुड व शाइनिंग इंडिया’ के नारे पर भी भाजपाइयों का जोश हाई था, परंतु जमीनी हकीकत से दूर और परिणाम पराजय का सामना करना पड़ा। हलांकि ममता को मात देने के लिए केन्द्री य गृहमंत्री व भाजपा के चाणक्यम अमित साह के दौरे से भाजपा कार्यकर्ताओं का जोश में कमी तो रति भर नहीं है। परंतु तय और निश्चेय के बीच में रूठों का पेच भाजपा के लिए अटल जी का ‘शाइनिंग इंडिया’ साबित हो सकता है।

दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी की तरजीह

उत्तेर बंगाल के पदाकिारियों के पदों पर बैठे अधिकतर वहीं नेता हैं जो किसी अन्ये दल से भाजपा में आए हैं। राजनीति में यह सिलसिला तो चलता है, लेकिन दार्जिलिंग के तत्का लिन सांसद एसएस आहुवालिया जिनकी राजनैतिक शुरूआत कांग्रेस के बाद भाजपा के सक्रिय सदस्यह सांसद व मंत्री भी हैं। उनके दार्जिलिंग सांसद होने के बाद उत्तार बंगाल के पुराने भगवारंग के कार्यकर्ताओं उतारने का जो सिलसिला शुरु हुआ। आज हालात यह है कि उत्तुर बंगाल के अधिकतर वहीं काबीज है जो अन्यआ दलों से भाजपा में शामिल है और दशकों से कमल खिलने का सपना देखने वाले भाजपाई आज पार्टी की सबसे पीछे की लाइन में खडे़ होकर खुद को छला महसूस कर रहे हैं। हलांकि भाजपा के कुछ हिन्दुेत्वर विचारधारा के लोग खासकर उत्तहर बंगाल और सिलीगुड़ी में अन्यद दलों दलों से भाजपा में आए और कुर्सी पर काबिज हो गए इसके लिए जिम्मेऔदार दार्जिलिंग के पूर्व सांसद व राज्यि के नेताओं को मानते हैं। उनका मानना है आज भाजपा के उत्तर बंगाल व सिलीगुड़ी संघ के संवाद की विचारधार को खत्मम कर कारपोरेट डिक्टेतटरशिप पर काम हो रहा है। जो आने वाले समय में भाजपा से भाजपा के समर्पित कार्यकताओं को भाजपा से मोह भंग कर सकता है। हलांकि वह कार्यकर्ता किसी अन्य  दल में नहीं जाएंगे लेकि‍न मोहभंग होने से अगर किसी को नुकसान होगा तो वह है भाजपा ?    

राष्ट्रीय प्रयास बेहतर, मोदी के विकास की भी चर्चा

लाल सलाम के गढ़ में भागवा रंग को और गाढ़ा करने में भाजपा के केन्द्री य नेतृत्वम की चर्चा तो चल रही है। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र् मोदी के ‘विजन इंडिया’ ‘मेक इन इंडिया’ ’सबका साथ सबका विकास’ को अगर देखे तो लोग पसंद भी कर रहे हैं और प्रभावित भी हैं। लेकिन रूठों का समझने की जरूरत है क्योंखकि अगर वास्तंव में देखा जाय तो अन्यठ दलों से भाजपा में आने वाले नेता सिर्फ कुर्सी पर काबिज होना उनका प्रथम लक्ष्यय, राष्ट्र वाद का स्थासन दूसरे नंबर पर है। जबकि जिनके रग-रग में हिन्दुकत्व  और राष्ट्र प्रथम की भावना से काम कर रहे हैं आज वहीं उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। अगर सूत्रों की माने तो भाजपा के राष्ट्री य नेता व बंगाल के प्रभारी भी बंगाल की राज्यष के पदाधिकारियों की व्य्वस्थान से बहुत खुश नहीं है।

एक दूसरे को मात देने की कोशिश जारी

राहुल सिन्हा के बाद राज्य कुर्सी पर काबिज दिलीप घोष व मुकल रॉय की चर्चा करें तो दोनों दो धड़ों में नजर आते हैं। जबसे मुकल रॉय को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है तबसे दोनों के बीच अंदरखाने खींच तान और बढ़ गया है। दोनों नेताओं के शक्ति प्रर्दशन का नजारा कोलकता के विधानसभा चलों अभियान में साफ दिखा। इसी तरह उत्तर बंगाल की बात करें तो मुकुल रॉय के उपाध्यक्ष बनने के बाद उनके खेमे के नेताओं की हलचलें भी तेज हो गई है। जबकि दिलीप घोष की लाबी के लोग अपनी अस्तीत्व को बचाने के लिए जोरदार प्रयास कर रहे हैं।   

पदों पर हिंदुत्व रंग के और गाढ़ा करने जरूरत

बंगाल में भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं का मानना है कि जो भी पार्टी में आए स्वालगत है। लेकिन संघ विचारधारा व हिन्दुकत्वक की साख पर आज दुनियां की सबसे बड़ी पार्टी को अपने पुराने नेताओं को बलिदान को नहीं भूलना चाहिए ?  क्योंबकि एक ‘देश, एक निशान’ के बंगाल के वीर डाँ. श्याकमा प्रसाद मुखर्जी के सपनें को ठेस लगेगा। समर्पित कार्यकर्ताओं का मनना है कि पार्टी में अन्यु पार्टी से आए नेताओं का स्वासगत है, लेकिन सत्येता यह है, कि वह पार्टी की विचारधा से प्रभावित नहीं होकर भाजपा में आए हैं। वह राजनीति में अपनी पकड़ बने रहने के लिए आते हैं। कुर्सी उनकी पहली प्राथमिकता है, जबकि भाजपा की प्राथमिकता राष्ट्रं प्रथम है। इसलिए भाजपा में आए लोगों को पहले भाजपा की नितियों को पढ़ाने के बाद ही अगर दायित्वस दिया जाए तो बेहतर होता।

भाजपा में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, आज की भाजपा  

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 1939 से सक्रिय राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। वह लगातार गांधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया। डा. मुखर्जी ने कहा था 'वह दिन दूर नहीं जब गांधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।' और वह हमेशा ही नेहरूजी और गांधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि उनको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा। उन्हेा जब अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में बतौर वित्त मंत्रालय का काम संभालने के बाद डॉ. मुखर्जी ने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। उनके इसी सहयोग के कारण हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा। 1950 में भारत की दशा दयनीय थी, इससे डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा ठेस लगा और उनसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया। अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक डॉ. मुखर्जी जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।

राष्ट्रीयता को देनी होगी प्राथमिकता

भारतीय जनता पार्टी का सिद्धांत है कि राष्ट्र पहले दूसरे नंबर पर पार्टी और तीसरे नंबर पर स्वयं का हित की विचारधारा को रखती है। लेकिन सत्ता के इस दौर में सब कुछ उल्टा हो चला है, क्योंकि दूसरे दल से आने वाले लोग भाजपा की इस विचारधारा के विपरित चल रहे हैं। इसलिए भाजपा को अपनी विचारधारा को कायम रखने के लिए सबसे पहले उन कार्यकर्ता का तरजीह देना होगा जो कर्इ दशकों से भाजपा को बंगाल में खड़ा करने के लिए लाठी-डंडा खाए हैं। अगर भाजपा बंगाल में संगठन को और उंचार्इयों पर ले जाना है तो डॉ. मुखार्जी के आदर्शें पर चलना होगा। अन्यथा आने वाला समय मुश्किलभरा होगा।

मेरा बूथ सबसे मजबूत की निकल रही हवा

बंगाल में करीब 70 हजार से अधिक बूथ हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है करीब 75 प्रतिशत बूथ जिला कमेटी के कागजों तक सीमित है। भाजपा को इसकी जांच केन्द्रीय कमेटी की समिति से कराने की जरूरत है। इसके बाद बूथ कमेटी पर तैनात भाजपा कार्यकर्ता की समस्याएं सुनकर उसके समाधान की भी जरूरत है। अन्यथा केन्द्र की योजना “मेरा बूथ सबसे मजबूत” की हवा निकलने में देर नहीं लगेगी।

पिछली खबर का लिंक  (हौशलों की उडानान, जमीनी सपने नदारत)-(https://nenewsbharat.com/news-details/940/A-flight-of-spirits-missing-the-ground-dreams)