सपनों के शहर से बेरूखी का जख्म...

सपनों को ले अपनों के साथ गए, हो गए पराए

न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः वैश्विक कोरोना(कोविड19) ने जो जख्म दुनियां को दिया, पर भारत इस महामारी ने करोणों मजदूरों को ऐसा जख्म दिया है वे अपने जीवन के साथ आने वाली पीढियों को भी डराएगी। भारत के विभिन्न राज्यों से दूसरे राज्यों के महानगर और शहरों में जीवन के सपनों को लेकर अपनों के साथ गए, आज या तो पराए हो गए या उनसे बिछड़ गए संपूर्ण भारत बंद (लाकडाउन) ने उन्हें ऐसा जख्म दिया। अब वे अपने जीवन और अपने परिवार के जीवन को बचाने के लिए हजारों किलोमीटर के लंबे सफर पर। एक तरफ लाकडाउन से रोजगार बंद, दूसरी तरफ कोरोना से मौत का खौफ, अर्थात दोनों तरफ मौत! मतलब एक तरफ कुंआ तो दूसरी ओर खाई। ये हाल उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा समेत करीब हर राज्यों के मजदूरों का है। गांव की पगडंडियों से बाहर निकल कर मजदूर शहरों की चकाचौंध से नाता जोड़कर अपने व परिवार के जीवन और उज्वल करने की कोशिश में गांव से निकले थे। परंतु भाग्य ने वैश्विक महामारी का ऐसा जख्म दिया की शहरों की चकाचौंध को भूलकर अपने गांव और अपनों के पहुंचने के लिए पैदल और भूखे प्यासे निकल पड़े।
इसी प्रकार कोलकाता व वर्धमान की एक फैक्ट्री में काम करने वाले बानरहाट के 11 मजदूरों का दल शुक्रवार की सुबह घर जाने के लिए परेशान थे। भक्तिनगर पुलिस ने उन्हें बानरहाट भेजने की व्यवस्था कर रहा था। एक मजदूर भजन उंराव ने बताया कि लाकडाउन होने के बाद फैक्ट्री बंद हो गई। कुछ दिन काम तो चला पर पैसा खत्म हो गया। किसी तरह बस से बीती रात हम लोग सिलीगुड़ी पहुंचे। एख पैसा पास में नहीं है यहां तक खाने के लाले है और बस अब किसी तरह अपने परिवार के बीच पहुंचने की कोशिश है।
बतातें चलें की इन मजदूरों के चेहरे ऐसा प्रतीत होता था, की चेहरे पर कोरोना का खौफनाक मंजर के आगे भूख-प्यास नहीं झलक रही थी, बेताबी थी तो बस घर पहुंचने की