साधना की शख्सियत-2

जब याद तुम्हारी आती है ...
न्यूज भारत, सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग): एक कहावत है जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि,। इसी कल्पनाओं का सागर होता है, काव्य की रचनाओं को लिखना और पठनीयता को बरकरार रखना। रचनाओं को रचनात्मक बनाने के कवि, लेखकों को बहुत साधना करनी होती है, इसी साधना के दौर गुजरने वाली बंगाल के सिलीगुड़ी की, अमरावती गुप्ता हैं।
"आठवी क़क्षा में थी तभी से लिखने का शौक हुआ, तबसे लिख रहे थे, स्कूळ, कॉलेज के पत्र, पत्रिकाओं में रचना छपती थी। फिर एक दो मैगज़ीन में छपी, फिर शादी हो गई, ससुराल में मौका नही मिल रहा था, परंतु मन की साधना हमेशा हमें प्रेरित करती रही, करीब बीस साल के अंतराल पर फिर से लिखना शुरू किया और अब आपके सामने हूं"
अमरावती गुप्ता
सिलीगुड़ी
 
...माँ...
आँसू भी रो देते हैं ,
जब याद तुम्हारी आती है ..
बेहाल हमें कर देते हैं ,
जब याद तुम्हारी आती है ..
ओ माँ मेरी इक बार तो आ,
सीने से लगायेंगे तुझको ..
हर बार लगाया है तूने हमें ,
हम आज लगायेंगे तुझको ..
बात बात पर वो तेरा टोकना,
उस वक़्त बुरा तो लगता था ..
पर आज समझ में आता है ,
हर बात का कुछ तो मतलब था ..
ओ माँ इक बार तो आ जाते ,
हर हाल तुम्हे हम बतलाते ..
मौसम और मुल्क की बात नहीं ,
अंदर की हालत समझाते ..
लगता है जाने से तेरे,
सारा जहान वीरान, सुनसान हुआ ..
इन बेकदरों की भीड़ में जैसे,
कोई बच्चा गुमनाम हुआ।