महिला कैदियों के लिए योग शिविर का आयोजन

• गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा महिला कैदियों के योग शिविर 

• योग के माध्यम से आत्म-निरीक्षण, आत्म-नियंत्रण और आत्म-विश्वास की भावना मिले : पूनम टंडन 

एनई न्यूज भारत,गोरखपुर,27 मई : महिला कैदियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक सराहनीय पहल करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र और जिला कारागार गोरखपुर की महिला बैरक के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के उपलक्ष्य में “महिला कैदियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग” विषय पर योग प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।

यह आयोजन महामहिम कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा और कुलपति प्रो. पूनम टंडन के निर्देशन में संपन्न हुआ। प्रो. टंडन ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि महिला कैदियों को योग के माध्यम से आत्म-निरीक्षण, आत्म-नियंत्रण और आत्म-विश्वास की भावना विकसित करने में मदद मिले।”

कार्यक्रम में महिला बंदियों को ताड़ासन, भुजंगासन, वज्रासन और त्रिकोणासन जैसे सरल एवं प्रभावी आसनों का अभ्यास कराया गया, जो तनाव, अवसाद और शारीरिक समस्याओं से राहत देने में सहायक होते हैं। योग प्रशिक्षिकाओं नीलम जी और विंध्यवासिनी जी ने शवासन, बालासन, उष्ट्रासन, सेतुबंधासन, अधोमुख श्वानासन, नाड़ी शोधन प्राणायाम जैसे अनेक आसनों की तकनीकी जानकारी दी और उनका अभ्यास करवाया।

योग के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझाते हुए महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. दिव्या रानी सिंह ने कहा, “महिला कैदी भी समाज का हिस्सा हैं और उन्हें पुनर्वास का पूरा अधिकार है। यह प्रशिक्षण न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक है, बल्कि यह एक शोध परियोजना का भी विषय बन सकता है।” उन्होंने बताया कि भविष्य में हर महीने इस तरह के सत्र आयोजित करने की योजना है, और शिक्षित महिला बंदियों को प्रशिक्षक बनाकर योग की निरंतरता सुनिश्चित की जाएगी।

इस अवसर पर जेल अधीक्षक डी.के. पांडे, जेलर अरुण कुमार, उप-जेलर अनीता श्रीवास्तव, समाजसेवी अचिन्त्य लाहिड़ी, तथा गृह विज्ञान विभाग की शोधार्थी काजोल आर्यन एवं शिवांगी मिश्रा भी उपस्थित रहीं।

कार्यक्रम के अंत में गायत्री मंत्र और ओम के उच्चारण के साथ महिला कैदियों को प्रतिदिन ध्यान और सकारात्मक वातावरण बनाए रखने की प्रेरणा दी गई। गोरखपुर विश्वविद्यालय की यह पहल न केवल एक प्रेरणादायक उदाहरण है, बल्कि भारतीय दंड प्रणाली में मानवीय दृष्टिकोण को मजबूती से प्रस्तुत करती है।