खुशियों की तलाश में मिला मुसीबत का दंश
पवन शुक्ल,सिलीगुडी: पेट में भूख ज्वाला, चेहरे पर बेचैनी, मन में में उदासी थी और दिल में कोरांना का जख्म। लक्ष्य था अपने गांव की गलियों जहां अपने हैं। हालातों से जूझते सोमवार की शांम को करीब 5 बजे स्थान था वर्धमान रोड का झंकार मोड़ 5 युवक टोटो विनती करते हुए सिलीगुड़ी जंक्शन पहुंचने की बात कर रहे थे। ये युवक उड़ीसा में एक कंपनी का बन रहे भवन में काम कर रहे थे। बात करने पर एक युवक ने फफक कर कहा, सर हम लोग रात और दिन की बात नहीं किसी भी तरह घर पहुंच कर शांति मिलेगी और हालत यही बयां कर रही, "रातें कातिल, सुबहें कातिल,शांम है कातिल है हर शांमा, बाहर से चुपचाप है दिखता अंदर है कोहराम"
ये सभी लोग पश्चिम बंगाल से परिवार की खुशीयाँ खरीदने उडीसा के ताराबोड़ में बन रहे हास्टल में काम करने गये थे। पर कोरोना संकट से मिले जख्म को याद कर फफक जाते हैं।
नागराकाट के विशाल क्षेत्री, व वीरपाड़ा के अजय उंराव, दुर्गा केकेटा, अमित जोरा व संजय टोप्पो ने कहा कि जेब भी खाली और पेट भी खाली है किसी तरह हमें अपने घर अपनों के बीच पहुंचने पर ही राहत मिलेगी। उड़ीसा के ताराबोड़ से सिलीगुड़ी तक 1152 किलोमीटर की यात्रा वृत्तांत तो हृदय विदारक थी, विशाल क्षेत्री ने बताया की कंपनी नें किसी तरह बस में मालदा के लिए बैठाया जो पैसा हम लोगों के पास था किराया देकर मालदा शुक्रवार को पहुंच गये। जेब और पेट खाली दोनों खाली था, लोगों 100 दो 200 सौ दिए तो खाने की जरूरत तो थी कुछ खाकर पैदल मंजिल की ओर बढ़ गए। जो पैसा लोगों से बतौर अनुदान के बाद सोमवार को इस्टवेस्ट कोरिडोर पर विधाननगर पहुंच गए। यहां पुलिस ने बस में बैठाया और बोला नागराकाटा उतार देगी। बस कंडक्टर ने किराए मांग रहा था पर जेब खाली था तो पैर पकड़ कर विनती किया बोला भाई खाने को पैसे नहीं तो पैसे नहीं तो किराए कहा से दूं। बस कूचबिहार जा रही थी तो हमें नौका घाट पर उतार दिया, वहां से यहां तक पैदल चल रहा, अब पैदल या किसी भी तरह घर पहुंचना है।