काशी के सज गए घाट,देव दिवाली की तैयारियों हुई पूरी, कोलकाता के 7 घाट होंगे दियों से रौशन
एनई न्यूज भारत, कोलकाता/ वाराणसी: कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और पूजन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इसे देव दीपावली भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन देवताओं ने राक्षस त्रिपुरासुर का कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और पूजन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इसे देव दीपावली भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन देवताओं ने राक्षस त्रिपुरासुर का संहार कर स्वार्ग लोक को सुरक्षित किया था। इसी को लेकर देव दिवाली भारत में मनाया जाता है। एक तरफ जहां देव दीपावली, जो देवताओं के धरती पर आकर दीपावली मनाने का पर्व है, इसे आज 15 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। काशी के गंगा घाटों पर 20 लाख दीपों की जगमगाहट होगी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन होने वाला यह त्योहार अनूठी रौनक और देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है। वहीं, दूसरी ओर कोलकाता के विभिन्न घाटों पर देव दिवाली धूमधाम से मनाया जायेगा।
कोलकाता के 7 घाट पर जलेंगे 31 हजार दीप
देव दीपावली के अवसर पर शुक्रवार को कोलकाता के बाजेकदमतल्ला घाट और नीमतल्ला घाट सहित सात घाटों पर कुल 31 हजार दीये जलाए जाएंगे। वहीं, कोलकाता नगर निगम एवं कई स्वयं सेवी संगठनों के संयुक्त पहल पर बाजेकदमतल्ला घाट पर देव दीपावली समारोह का आयोजन किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ नीमतल्ला बर्निंग घाट पर हॉकर्स एसोसिएशन की ओर से मध्य और उत्तर कोलकाता के 6 घाटों पर देव दीपावली का आयोजन किया जाएगा। देव दीपावली के अवसर पर बाजेकदमतल्ला घाट पर 10 हजार दीये जगमगाएंगे, तो नीमतल्ला घाट, माणिक बोस गंगा घाट, बजरंगबली घाट, अहिरीटोला घाट, अहिरीटोला न्यू स्विमिंग क्लब घाट और चाउमीन घाट को 21 हजार दीपों की माला से सजाया जाएगा।
काशी में देव दीपावली
वाराणसी में इस पर्व का आरंभ महज 80 दीयों से हुआ था, लेकिन अब यह 20 लाख से अधिक दीपों की रौशनी में परिवर्तित हो चुका है। अस्सी घाट से संत रविदास घाट और वरुणा नदी के तट तक सभी घाटों पर विशेष सजावट और दीपोत्सव की तैयारियां चल रही हैं। इस बार 40 देशों के मेहमान और 15 लाख से अधिक पर्यटक इस पर्व का आनंद लेंगे।
क्यों मनाई जाती है देव दीपावली ?
देव दीपावली की उत्पत्ति का कारण त्रिपुरासुर का वध है। भगवान शिव ने तीनों असुरों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर दिया था। इसी विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने काशी में दीप जलाकर यह पर्व मनाया। तब से लेकर आज तक इस परंपरा को निभाया जा रहा है। देव दीपावली का संदेश बुराई पर अच्छाई की जीत और जीवन में प्रकाश फैलाने का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की धरती पर उतरते हैं और इस भव्य पर्व को मनाते हैं।