मंजिल कहीं भी हो, रास्ता यहीं से गुजरेगा

लगन, ने मां-पिता और परिवार के सपनों को दी है, नई उड़ान के नए सपनें

लक्ष्‍य अटल हो, तो सफलता कोचिंग से नहीं लगन से मिलती : अपूर्वा त्रिपाठी

अपूर्वा की सादगी और लगने ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया : दिनेश त्रिपाठी

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

जीवन में सफलता, वटवृक्ष के उन छोटे-छोटे दिखने वाले गुणों में छिपा होता है, जिसकी हम कल्‍पना करते रहते हैं। सपनों की उड़ान और मंजिल पाने की होड़ में वह हमें अक्‍सर निरर्थक लगते हैं। मंजिल पाने की चाहत में हम बचपन से सिर्फ उनके बारे में सुनते आ रहे हैं। लेकिन अचरज तो तब होता है, जब हम अपने सपनें को पूरा करने में पुराने बेकार से दिखने वाले चिराग की लौ तले, कामयाबी का सपना पूराकर मंजिल के सामने खडे होते है। किसी भी कामयाबी में ये तीन शब्‍द होते हैं, नॉलेज, स्किल्स और एक्शन अगर इन तीनों पर अपना ध्‍यान केन्द्रीत कर सपनों को पूरा करने में जुटें तो, मंजिल कहीं भी हो, उसका रास्ता यहीं से गुजरेगा।

अपूर्वा के सफलता की कहानी, मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के पूर्वांचल की धरती गोरखपुर के दक्षिणांचल में स्थित मलांव के गांव से होकर निकलती है। यूपीएससी 2021 आए परिणाम में 68 रैंक हासिल करने वाली अपूर्वा त्रिपाठी प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज (इलाहाबाद) की माटी से मिली। लेकिन, इस सफलता को हासिल करने का लक्ष्‍य अपूर्वा ने इंजिनियरिंग की पढाई के दौरान ही ले लिया था। अपूर्वा ने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बीटेक की पढ़ाई पूरी की और फिर उसने उत्‍तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा को पास कर तहसीलदार बनी। लेकिन अपूर्वा का लक्ष्‍य सिविल सर्विसेज ही था, और उसने बिना कोचिंग के अपने इस लक्ष्‍य को हासिल कर मां-पिता के मान के साथ प्रदेश, जिला, गांव सभी का मान बढ़ाया है।  

अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में 68वां रैंक हासिल कर सफलता परचम लहराने वाली त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा वाईएमसीए शताब्दी स्कूल प्रयागराज से की। उसके बाद सीएसजेएम यूनिवर्सिटी कानपुर से वर्ष 2018 में  बी.टेक किया। हलांकि इस मुकाम को हासिल करने का लक्ष्‍य बीटेक के दूसरे वर्ष में ही ले लिया। बीटेक के बाद यूपीपीसीएस 2019 पास कर नायब तहसीलदार बनी और 2020 एआरटीओ बन गई। लेकिन यूपीएससी के सपनों की उड़ान और मंजिल पाने की लगन ने आज उसे अपने मुकाम को हासिल करने से नहीं रोक सका।

लक्ष्‍य को पाने की चाहत बचपन से थी

प्रयागराज में सिंचाई विभाग में बतौर सहायक अभियंता पिता दिनेश त्रिपाठी ने बताया कि तीन बच्‍चों में सबसे बड़ी अपूर्वा हमेशा लक्ष्‍य की ओर ही बढ़ती रही। वहीं गृहणी मां सीमा त्रिपाठी भी पूरा ध्‍यान अपूर्वा की लगन को लेकर उस पर रहता था। वहीं अपूर्वा से छोटे भाई-बहन अनिमेश त्रिपाठी व अंजली त्रिपाठी ने अपूर्वा के साथ हमेशा उसके लगे रहते थे। श्री त्रिपाठी ने बताया कि अपूर्वा ने कभी कोचिंग की ओर नहीं झुकाव रहा। इस परीक्षा के लिए उसने स्‍वयं तैयारी की थी।  हलांकि किताबों को पढ़ने की शौकिन अपूर्वा मनोरंजन के लिए फिल्में भी देखना पसंद करती है। श्री त्रिपाठी ने बताया कि अपूर्वा बचपन से ही शांत स्‍वभाव और सादगी के साथ पढ़ाई को लेकर हमेशा सतर्क रहती थी। बचपन से ही उसके लगन को देखकर लगता था, कि किसी बेहतर मुकाम की ओर अग्रसर होकर सफलता हासिल करेगी। उन्‍होंने बताया कि बीटेक की पढ़ाई के दौरान ही यूपीएससी की परिक्षा का लक्ष्‍य लेकर वह आगे बढ़ी और अपनी मेहनत और लगन से कई परीक्षाओं में बेहतर सफलता हासिल करते हुए आज अपने लक्ष्‍य पर पहुंच गई। श्री त्रिपाठी ने कहा कि उसकी सादगी और दुनियां की चकाचौंध से दूर अपूर्वा सिर्फ अपने लक्ष्‍य को लेकर हमेशा केंद्रीत रही है, और उसका परिणाम आज सामने है।