मैं फूल पलाश बनूं, और...

411000 व्‍यूअर से मिले प्‍यार से न्‍यूज भारत के एक वर्ष पूरे

पहली वर्षगांठ पर 'मेरे अल्‍फाज' की पहली प्रस्‍तुति

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

काव्‍य की रचनाएं सपनों के मंजिल को पाने की तमन्‍ना होती है। काव्य की रचानाओं के प्रति निष्ठा सच्ची हो,  तो प्रकाशित होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। रचनाओं की अपनी विरासत होती है, रचना लिखना और रचनाओं के संग्रह से ही उसकी लगन और सच्ची निष्ठा ही उस रचनाकार के " साधना की शख्शियत " होती है। ऊहापोह की जिंदगी और पारिवारिक जिम्‍मेदारियों का निर्वहन एक गृहणी के लिए बहुत मुश्किल होता है। इन तमाम मुश्किलों के बीच अगर कोई अपनी रचना को बिना नाम मिले निरंतर लिखता रहता है। तो सफलता के सपनें खुद-बखुद समय उस रचनाकार के सपनों को पूरा करते हैं। हलांकि अनीता तिवारी अब से एक वर्ष पहले महिला रचनाकरों की सूची में नहीं थी। लेकिन पठन-पाठन और काव्‍य लेखन की क्षमता  तो थी। उनकी रचनाओं को जब स्‍थान मिला तो उनकी प्रतिभाएं खुद ब खुद निखर के सामने आ गई। आज अपनी बेहतर लेखनी के माध्‍यम से जहां महिला कवित्रियों में उनकी पहचान बनी है। वहीं उनके लगन और प्रयास से करीब दो कविता संग्रह की किताबों में उनकी रचनाएं प्रकाशित हुई है। उनके इस प्रयास के लिए न्‍यूज भारत अपनी पहली वर्षगांठ उन्‍हें बधाई देता है और वह निरंतर काव्‍य की रूचि के प्रति सजग और प्रयत्‍नयाशील होकर कामयाबी की बुलंदियों को छुएं।  

संपादक

मैं फूल पलाश बनूं

और

तुम बसंती हवा बन जाओ,

मैं डाल पर बलखाती रहूं,

जो तुम प्यार से छू जाओ,

बिखरेंगे खुशबू जो मेरी,

हवाओं के संग फिजा़ओं में,

फिर उन्मुक्तता हो,

चारों ओर दिशाओं में,

मैं फूल पलाश बनूं,

और

तुम बसंती हवा बन जाओ,

रंग बिखरे जो मेरी,

चटक-सी इस मौसम में,

तरुवर की डाली

और गुलमोहर भी संग मेरे,

इतराए अपने रंग लिए सुर्ख लाली,

दोनों मिल बैठे,

जैसे पीकर कोई प्रेम प्याली,

मैं फूल पलाश बनूं

और

तुम बसंती हवा बन जाओ,

छू लो जो तुम धीमे से मुझे,

मैं सिहर-सी जाऊं,

तेज झोंके से तुम्हारे,

मैं बिखर-सी जाऊं,

धीमे से ही तुम मुझे,

गले से लगाना,

धीमे से ही कानों में,

फागुन गीत गुनगुनाना,

मैं फूल पलाश बनूं

और

तुम बसंती हवा बन जाओ

बिखरी डाली से जो टूट कर,

तो इस मौसम ना आऊंगी,

दूर रहकर फिर,

एक बरस मैं तुम्हें सताऊंगी,

बरस बीते जो एक,

तो फिर मिलने मैं आऊंगी,

तुम मिलना पागल बसंती पवन-सा,

और

मैं फिर फूल पलाश बन जाऊंगी!

अनीता तिवारी

सिलिगुड़ी (पश्चिम बंगाल)