साधना की शक्शियत-4

न्यूज़ भारत, सिलीगुड़ीः किसी में काव्यों के प्रति रूचि अगर सच्ची निष्ठा हो तो प्रकाशित होने या ना होने से कोई फर्क नहीं रचनाओं की अपनी विराशत रचना और रचनाओं के संग्रह से ही उसकी लानन और सच्ची निष्ठा ही उस रचनाकार के " साधना की शक्शियत" होती है चाहे कहीं भी लिखी गई हो। इसी ऊहापोह की जिंदगी में एक गृहिणी " अनीता तिवारी" का है। बचपन सकता पठन-पाठन में रूचि रही जो कही स्थान तो नहीं मिला परंतु वे अपनी इस विधा को अपने रोम रोम में बसाया और आज भी वे अपनी रचनाओं को डायरी के पन्नों पर मूर्त रूप दे रही। " जीवन में निरंतर प्रयास करना ही मेरा लक्ष्य है, काव्य की रचनाओं का शौक है, जो पारिवारिक दायित्वों के अपनी मन के खुशी के लिए करतीं हूं। हलांकि पति के सहयोग से मेरी रचनाओं को कहीं कहीं कुछ स्थान जरूर मिला है। पारिवारिक व्यस्तता के बीच भी आज समय मिलने पर कुछ लेती हूं।"
अनिता तिवारी
सिलीगुड़ी
-तरसती आंखें-
ये जो आँखें राह तकती है तुम्हारी ये जो आँखें चाह रखती है तुम्हारी।
तुम्हारी एक झलक देखने को तरस जाती है।
न दिखे तूम तो उमड़ कर बरस जाती है,
फिर सूख जाते हैं ये आँसू अपने -आप,
और फिर से, ये तकती हैं राह तुम्हारी,
ख्याल इनकी चाहत का कभी किया तुमने,
क्या कभी तरसती आँखों की प्यास बुझाई तुमने,
तुम्हारा सब काम हमारा आँचल कर जाता है,
इन्हें छूपाता हैं,सूखाता है, मनाता है,
तुम्हारा सब काम हमारा आँचल कर जाता है
फिर भी, ये आँखे राह तकती है तुम्हारी ,
फिर भी, ये आँखें चाह रखती है तुम्हारी।