न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: बचपन से आसमान में उड़ने की परिकल्पना! काश: पंख होते, और परिंदों की तरह आकाश में उड़ने की तमन्ना मन लिए जब कोई जीवन की उंची उड़ान के सपने देखता है, तो पूरा करने की परिकल्पनाएं भी जन्म लेती है । हालात और बचपन की मज़बूरियां, सपनों को पंख नहीं देते पर सपनों को पूरा करने की चाहत अगर दिल ठान ले तो सफलताएं अवश्य ही मिलती है। बस जरूरत होती है उसे पाने की ललक और पूरा करने की ज़िद । हलांकि कभी-कभी ज़िद इंसान को अधूरे सपनें देते है, लेकिन पाने की जिद में अगर " साधना की शख्सियत" है तो सफलताएं अवश्य कदम चूमती है। आज के इस 29 वें भाग में हम फिर उसी शख्सियत की बात कर रहे है जिनका नाम है "किरण अग्रवाल" । गृहणी होने के साथ साथ उनकी काव्य रचनाओं को कई पत्र पत्रिकाओं में स्थान मिला है। हिंदी काव्य की रचनाओं के साथ, गायन, वादन और नृत्य में भी निपुण और पारिवारिक जीवन को भी बखूबी निभा रही है |
तो सुनते है कुछ शब्द उनकी ही जुबानी, मैं महिला काव्य मंच की सदस्या, बचपन से ही कविता का शौक रहा। जीवन में कुछ और करो या नहीं करो या तो इतने काबिल बन जाओ की कोई और आपके बारे में लिख दे, या फिर आप ऐसा कुछ लिख लीजिये की लोग आपके लिखें को पढ़ले यहीं एक शिक्षा लेके कल्पनाओं की उड़ान में मैं उड़ती रही और आज वही उड़ान ने एक राह ली और मेरी लेखनी को मार्ग मिलता गया | प्रकृति, साहित्य, गायन, वादन, नृत्य की अपार परिकल्पना मन में लिए सदैव एक दूसरी प्रेम और उसकी खुशी के लिए प्रयासरत रही । मेरा परिचय तो आप सबसे हो ही चूका है, आज मैं दूसरी बार आपके साथ जो हूँ । आज सुबह-सुबह चाय की प्याली हाथ लिए आप सबको जगाने आई हूँ। लॉकडाउन है अब घर-घर जाके चाय की चुस्कियां तो ले नहीं सकते। लेकिन सोचा की क्यों ना अपने अपने घरों में चाय पीते हुवे कविता पढ़ी जाएं | तो आप भी चाय की चुस्की के साथ मेरी कविता का आनंद ले’’।
हाय कैसी है यह चाय ?
एक चाय आपकी भी हो जाएं, एक मेरी भी हो जाएं
थकान भी मिटे, सर दर्द भी गायब
नये रिश्ते भी बनाएं, बिगड़े रिश्ते भी सुधारे
क्यों ना हम भी चाय बन जाएं
हाय कैसी है यह चाय?
चाय बिन सुबह भी अधूरी
बातें भी अधुरी, यादें भी रह जाए फ़ीकी
महफ़िल भी सुनी
क्यों ना हम भी चाय बन जाएं
हाय कैसी है यह चाय ?
चाय बिना, योजनाएं ना बन पाएं
गुफ़्तगू ना हो पाएं, एक चाय ही याद आएं
जब कोई मेहमान घर आएं
तो क्यों ना एक चाय हो जाएं
रोकना हो किसी को तब भी
क्यों ना एक चाय और हो ही जाएं
क्यों ना हम भी चाय बन जाएं
हाय कैसी हैं यह चाय ?
समोसे हो या कचौरियां, नमकीन हो या मीठा
एक चाय जो सबके साथ मेल मिलाए
और पेय पदार्थ में अब्बल नम्बर पें आए
क्यों ना हम भी चाय बन जाएं
और रिश्तों में घुल जाएं, हां रिश्तों में घुल मिल जाएं
कप के एक छोर से तुम चुस्की लो
दूसरे को हम होठों से लगा जाए
आओ मिलकर एक कप चाय बनाए...!