भारत के 19 वर्ष के प्रथम युवा का रिसर्च और विश्लेशण पुस्तक ‘ द मार्डन प्लेग’
इंजीनयिरिंग के छात्र ने दिखाय दम, लेखनी के दम पर बना कोरोना पर पहला भारतीय
पवन शुक्ल, सिलीगुडी
"जीवन में हर पल खास है " मंजिलों को पाने की ख्वाहिश तो लोगों में बचपन से ही होती हैं ? लेकिन ख्वाहिश के भँवर को पार कर हकीकत में बदलने के लिए हौसले की आवश्यकता होती है। इसके लिए परिश्रम आवश्यक है, तब जिन्दगी खुद ख्वाहिश के मंजिलों को खास बनातीं है। जिन्दगी को मूल्यवान बनाने की अहम् कड़ी़ शिक्षा को माना जाता है। और मेरा मन शिक्षा की ओर अग्रसर होकर रचनाओं में डूबता-उतराता रहता है। बचपन की आदत साहित्य से जुडने की थीख् इससे मेरी रूचि लेखन की ओर बढ़ने लगीं, लेकिन मैने कभी ये नहीं सोचा की अपने बचपन के मन की भावनाओं को लेखनी में बदलेगी, वैश्वीक महामारी कोरोना उपर से लॉक डाउन ने मेरे हौसलों की उड़ान मेरी मंजिलों का रास्ता बना दिख। जैसे-जैसे मेरी शिक्षा का स्तर बढता गया, धीरे-धीरे मैं लेखन की दुनियां में अधिक रूचि लेने लगा। वैश्वीक महामारी ने कोरोना आने के बाद भारत समेत पूरी दुनियां के बदले हालात को देखने के बाद मैंने कुछ लोगों के दर्द को पन्नों में उतारने की कोशिश की। तो हर तरफ दर्द और समस्यायें नजर आ रही थी। लोग घरों में परिवार के साथ कैद रहने से हलांकि नजदीकियां तो बढ़ी पर हकीकत में हम लोगों से दूर भी हो गए। छुआछूत की बिमारी कोरोना ने अपनी आगोश में पूरी दुनियां को ले रखा था। लेकिन भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इस छुआछूत की बिमारी कोरोना ने जीवन को नई दिशा और नया सोच देकर लोगों को आगह किया।
अपने व्यक्तिगत जीवन की चर्चा करते हुए ‘ द मार्डन प्लेग’ के 19 वर्षीय युवा भारतीय लेखक शाश्वत देव बीटेक की पढाई चेन्नई में मरीन इंजीनियरिंग में द्वितीये वर्ष के छात्र हैं। पारिारिक पृष्ठ भूमि की चर्चा करें तो पिता अभिषेक देव तीस्ता वैली टी कंपनी लिमिटेड में सीईओ हैं। वहीं मां श्रीमती रजनी देव कोलकाता उच्य न्यायालय में अधिवक्ता हैं। श्री देव ने बताया कि मैंने 11 वीं कक्षा में था तबसे लिखना शुरू किया। मेरे लेखन में ज्यादातर सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविताएँ हैं लेकिन, यह पहली बार था, जब मैंने कुछ लिखा जो कविताओं से अलग था और सामयिक विषय पर अधारित है।
ये कोरोना वैश्वीक महामारी पर अधारित है
दुनिया एक वैश्विक तूफान के बीच है जो लगभग हर सामाजिक दायित्व को बदलने के लिए तैयार है, जो मानव प्रतिक्रिया की आज्ञा है। अधिकांश के लिए यह पहली बार है कि वे इस तरह के एक ऐतिहासिक आयोजन का अनुभव कर रहे हैं। "द मॉडर्न प्लेग- हिस्ट्री शेयर्ड एन मास" इस महामारी के परिमाण को चित्रित करने का एक प्रयास है। कुछ के लिए यह जीवन और मृत्यु का सवाल था जबकि कुछ के लिए यह महीनों तक एकांत कारावास था। यह पुस्तक इस महाकाव्य की हर कहानी को समेटने का एक प्रयास है। दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक लॉकडाउन से लेकर पैदल चलकर मजदूरों के प्रवास तक और जांच से लेकर वायरस की उत्पत्ति से लेकर इलाज तक की दौड़ तक हर पहलू को छुआ जा चुका है। इस तबाही की चपेट में आए दुनिया को लगभग एक साल हो चुका है, फिर भी वायरस पर हर अध्ययन हमें एहसास कराता है कि हम कितना कम जानते हैं। यह पुस्तक वास्तविकता को सामने लाने की कोशिश करती है और यह तर्क देती है कि क्या लोगों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा वह वास्तविक और बेकाबू थी या अधिकारियों की ओर से शालीनता का नतीजा था जो इन जैसे प्रतिकूलताओं से निपटने की जिम्मेदारी के साथ निहित थे। वर्तमान में किताब ' द मार्डन प्लेग' आनलाईन उपलब्ध है।