हर समाज के अधिकतर ठेकेदार खुद इस कारोबार में लिप्त
दिखावे के दौर में हम खो रहे हैं अपनी सांस्कृतिक वजूद
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को धीरे-धीरे दरकिनार करते जा रहे हैं। वहीं आज के समय में हम शिष्टाचार, नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। जबकि शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन के व्यक्तित्व के विकास बहुत अहम भूमिका निभाता हैं। किसी भी विषय को ले लें, हम अपनी युवा पीढ़ी पर पूरा दोष डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन सवाल यह नहीं कि आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी हो रही है? सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी पर दोषारोपण से हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है? क्या हम युवा पीढ़ी के साथ अपना कर्तव्य निष्ठा से निभा रहे हैं? क्या सारी गलती युवा पीढ़ी की ही है? मुझे नहीं लगता कि आज की युवा पीढ़ी भूलते संस्कारों के लिए सौ प्रतिशत गलत है। आज उनमें संस्कारों की कमी अगर हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। क्यों हम उनमें संस्कार नैतिकता शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं। यह एक सोचने का विषय है। बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है। अंग्रेजियत के नए वर्ष का शुभारंभ तो हम बड़े ही जोश-खरोश से मनाते हैं कभी हिंन्दू नववर्ष लोगों की उमड़ती भीड़ को देखा गया है ? इसका मुख्य कारण है दिखावा।
सिटी सेंटर में नए वर्ष पर पार होती अश्लीलता की हदें
ना शर्म ना हया बस एक दूसरे को चूमने और आलिंगन करने की प्रथा जहां इस देश में परदे में होती थी। आज वह परदे के बाहर हो गई है। अंग्रेजी नए वर्ष पर सिलीगुड़ी के प्रमुख मॉल सीटी सेंटर में जहां सिगींगबार की झंकार कानों को फाड़ती है। वहीं दो पैग के नशे में युवक और युवतियां खुलेआम अश्लीलता की हदें पार करते नजर आ रहे थे। आलिंगन और चुंबन तो अब इस सांस्कृतिक देश में खुलेआम करना एक फैशन सा बन गया है। एक जनवरी 2021 की शाम सीटी सेंटर में कुछ इस तरह मदहोश थी लगता ही नहीं था कि हम श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध रामकृष्ण परमहंस की धरती पर हैं।
दिखवे के लिए कोरोना का भय
वहीं इस उफनती भीड़ के मद्देनजर जहां शासन और प्रशासन को कोरोना संक्रमण रोकने के अतिरिक्त गाईड लाइन जारी कर उस पर अमल करने का प्रयास करने को कोशिश करना चाहिए थी। पर अफसोश प्रशासन सिर्फ ट्रैफिक सुधारने में ही लगी रही। हलांकि मॉल में प्रवेश के दौरान मास्क अनिवार्य है, सिर्फ गेटतक अंदर तक। हलांकि कुछ लोग मास्क लगाए थे परंतु दुनिया की नजरों से बचने के लिए। इस दिखावे का सबसे बुरा असर उनपर कम उम्र के बच्चों पर पड़ता है जो माता-पिता के साथ आनंद उठाने गए हैं। बचपन की यादों को वह अपने युवा होने के बाद जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं? अगर उन्हे सही समय पर सही तरिके से संस्कृति को बताया जाय जो शायद हम अपनी संस्कृति को बचा सकते हैं।
गांधी की सफेद खादी के पीछे नामदारों के चर्चे
इस देश आधुनिक कारोबार का दर्द यह है कि पैसा की चाहत इंसान को इतना नीचे गिरा दिया है कि अब वह यह फर्क करना भूल गया है कि कारोबार का मतलब क्या है। इस शहर के बार, सिगींगबार, डासिगंबार, पब के मालिकाना हकों पर गैर से नजर डाले, तो यह वहीं लोग होगें जो समाज में गांधी की खादी पहनकर मंच से समाज को नई दिशा देने की नसीहत देते हैं। पर वास्तविक जीवन में उनका दूसरा अलग रूप है? समाज की इसी दोहनी नीति का नतीजा है आज समाज और संभ्यता का बिखराव हो रहा है।